भइया, हमारे गांव चलिए. ममखोर. ब्राह्मणों की राजधानी कहते हैं इसको. हर 20 साल में यहां से एक शेर पैदा होता है. श्रीप्रकाश शुक्ला का नाम तो आपने सुना ही होगा?ये बात चिल्लूपार विधानसभा का एक नवयुवक कह रहा था. उन तमाम युवा देशभक्तों में से एक, जिनको लेकर नरेंद्र मोदी को बड़ी आशाएं हैं, जिनको लेकर अखिलेश यादव बातें बनाते हैं. चेहरे पर ओज था, आवाज में जोश. पर बॉडी लैंग्वेज में एक सरसराहट थी जो बता रही थी कि लड़का कहीं फिट नहीं हो पा रहा. खोज खूब रहा है. कुछ करना चाह रहा है. पर मिल नहीं रहा. तो कहानियों में भविष्य खोज रहा है. उन कहानियों में जिनका कोई अस्तित्व नहीं है. जो लोगों को भरमाने के लिए बना दी जाती हैं. मैं सोचने लगा था कि ये लड़का किसी बैंक में हो सकता था. किसी खेल में हो सकता था. मैसूर की किसी कंपनी में हो सकता था. नहीं हो सकता था तो यूपी में किसी कंपनी में. क्योंकि यूपी में कंपनी नहीं लगेगी. यहां बनेगा श्मशान और कब्रिस्तान. यहां पर चलेगी साइकिल जिसे हाथ चलाएगा. यहां पर दौड़ेगा हाथी. यहां चुनाव लड़ेंगे क्रिमिनल. और युवा नारे लगाएंगे 'ये जिंदगी है कुर्बान, बाहुबली तेरे नाम'. गोरखपुर के दक्खिन में है ये विधानसभा. जिले की 9 विधानसभाओं में से एक. जहां पर अस्सी के दशक में ठाकुर और ब्राह्मण वर्चस्व की जंग हो रही थी. नहीं पता कि वर्चस्व क्या था. क्योंकि दोनों में से कोई जब भी आगे बढ़ा, बाकी जनता को कुचलता ही गया. जिद और घमंड की कहानियां थीं. गुरूर और गुस्से की. लेकिन जब आप अंदर झांककर देखते हैं तो वितृष्णा होती है. क्योंकि साइड हटते ही लोग कहना शुरू करते हैं यहां के लड़के लफंगे हैं. कहां बात कर रहे हैं आप. दुख होता है कि ऊर्जा से भरपूर इन लड़कों को लफंगा कहा जा रहा है. सच तो ये है कि इन लड़कों को पाकर कोई भी देश धन्य हो जाएगा. कहां के लोगों में इतनी ऊर्जा है कि धूप में खड़े होकर टूटी सड़क पर चिल्लूपार के होने के फायदे गिनाएंगे? काम सही दे दें, ये लोग कर लेंगे.
लड़कियों का पता नहीं. क्यों कि कहीं कोई दिख ही नहीं रही थी. कुछ औरतें मिलीं जो बात करने को तैयार नहीं थीं. मायावती का नाम लेते ही कई लोग बिलबिला उठे जैसे कुछ व्यक्तिगत झंझट हो. पर बड़ोदरा का जिक्र कर रहे थे कि वहां पर रात के ढाई बजे भी औरतें घूमती हैं. वैसा ही शहर होना चाहिए. लोग अच्छाई चाहते हैं, कोई डाउट नहीं इसमें.इसी काम के एब्सेंस में यहां से श्रीप्रकाश शुक्ला निकला था. 25 साल का छोकरा रात को यार दोस्तों से बात करते-करते तय कर चुका था कि विधानसभा की सीट उसे चाहिए. चुनाव तक का इंतजार करने का धैर्य नहीं था. प्लान था कि विधायक को मारकर सीट लेगा. इस लड़के ने मुख्यमंत्री की भी सुपारी ले ली थी. इस लड़के की गोलियों ने साबित कर दिया था कि किसी गैंगस्टर का कोई रुतबा नहीं होता. कोई तिलिस्म नहीं होता. जिसकी गोली पहले चली, उसका रुतबा. जिसकी नजर झुकी, वो गया. आंखों के इस खेल में ना जाने कितने लोग श्मशान पहुंच गए. शुक्ला भी पहुंचा. और इस पूरे खेल में जिसकी नजर बनी रह गई वो थे हरिशंकर तिवारी. 1985 से लगातार विधायकी जीतते रहे. काम कुछ खास नहीं किया. या यूं कहें कि काम करवाने का टाइम नहीं मिला होगा. जहां जान लेने-देने का खेल हो रहा हो वहां कोई काम कैसे करवाएगा. अपनी सुरक्षा तो करेगा.
