हरियाणा चुनाव के परिणामों से पहले किए गए तमाम सर्वेक्षण और एग्जिट पोल धरे रह गए. सबको चौंकाते हुए बीजेपी तीसरी बार बहुमत पाने में सफल रही. और अब सरकार गठन की कवायद चल रही है. बीजेपी ने अपना ‘सीएम’ चुनाव से पहले ही तय कर लिया था. लेकिन अब पेच यहीं फंसता नजर आ रहा है. एक पुरानी कहावत है- 'सजनी रे हमहूं राजकुमार'. इसी तर्ज पर हरियाणा बीजेपी में अब कई ‘दूल्हे’ सेहरा सजाए तैयार खड़े हैं. इनकी दावेदारी से बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व की पेशानी पर बल पड़ते नजर आ रहे हैं. समस्या कितनी गंभीर है, इसका अंदाजा इस बात से लगाइए कि पार्टी को अपने ट्रबलशूटर यानी संकटमोचक को आगे करना पड़ा है. लंबे समय बाद गृह मंत्री अमित शाह पर्यवेक्षक की भूमिका में दिखेंगे. उनका साथ देंगे मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन सिंह यादव.
अमित शाह को हरियाणा क्यों जाना पड़ रहा? नायब सिंह सैनी फिर CM बनेंगे या नहीं?
हरियाणा विधानसभा चुनाव के दौरान भी बीजेपी के कई नेता मुख्यमंत्री पद की दावेदारी ठोकते नजर आए. बीजेपी के वरिष्ठ नेता और खट्टर सरकार में मंत्री रहे अनिल विज और केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत लगातार अपनी सभाओं में खुद को मुख्यमंत्री बनाने की बात कहते रहे.
हरियाणा विधानसभा चुनाव के दौरान भी बीजेपी के कई नेता मुख्यमंत्री पद की दावेदारी ठोकते नजर आए. बीजेपी के वरिष्ठ नेता और खट्टर सरकार में मंत्री रहे अनिल विज और केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत लगातार अपनी सभाओं में खुद को मुख्यमंत्री बनाने की बात कहते रहे. तब इसे वोटरों को लुभाने की कवायद के तौर पर देखा गया. लेकिन चुनाव परिणाम आने के बाद भी इन नेताओं की दावेदारी से बीजेपी की परेशानी बढ़ती नजर आ रही है.
लगातार बदली जा रही है शपथग्रहण की तारीख8 अक्टूबर को हरियाणा विधानसभा के नतीजे आने के बाद तय हुआ कि नई सरकार का शपथग्रहण 12 अक्टूबर को दशहरे के दिन होगा. लेकिन फिर तारीख बदल दी गई. इसके बाद यह तारीख 15 अक्टूबर मुकर्रर की गई. लेकिन फिर इसे भी बदल दिया गया. अब नई तारीख 17 अक्तूबर की रखी गई है. शपथग्रहण की तारीखों का लगातार बदलना बीजेपी में सब कुछ ठीक नहीं होने का संकेत दे रहा है. और शायद इसके चलते ही अमित शाह को पर्यवेक्षक की जिम्मेदारी सौंपी गई है.
शाह को हरियाणा भेजे जाने का कारण समझने के लिए थोड़ा पीछे जाना होगा. जब बीजेपी का ट्रांजिशन पीरियड चल रहा था. मनोहर लाल खट्टर की जगह नायब सिंह सैनी को विधायक दल का नेता चुना गया. तो अनिल विज नाराज हो गए थे. उनका कहना था कि वो भी सीनियर हैं. उनके नाम पर विचार होना चाहिए. कम से कम उन्हें डिप्टी सीएम बनाना चाहिए. लेकिन पार्टी ने यह तय नहीं किया था. जिसके बाद वो नाराज होकर विधायक दल की बैठक से बाहर चले गए.
अमित शाह को पर्यवेक्षक बनाने के पीछे की रणनीति के बारे में इंडिया टुडे से जुड़े हिमांशु मिश्रा बताते हैं,
"इस चुनाव में बीजेपी नायब सिंह सैनी के चेहरे पर चुनाव में गई थी. अमित शाह ने पहले ही घोषणा की थी कि नायब सिंह सैनी मुख्यमंत्री होंगे. और जिस तरह की जीत मिली है उससे नायब सिंह सैनी का कद भी बढ़ा है. लेकिन आप देखें कि अनिल विज हों या फिर राव इंद्रजीत, हाल के दिनों में अपनी दावेदारी ठोक रहे हैं. राव इंद्रजीत का कहना है कि दक्षिण हरियाणा से क्यों नहीं मुख्यमंत्री बनना चाहिए. या अनिज विज का कहना है कि वो पार्टी के सबसे बड़े नेता हैं हरियाणा में, उनको मुख्यमंत्री बनाना चाहिए. इस तरह के तमाम विवादों से बचने के लिए. और कोई नेगेटिव खबर ना चली जाए. जिससे तीसरी बार बीजेपी की बन रही सरकार का मजा किरकिरा हो जाए. या उसके स्वाद में खटास आ जाए. इसलिए गृह मंत्री अमित शाह को ये जिम्मेदारी दी गई है."
हरियाणा में वोटिंग के दिन आजतक से बातचीत में अनिल विज ने कहा कि अगर पार्टी ने चाहा तो आपसे अगली मुलाकात सीएम आवास पर होगी. वहीं चुनाव नतीजे सामने आने के बाद अनिल विज ने कहा कि अगर हाईकमान उन्हें मुख्यमंत्री बनाने का फैसला करती है तो वो हरियाणा को देश का नंबर 1 प्रदेश बनाएंगे. बाद में अमित शाह और मोहन यादव के पर्यवेक्षक बनाए जाने की खबर आई.
