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हरियाणा चुनाव: ना असली ना डुप्लीकेट, BJP ने सत्ता की नई चाभी बना ली, लेकिन कैसे?

Haryana Vidhan Sabha Election Results: क्या कांग्रेस को उसका ओवर कॉन्फिडेंस उसे ले डूबा और बीजेपी ने कछुए की तरह चुपचाप जीत दर्ज कर ली?

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नायब सिंह सैनी के दोबारा मुख्यमंत्री बनने की प्रबल संभावना है. (फाइल फोटो- PTI)

हरियाणा विधानसभा के नतीजों ने चुनाव से पहले नतीजों का अनुमान लगाने वाली एजेंसीज़ और कई पत्रकारों पर सवालिया निशान खड़ा कर दिया है. लगभग सभी एग्जिट और ओपिनियन पोल्स ने ना सिर्फ कांग्रेस की सरकार बनने का अनुमान लगाया था, बल्कि उसे 50 से ज्यादा सीटें मिलने का भी दावा कर दिया था. मगर नतीजे बिल्कुल उलट आए. बीजेपी पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाती दिख रही है. खबर लिखे जाने तक आए रुझानों में बीजेपी को 50 और कांग्रेस को 35 सीटें मिलती दिख रही हैं. सवाल है कि इस उलटफेर की वजह क्या है? क्या कांग्रेस को उसका ओवर कॉन्फिडेंस ले डूबा और बीजेपी ने कछुए की तरह चुपचाप जीत दर्ज कर ली? या 'हुड्डा बनाम शैलजा' की लड़ाई में क्या कांग्रेस ने अपने ही पांव में कुल्हाड़ी मार ली? बीजेपी ने हारी हुई बाजी आखिर जीती कैसे?

1. जाट Vs नॉन-जाट फॉर्मूला

बीजेपी की पिछले एक दशक की पॉलिटिक्स पर नज़र डालेंगे तो पाएंगे कि उसका फोकस नॉन-जाट पॉलिटिक्स पर था. पहले बीजेपी ने पंजाबी हिंदू मनोहर लाल खट्टर को मुख्यमंत्री पद पर बिठाया. फिर उनके साढ़े 9 साल के कार्यकाल ने हरियाणा में एक नई तरह की राजनीति पेश कर दी. यहीं से '35 बनाम एक' का नारा प्रचलित हुआ. यहां '35 बनाम एक' में 'एक' का संदर्भ जाट बिरादरी से है. हरियाणा के ग्रामीण अंचल की पुरानी कहावतों में 36 बिरादरी का जिक्र सुनाई देता है. इन 36 में जाट, गुर्जर, ब्राह्मण, दलित जैसे सामाजिक धड़े आते हैं. इनके कोई आधिकारिक आंकड़े नहीं होते.

कांग्रेस और सत्ताधारी दल के विरोधी लगातार कहते रहे कि बीजेपी ने हरियाणा के ताने-बाने को चोट पहुंचाई है. मगर बीजेपी अपनी रणनीति पर कायम रही. जिसका परिणाम चुनाव नतीजों में दिखा. लल्लनटॉप से बात करते हुए चुनाव विश्लेषक योगेंद्र यादव कहते हैं,

“हरियाणा में जाट वोट तो बीजेपी के खिलाफ लामबंद हुआ, मगर गैर-जाट वोट जाटों के खिलाफ हो गया. जिसका फायदा सीधे तौर पर बीजेपी को मिला.”

2. सोशल इंजीनियरिंग

एक तरफ कांग्रेस हरियाणा की दो डॉमिनेंट कास्ट जाट और दलितों को रिझाने में जुटी रही तो दूसरी तरफ बीजेपी लंबे समय से हरियाणा में OBC समाज पर फोकस कर रही थी. खट्टर के खिलाफ नाराज़गी थी तो उन्हें हटाया गया. और मुख्यमंत्री की कुर्सी मिली नायब सिंह सैनी को जो OBC समाज से आते हैं. हालांकि, सैनी खट्टर के काफी विश्वस्त माने जाते हैं. सैनी ही इससे पहले प्रदेश अध्यक्ष के पद पर थे.