और इसी चिल्लूपार में श्मशान से राजनीति शुरू की राजेश त्रिपाठी ने. ब्राह्मण-राजपूत की जंग खत्म हो चुकी थी. या कहें कि दब चुकी थी. राजपूत नेता वीरेंद्र प्रताप शाही दुनिया छोड़ चुके थे. हरिशंकर तिवारी को कोई चैलेंज नहीं था. पर जनता बौखला रही थी. कुछ देखने को नहीं मिल रहा था. हालात इतने खराब थे कि श्मशान घाट पर दाह-संस्कार करने गए लोग अरार पर से फिसलकर नदी में गिर जाते. गैंगस्टरों का इलाका था. कहते कि श्मशान तक पहुंचाना हमारा काम है, अंतिम संस्कार करना नहीं.राजेश त्रिपाठी ने इस श्मशान घाट के लिए लड़ाई शुरू की. 2005 में वो अड़ गए इसका उद्धार कराने के लिए. सफलता मिली. काम होने लगा. कुछ खुद किया, कुछ दूसरों से करवाया. कुछ दूसरों ने खुद ही कर दिया. मायावती ने 2007 में राजेश त्रिपाठी को विधायकी का टिकट दे दिया. राजेश ने हरिशंकर तिवारी को हरा दिया. राजेश ने 2012 में भी हरिशंकर तिवारी को हरा दिया. बुलेट पर बैलेट की गर्जना भारी पड़ रही थी. पर साहब राजनीति भी कोई चीज होती है. 2017 के चुनाव में चिल्लूपार से हरिशंकर तिवारी के बेटे विनय शंकर तिवारी बसपा से लड़ रहे हैं. राजेश त्रिपाठी भाजपा से लड़ रहे हैं. 2012 में राजेश पर श्मशान घाट को लेकर धांधली का आरोप लगा था. 2016 में राजेश ने पार्टी छोड़ दी. फिर कहा कि एक बाहुबली ने 4 करोड़ रुपये मार्केट में छोड़े हैं मेरी जान की सुपारी के तौर पर. नाम सबको पता है, कोई बोलना नहीं चाहता. फिर कहा कि विनय ने दस करोड़ रुपये दिये हैं मायावती को टिकट के लिए. सच क्या है, कोई नहीं जानता. विनय शंकर कोई बड़ा नाम नहीं हैं राजनीति में. कई चुनाव हारने का क्रेडिट है उनको. पर घमंड जरा भी नहीं है. अभी भी विनम्र भाव से कहते हैं कि जीत रहे हैं. जनता बताती है उनके बारे में. कहती है कि जीते ना जीतें, काम करवा देते हैं. चश्मा पहने एक युवक गंभीरता से बता रहा था कि यहां पर काम करने का एक ही तरीका है. सिस्टम को मथ दीजिए. राजेश त्रिपाठी सुशासन के योद्धा हैं. कुशासन में काम करवाने का तरीका उनको नहीं पता. ये विनय को पता है. तो वोट उन्हीं को जाएगा. क्योंकि हमारा व्यापार-खेती सब यहीं पर है और विनय को इसके बारे में सब पता है. वहीं नौकरी पेशा और नौकरी के इच्छुक लोग कहते हैं कि राजेश को मोदी फैक्टर का फायदा मिलेगा.
इसी में एक और नाम है. रामभुवाल निषाद. विधानसभा में निषाद समुदाय भी बड़ी मात्रा में है. सपा से लड़ रहे हैं. लोग कह रहे थे कि बाकी दोनों इनको कम आंक रहे हैं. इनके लिए ये बढ़िया है. दोनों से तंग लोग चुपचाप वोट कर आएंगे. रामभुवाल दोनों को रगेद देंगे. इस बात पर विनय शंकर तिवारी के सपोर्टर चिढ़ जाते हैं. पर राजेश त्रिपाठी के समर्थक मुस्कराने लगते हैं.रामभुवाल बसपा में थे. मायावती पर पैसे मांगने का आरोप लगाया. फिर भाजपा में आए. पर टिकट नहीं मिला. फिर सपा से टिकट मिल गया. एक फिल्म अभिनेत्री काजल पर हमले के आरोपी हैं ये. पुलिस के मुताबिक हिस्ट्रीशीटर भी रह चुके हैं ये. https://youtu.be/42vWtfMT1Ls चिल्लूपार में कुछ ठीक नहीं है. शाम को दर्जनों युवा मांग निकाल के पान खाते हुए बाइक पर घूम रहे हैं. खेल भी नहीं रहे. पता नहीं कहां जा रहे हैं. पार्टी के नाम पर उत्तेजित हो जाते हैं. पता कुछ नहीं है, पर नाराज बहुत हैं. विपक्षियों से. मुझे डर लगने लगता है. इस बात से कि जिस घमंड से अपने नेता का