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इंजीनियर राशिद के जेल से बाहर आने से क्या बदल जाएगा? लोकसभा चुनाव वाला जादू चलेगा?

अब्दुल राशिद शेख यानी Engineer Rashid. टेरर फंडिंग केस में राशिद 2019 से जेल में बंद हैं. लोकसभा चुनाव 2024 में उन्हें शानदार जीत मिली थी. अब Jammu Kashmir Vidhan Sabha चुनाव में उनकी पार्टी पूरा जोर लगा रही है.

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इंजीनियर राशीद. (फाइल फोटो: इंडिया टुडे)

तिहाड़ जेल में बंद रहते हुए इंजीनियर राशिद (Engineer Rashid) ने लोकसभा चुनाव 2024 में बड़ी जीत हासिल की. जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को 2 लाख वोटों से हराया. चुनाव के दौरान भी जम्मू-कश्मीर में उनकी ठीक-ठीक चर्चा रही, खासकर युवाओं में. लेकिन उनके विरोधियों ने कहा कि उनकी जीत के कारणों में अलगाववाद और इमोशनल कार्ड का योगदान रहा. हालांकि, इंजीनियर राशिद के बेटे अबरार राशिद ने इन बातों से इनकार किया है. और दावा किया है कि उनकी पार्टी जम्मू-कश्मीर के लोगों के लिए एक नया विकल्प बनकर उभरी है. इस विधानसभा चुनाव में उनकी अवामी इत्तेहाद पार्टी (AIP) ने पूरा जोर लगा दिया है. जानकार ये भी बता रहे हैं कि राशिद, नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) के समीकरण बिगाड़ सकते हैं.

जेल से निकलकर Engineer Rashid ने क्या कहा?

दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने सांसद राशिद को 10 सितंबर को अंतरिम जमानत दे दी. राशिद 2 अक्टूबर तक अंतरिम जमानत पर रहेंगे. उनको ये जमानत जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में प्रचार अभियान के लिए दी गई है. इससे पहले 28 अगस्त को अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश चंद्रजीत सिंह ने बंद कमरे में (आम लोगों के लिए नहीं) सुनवाई के दौरान दलीलें सुनीं और आदेश सुरक्षित रख लिया था. जेल से निकलने के बाद राशिद ने कहा है,

"मैं कश्मीर और कश्मीरियों को संदेश देना चाहता हूं कि हम कमजोर नहीं हैं. कश्मीर के लोग जीतेंगे. 5 अगस्त 2019 को PM मोदी ने जो फैसला (धारा 370 हटाने का) लिया है, वो हमें कतई मंजूर नहीं है. इंजीनियर राशिद को जेल भेजो या जहां चाहो भेजो, लेकिन हमें यकीन है कि हम जीतेंगे..."

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Jammu Kashmir Politics में क्या बदलेगा?

चर्चा हो रही है कि उनके जेल से बाहर आने पर जम्मू-कश्मीर की राजनीति पर असर पड़ सकता है. हालांकि, लोकसभा के चुनाव के दौरान राशिद जेल में ही थे. वो निर्दलीय उम्मीदवार थे. उन्होंने उत्तरी कश्मीर में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई थी. उनके लिए उनके बेटे अबरार ने प्रचार-प्रसार किया. इस चुनाव में हालात कुछ बदले हैं. इस विधानसभा चुनाव में AIP से टिकट की बड़ी मांग है. कई नए लोग उनकी पार्टी से जुड़े भी हैं. 

सवाल है कि इंजीनियर राशिद इतनी बड़ी शख्सियत बने कैसे और लोकसभा चुनाव में उनको इतनी बड़ी जीत मिली कैसे. जम्मू-कश्मीर की वरिष्ठ पत्रकार अनुराधा भसीन इस बारे में कहती हैं,

“लोकसभा चुनाव 2024, कश्मीर के लिए एक अलग तरह का चुनाव था. लंबे वक्त के बाद ये पहला मौका था जब कश्मीरियों को अपनी बात कहने का मौका मिला. और ये मौका वोटों की शक्ल में था. ऐसा लगा कि लोग BJP के प्रति अपने गुस्से के कारण NC या PDP को प्रेफर करेंगे. राशिद के लिए उनकी इमेज काम आई. वो बेबाकी से अपनी बात कहने के लिए जाने जाते हैं.”

Rashid की विक्टिम वाली इमेज?