हरियाणा में OBC समाज की आबादी 44 प्रतिशत के करीब बताई जाती है. बीजेपी ने 22 OBC उम्मीदवारों को टिकट दिए. पार्टी ने जाट उम्मीदवारों के टिकट कम किए, फिर भी 16 जाटों को उम्मीदवार बनाया. नतीजा ये रहा कि जाटलैंड में बीजेपी 7 सीटों पर जीत रही है और कांग्रेस को 8 सीटें मिल सकती हैं जो पिछली बार से सिर्फ एक ज्यादा है. साथ ही बंसी लाल परिवार की बहू किरण चौधरी को बीजेपी ने राज्यसभा भेजा और उनकी बेटी को तोशाम सीट से टिकट दिया. यानी नॉन-जाट पॉलिटिक्स के साथ-साथ बीजेपी जाटों को मैसेज देती रही.

अहीरवाल बेल्ट में पहले की तरह बीजेपी का दबदबा कायम दिख रहा है. इस इलाके में 28 में से 21 सीटें बीजेपी को मिलती दिख रही हैं. यानी कल तक जो कहा जा रहा था कि कांग्रेस ने जाटों और दलितों को साधकर बेहतर सोशल इंजीनियरिंग की है, बीजेपी ने उसे झुठला दिया.

3. दलित वोट बैंक और  हुड्डा Vs शैलजा

दलितों को साधने में कांग्रेस लंबे समय से जुटी थी. पिछले 17 सालों से हरियाणा प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पद पर दलित नेता ही रहा है. 2007 से 2014 तक फूल सिंह मुलाना हरियाणा कांग्रेस के अध्यक्ष रहे. 2014 से 2019 तक अशोक तंवर को इस पद रखा गया. उनके बाद कुमारी शैलजा प्रदेश अध्यक्ष बनीं, जो 2022 तक इस पद पर रहीं. फिर हुड्डा के करीबी उदय भान को हरियाणा कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया. वो अब भी इस पद पर हैं.

चुनाव से पहले कहा जा रहा था कि लोकसभा चुनाव के ट्रेंड को देखें तो दलित वोटबैंक बड़े पैमाने पर कांग्रेस की तरफ शिफ्ट हो गया है. जिसका फायदा विधानसभा चुनाव में उसे होगा. मगर फिलहाल इस पर मत बंटे हुए नजर आते हैं. वरिष्ठ पत्रकार सतेंद्र सिंह कहते हैं,

“दलितों ने कांग्रेस को ही वोट दिया है लेकिन OBC के एकजुट वोटों की वजह से नतीजों पर दलितों का असर कम हो गया.”

लेकिन वरिष्ठ पत्रकार आदेश रावल इससे सहमत नहीं नज़र आते. वो कहते हैं,

"इस बार दलित भी नॉन-जाट खेमे में शामिल हो गए. जिसका फादया बीजेपी को मिला है."

मगर यहां हुड्डा बनाम शैलजा फैक्टर पर भी बात करना जरूरी है. हुड्डा परिवार और शैलजा के बीच तनाव चुनाव के दौरान खूब खबरों में रहा. जब इस पर चर्चा हुई तो कांग्रेस पार्टी और उसे कवर करने वाले कई पत्रकारों ने कहा कि पार्टी के लिए ये कोई नई बात नहीं है. इससे कोई खास असर नहीं पड़ने वाला. दूसरी तरफ बीजेपी इस मुद्दे को लगातार भुनाती रही. अमित शाह से लेकर मनोहर लाल खट्टर और सीएम सैनी तक ने कहा कि दलित बहन का अपमान हो रहा है.

