- क्या है दावा?
सोशल मीडिया पर ये तस्वीर बहुत वायरल है
- सच्चाई क्या है
जॉन लैंग की तस्वीर
इसी सिलसिले में साल 1854 में उनकी छोटी सी मुलाकात रानी लक्ष्मी बाई से हुई, जिसका ज़िक्र उन्होंने अपनी किताब WANDERINGS IN INDIA के पेज नंबर 94 पर भी किया है.
जॉन लैंग की किताब 'वंडरिंग्स इन इंडिया'
इस किताब में रानी लक्ष्मीबाई की खूबसूरती का बखान लिखा है, जिसका छोटा सा हिस्सा यहां हम हिंदी में लिख रहे हैं. ''महारानी प्रभावशाली महिला थीं. औसत कद-काठी की थीं. शरीर स्वस्थ, ज्यादा मोटी नहीं. कम उम्र की सुंदर गोल चेहरे वाली महिला थीं. खासतौर पर आंखें सुंदर थीं और नाक की बनावट बहुत नाजुक थी. रंग बहुत गोरा नहीं, पर सांवले से दूर था. शरीर पर आभूषण के नाम पर मात्र कानों में ईयररिंग.”
जॉन लैंग की किताब में पेज नंबर 94 पर रानी लक्ष्मीबाई के बारे में लिखा गया है
- पड़ताल में क्या मिला
- अब वायरल हो रही दूसरी तस्वीर देखिए
रानी सिंहासन पर बैठी हैं, मुकुट पहने हुई हैं, चेहरे पर एक अलग ही तरह का तेज है. इस तस्वीर को 1850 का बताया जाता है. और कई जगह पर इस बात का भी ज़िक्र है कि इस तस्वीर को भी हॉफमैन ने खींचा था. यहां तक की 10 मई 1910 को इस तस्वीर के साथ एक पोस्टकार्ड भी पब्लिश हुआ.
10 मई 1910 को प्रकाशित पोस्टकार्ड
- इस तस्वीर की सच्चाई क्या है?
रानी लक्ष्मीबाई के पति राजा गंगाधर राव
अब दावों और हॉफमैन की माने तो 1850 में ये तस्वीर खींची गई. लेकिन इतिहासकार जो लिख गए हैं. उसके मुताबिक़ लक्ष्मीबाई पहले ही बहुत सादा जीवन बिताती थीं, और राजा के मरने के बाद उन्हें झांसी की गद्दी 1853 में मिली थी. फिर 1850 में इस वेषभूषा में तस्वीर खिंचवाने का सवाल ही नहीं उठता.
- अब सवाल उठता है कि किसकी है ये तस्वीर
दाहिने तरफ भोपाल की सुल्तान जहां बेगम की तस्वीर है
- अब अगला दावा
रानी लक्ष्मीबाई की ये तस्वीर भी फेक है
इतिहास गवाह है कि फोटोग्राफी की शुरुआत 1839 में हुई थी. 1840 के बाद से जो ब्रिटिशर्स भारत घूमने आते, वो कैमरा साथ लाते थे. भारत में पहली बार 1854 में 200 मेंबर्स के साथ बॉम्बे फोटोग्राफी सोसायटी की शुरुआत हुई थी.
जॉन लैंग की किताब में इस बात का ज़िक्र है कि कोई अंग्रेज उनसे कभी नहीं मिल पाया. मुलाकात हुई तो मैदान-ए-जंग में. ऐसे में तलवार और ढाल के साथ उनकी ये तस्वीर कोई ले सके. इसकी संभावना कम है.
- नतीज़ा
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