सम्मान कर रहे हैं, वो घमंड टूट गया तो इनकी आत्मा को क्या कष्ट होगा. जो सिनिकल है वो तो निकल जाता है कि मैंने तो पहले ही कहा था कि कुछ नहीं करेगी ये सरकार. पर ये जोशीले मासूम लोग तो टूट ही जाते होंगे. अपनी बात कहने के लिए शब्द भी नहीं है इनके पास. क्या करेंगे ये लोग. यहां पर कुछ लोग रोड, पानी, बिजली से हटकर बात करते हैं. पानी से याद आया, एक मत से लोग कहते हैं कि पानी यहां का बहुत खराब है. इस बात पर पार्टी-पॉलिटिक्स नहीं होती. तब तक एक ट्रक गुजरता है. लोग एंबुलेंस की बात करने लगते हैं. कहते हैं कि अखिलेश की ये योजना दुरुस्त है. डायल 100 की भी बड़ाई करते हैं. मैं पूछता हूं कि एंबुलेंस की जरूरत पड़ी आपको? तुरंत एक मुस्कुराने लगता है कि शुभ-शुभ बोलिए. मैंने कहा भाई गलत क्यों सोचते हो, घर में बच्चा भी हो सकता है. तभी एक आदमी हिम्मत कर घेरे में अंदर आता है औऱ कहता है कि हां मुझे इसका फायदा हुआ था. मोदी जी के डीमॉनेटाइजेशन पर एकमत नहीं है जनता. बहुतों को तो समझ नहीं आया कि ये क्या था. सबसे अच्छा लगा ऑटो वालों से बात करके. बहुत उत्साह में थे. कह रहे थे कि नाम तो एक ही है, नरेंद्र मोदी. हमको बहुत अपेक्षा है उनसे. https://youtu.be/e55bHBqPfc8 इन सारी बातों के ऊपर राजेश त्रिपाठी का बनवाया श्मशान घाट मुक्तिपथ वाकई में काबिले तारीफ है. बेहद साफ सुथरा. तीन ऑप्शन दिए जाते हैं लोगों को. घाट पर जलाइए. गैसिफायर में जलाइए. चिमनी वाले में जलाइए. पर लोग घाट पर जलाना प्रीफर करते हैं. गैसिफायर का कभी इस्तेमाल हुआ ही नहीं है. घाट के एक तरफ पार्क बनावाया गया है. जहां पर प्रेमी जोड़े विचर रहे थे. चिल्लूपार में ये विहंगम दृश्य रोमांचित कर गया. वहीं बगल में सगाई हो रही थी. एक तरफ लाश जल रही है, एक तरफ त्यौहार मनाया जा रहा है. मैनेजर बता रहे थे कि ईद और बकरीद में तो यहां मेला लग जाता है. बाकी दिनों में भी औरतें खूब आती हैं यहां पर. औरत शब्द पर वो जोर दे रहे थे. कह रहे थे कि कहीं का भी बता दीजिए कि श्मशान घाट पर औरत आती हो. हमारे यहां ये सुविधा है, लोग घूमने भी आते हैं. उद्यान वाकई में सुंदर है. तमाम फूलों में सिंदूर का भी फूल है. मैंने तो टीका भी लगाया. पर घाट पर मन खट्टा हो गया. एक लड़का पिंटू लाश जला रहा था. लोगों ने बताया कि ये उसका पुश्तैनी काम है. करेगा ही. हम लोगों ने पिंटू से पूछा कि कुछ और करने का मन नहीं करता क्या. तो कहने लगा कि मिल जाए तो क्यों नहीं करेंगे. कम उम्र में ही परिवार पालने की जिम्मेदारी आ गई तो क्या करते. पिंटू के लिए घाट की व्यवस्था में कोई जगह नहीं है. कुछ दिनों में उसे घाट से हटना ही पड़ेगा. लोग कहने लगे कि ये करोड़पति है. घर है इसके पास. ये समझ नहीं आया कि क्या हो गया इससे. कमाना चाहता है तो बुरा क्या है. सभी लोग चाहते हैं. ऐसा नहीं है कि लोग समझदार नहीं हैं. हमने पूछा कि डीएम विकास का काम करवाता है, एसपी कानून देखता है, विधायक क्या करता है. आप लोग डीएम से जा के क्यों नहीं कहते अपनी दिक्कतें. तो तुरंत लोग चढ़ बैठे. अपने मतभेद भुलाकर चिल्लाने लगे साहब कमाल की बात कर रहे हैं. अफसर को हम क्या जानते हैं. विधायक से कहेंगे ना. सांसद से कहेंगे ना. चुन के भेजते हैं. मजाक है क्या ये. ये भी पढ़िए: चिल्लूपार के गैंगवार की कहानी यहां पढ़िए
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