आदेश रावल कहते हैं,

“चुनाव के दौरान ऐसी खबरें आई थीं कि 70 से ज्यादा टिकट हुड्डा खेमे के कहने पर मिले हैं. इसका उल्टा असर पड़ा. और दलितों में गलत मैसेज पहुंचा. जो वोटिंग के दौरान हुड्डा के खिलाफ चला गया.”

4. बेहतर टिकट बंटवारा

नतीजे आने के बाद C-वोटर के डायरेक्टर यशवंत देशमुख का कहना है कि टिकट बंटवारे में बीजेपी ने कांग्रेस से बेहतर रणनीति अपनाई. बीजेपी ने विनेबिलिटी फैक्टर पर ध्यान केंद्रित किया. यशवंत की बात पर गौर फरमाया जाए तो इस चुनाव में बीजेपी ने 25 सीटों पर उम्मीदवार बदल दिए थे. नतीजा ये रहा कि इनमें से 16 कैंडिडेट जीते भी. दूसरी तरफ कांग्रेस ने बगावत से बचने के लिए अपने सभी सीटिंग विधायकों को टिकट दिया. लेकिन परिणाम अच्छे नहीं आए.

5. बीजेपी का वोट पर्सेंट बढ़ा

पिछले चुनाव के मुकाबले कांग्रेस के वोटों में भारी बढ़ोत्तरी हुई है. 2019 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस जहां 28 प्रतिशत वोट पर सिमट गई थी, वहीं इस बार उसे 39 प्रतिशत से ज्यादा वोट मिल रहे हैं. पर इससे भी महत्वपूर्ण बात ये कि कांग्रेस के वोट शेयर में इतने उछाल के बावजूद बीजेपी का वोट शेयर घटने के बजाय बढ़ गया. बीजेपी को 2019 में 36.7 प्रतिशत वोट मिले थे जो इस बार 40 पर्सेंट तक पहुंच गया है.

दूसरी तरफ, JJP का वोट बंट गया. 2019 के चुनाव में 10 सीटें जीतकर किंगमेकर की भूमिका में रही दुष्यंत चौटाला की JJP इस बार खाता भी नहीं खोल पाई. यहां वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई एक महत्वपूर्ण बात रेखांकित करते हैं. वो कहते हैं,

“JJP का वोट बंटा और कांग्रेस को मिला. मगर कांग्रेस को अगर JJP के 10 में से 6-7 वोट मिले तो बीजेपी के खाते में भी 3-4 वोट गया. जिसने बीजेपी के वोटों को सीटों में कन्वर्ट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.”

इसके साथ ही बीजेपी के माइक्रोमैनेजमेंट की तारीफ जरूर की जानी चाहिए. बीजेपी ने राज्य में चार प्रभारी बनाए. धर्मेंद्र प्रधान, बिप्लब कुमार देब, सुरेंद्र नागर और सतीश पूनिया. आजतक के पॉलिटिकल एडिटर हिमांशु मिश्रा बताते हैं कि चारों ने लोकसभा की सीटों को आपस में बांटा और वहां जमीनी स्तर पर काम किया.  जातिगत समीकरणों को साधा, उम्मीदवारों का चयन उसी हिसाब से किया और मुद्दे तय किए. नतीजे सबके सामने है.

इन सब फैक्टर्स के अलावा इस बात को नहीं नकारा जा सकता कि बीजेपी का वोटर साइलेंट था. कांग्रेस का वोटर हर टीवी चैनल और यूट्यूब वीडियो में मुखर दिखा. जिसने ऐसे परसेप्शन बनाया कि हरियाणा में कांग्रेस की आंधी नहीं तो हवा जरूर चल रही है. जबकि असली खेल तो बीजेपी के साइलेंट वोटर ने कर दिया.

वीडियो: नेतानगरी: हरियाणा एग्जिट पोल से पहले भूपेंद्र हुड्डा और BJP का असली गेम पता चला