दूसरी तरफ 13 अक्टूबर को अनिल विज ने दिल्ली में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात की. इसके बाद सियासी हलकों में लगाए जा रहे कयासों को बल मिला. अनिल विज की यह मीटिंग ऐसे समय में हुई, जब प्रदेश में विधायक दल की बैठक होनी है. अमित शाह के पर्यवेक्षक बन कर जाने के पीछे अनिल विज की दावेदारी एक बड़ी वजह मानी जा रही है. इंडिया टुडे से जुड़े हिमांशु मिश्रा बताते हैं,
राव इंद्रजीत भी दावा ठोक चुके हैंअनिल विज (हरियाणा में) बीजेपी के सबसे बड़े नेता हैं इसमें कोई संशय नहीं है. वो इंडिपेंडेंट भी चुनाव जीते. जब पार्टी ने उनको बाहर किया. जब बीजेपी के एक विधायक थे. तब भी उन्होंने चुनाव जीता. लेकिन पार्टी भली-भांति जानती है कि किस चेहरे के साथ आगे जाया जा सकता है. नायब सैनी के नाम पर चुनाव लड़ा गया. और उनका मुख्यमंत्री बनना लगभग तय है. लेकिन अनिल विज जो जीत की एक खनक हैं, उसको खराब ना करें, इसलिए गृह मंत्री अमित शाह वहां पर्यवेक्षक बन कर जा रहे हैं.
बीजेपी आलाकमान की दूसरी चुनौती पार्टी के कद्दावर नेता और केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत से मिल रही है. मुख्यमंत्री बनने की उनकी हसरत पुरानी है. कांग्रेस में भूपेंद्र सिंह हुड्डा के चलते उनकी महत्वकांक्षा परवान नहीं चढ़ सकी. और अब बीजेपी में भी पिछले 12 सालों से उनकी सुनवाई नहीं हो रही है. राव इंद्रजीत ने हरियाणा की एक रैली में अपने दर्द का इजहार भी किया है. उन्होंने एक हरियाणवी कहावत का हवाला देते हुए कहा- “12 साल में तो कूड़े का भी नंबर आ जाता है. और मैं इससे गया गुजरा तो नहीं हूं.”
दक्षिणी हरियाणा और अहीरवाल से मिला बलराव इंद्रजीत के प्रभाव वाले दक्षिण हरियाणा, और खासकर अहीरवाल बेल्ट में बीजेपी का स्ट्राइक रेट सबसे बढ़िया रहा है. बीजेपी को दक्षिण हरियाणा की 29 में से 22 पर जीत मिली है. पिछली बार यहां बीजेपी 21 सीटें जीती थी. वहीं अहीरवाल क्षेत्र की 11 सीटों में से बीजेपी को 10 सीटों पर जीत मिली है. पिछली बार बीजेपी को यहां से 8 सीटें मिली थीं.
सीटों के इस बढ़े ग्राफ का श्रेय लेने में राव इंद्रजीत सिंह जुटे हुए हैं. सरकार गठन से पहले अहीरवाल बेल्ट के 8 विधायकों से मुलाकात कर हाईकमान को अपनी ताकत दिखाने का प्रयास किया है. हाल में एक जनसभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि जिस क्षेत्र के लोगों ने तीसरी बार सरकार बनाई, उसका ध्यान रखा जाना चाहिए. राव इंद्रजीत ने अहीरवाल बेल्ट की 11 सीटों में से 8 पर उम्मीदवारों के नाम हाईकमान के सामने रखे थे. हाईकमान ने उन पर भरोसा जताया और राव सभी सीटें जीतने में कामयाब भी रहे.
कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में राव इंद्रजीत के बागी होने की खबरें भी चलाई गईं. बताया गया कि राव के साथ 9 विधायक हैं और वे सीएम पद की मांग पर अड़े हुए हैं. हालांकि राव इंद्रजीत ने एक्स पर एक पोस्ट कर इन खबरों को अफवाह करार दिया है. उन्होंने लिखा,
"कुछ मीडिया चैनलों पर तथ्यहीन खबरें चलाई जा रही हैं. जिनमें मुझे 9 विधायकों के साथ बगावती दिखाया जा रहा है. यह सब तथ्यहीन, और आधारहीन है. मैं और मेरे सभी साथी विधायक भारतीय जनता पार्टी के साथ मजबूती से खड़े हुए हैं."
राव इंद्रजीत की दावेदारी से जुड़े सवाल पर हिमांशु मिश्रा बताते हैं,
“मुझे लगता है राव इंद्रजीत बड़े नेता हैं. 2004 से लगातार मंत्री रहे हैं. पार्टी ने इस बार अहीरवाल में उनके समर्थकों को टिकट दिया. और उनकी बेटी को भी टिकट दे दिया. वो चुनाव जीती भी हैं. राव इंद्रजीत कहते रहे हैं कि दक्षिण हरियाणा से मुख्यमंत्री होने चाहिए. और वे लगातार अपनी दावेदारी ठोकते रहे हैं. लेकिन बीजेपी इस समय कोई ऐसा रिस्क नहीं ले सकती कि उनको सीएम बनाए. और उपचुनाव के लिए गुड़गांव सीट पर जाए. क्योंकि बीजेपी के पास इस समय केंद्र में 240 सीटें ही हैं. उनके पास पूर्ण बहुमत नहीं है.”
हिमांशु आगे कहते हैं कि इसीलिए गृह मंत्री अमित शाह हरियाणा जा रहे हैं. पार्टी के संगठनात्मक मुद्दों पर उनकी चलती भी है. सब नेता उनकी बात को समझते भी हैं और मानते भी हैं.
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