अनुराधा भसीन कश्मीर टाइम्स की मैनेजिंग एडिटर भी हैं. वो आगे कहती हैं,

“धारा 370 के हटने के बाद से चुनाव तक के समय में कश्मीर के लोग शक्तिहीन (disempower) जैसा महसूस कर रहे थे. राशिद की इमेज भी विक्टिम वाली बन गई. दूसरी बात ये कि राशिद के केस के बारे में चर्चा चली कि ये ‘मनगढ़ंत’ है. इसके कारण उनके साथ लोगों की सहानुभूति जुड़ गई. इसलिए तो लोग खुद ही उनके कैंपेन से जुड़ते चले गए”

बेटे और भाई ने लगाया जोर

क्षेत्रीय मीडिया संस्थान से अबरार राशिद कहते हैं कि उनके पिता इंजीनियर राशिद के लिए जो क्रेज लोकसभा चुनाव के समय था वो अब भी कायम है. वो आगे कहते हैं कि अब सिर्फ उत्तरी कश्मीर में ही नहीं बल्कि सेंट्रल कश्मीर और दक्षिणी कश्मीर में भी उनके पिता को लेकर युवाओं में जोश है. सब उनका साथ दे रहे हैं. उन्होंने कहा कि लोकसभा चुनाव के समय उत्तरी कश्मीर में युवाओं ने खुद ही उनके लिए चुनावी कैंपेन चलाया था. अबरार ने दावा किया कि इस बार दक्षिणी कश्मीर और सेंट्रल कश्मीर में भी ऐसा ही होगा. 

Engineer Rashid का जादू कायम?

NC और PDP ने राशिद की AIP पर BJP के 'टीम B' होने का आरोप लगाया है. और कहा है कि चुनाव लड़ने का उनका एकमात्र उद्देश्य कश्मीरी वोटों को विभाजित करना है. इस पर अनुराधा भसीन कहती हैं,

“लोकसभा चुनाव में इमोशन का एक अहम रोल था. इस बार का माहौल अलग है. इस बात की चर्चा है कि अगर राशिद के कारण वोटों का ज्यादा बंटवारा हुआ तो इसका फायदा BJP को होगा. हालांंकि, लोग मुख्यधारा की पार्टियों से भी नाराज हैं. खासकर PDP से, क्योंकि उन्होंने BJP के साथ मिलकर सरकार बनाई थी. फिर भी यहां लोग  Lesser Evil (कम नुकसानदेह) का विकल्प देख रहे हैं.”

किनको मिला टिकट?

अबरार अकेले नहीं हैं जो ऐसे दावे कर रहे हैं. इंजीनियर राशिद के भाई खुर्शीद अहमद शेख ने सरकारी शिक्षक के पद से इस्तीफा दे दिया है. और पार्टी ने उनको लंगेट सीट से टिकट भी दे दिया है. इस सीट से इंजीनियर राशिद को स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर 2008 में जीत मिली थी. और फिर 2014 में भी इस सीट पर उनको जीत मिली. अब इसी सीट से उनके भाई खुर्शीद अपनी किस्मत आजमा रहे हैं.

ऐसी संभावना है कि खुर्शीद को पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के इरफान पंडितपुरी और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) के सैयद गुलाम नबी से कड़ी टक्कर मिल सकती है. NC-Congress गठबंधन ने इस सीट से इश्फाक अहमद को मैदान में उतारा है. डॉ. कलीमुल्लाह जो जमात-ए-इस्लामी नेता गुलाम कादिर लोन के बेटे हैं, इस सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर मैदान में हैं.

Langate सीट पर किसका कब्जा रहा है?

लंगेट सीट कभी नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) का गढ़ रही थी. 1977 और 1996 के बीच लगातार चार बार यहां NC को जीत मिली. 1999 के उपचुनावों में, NC से PDP में आए उम्मीदवार एमएस पंडितपुरी को यहां जीत मिली. जबकि 2002 में NC के शरीफ-उद-दीन शरीक जीते थे. राशिद ने पहली बार 2008 के चुनावों में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में विधानसभा सीट जीती और 2014 के चुनावों में इसे बरकरार रखा.

NC और PDP का काउंटर क्या है?

इंडिया टुडे से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार अशरफ वानी अपनी रिपोर्ट में लिखते हैं कि AIP की तुलना में जम्मू-कश्मीर की पारंपरिक पार्टियां अपने गढ़ तक ही सीमित नजर आ रही हैं. AIP ने 35 सीटों पर अपने उम्मीदवारों के नाम की भी घोषणा कर दी है. NC और PDP कई तरह से AIP को काउंटर करने की कोशिश कर रहे हैं. BJP की ‘B टीम’ के अलावा राशिद की पार्टी पर कई और सवाल भी उठाए गए हैं. अनुराधा कहती हैं,

“दूसरे दलों ने सवाल उठाए हैं कि आखिर इतने कम समय में राशिद की पार्टी को इतने संसाधन मिले कैसे. कश्मीर के लोग राजनीतिक रुप से जहीन होते हैं और इन मामलों को गंभीरता से देखते हैं.”

जेल में क्यों हैं Engineer Rashid?

पूरा नाम है- अब्दुल राशिद शेख. टेरर फंडिंग केस में राशिद 2019 से जेल में बंद हैं. 28 अगस्त को उनकी बेल का विरोध करते हुए NIA ने कहा था कि वो अलगाववादी विचारधारा को फैलाने के लिए पब्लिक प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करते रहे हैं. इसके अलावा उन पर कई आतंकी संगठनों को संरक्षण देने का भी आरोप लगा है.

एक कश्मीरी बिजनेसमैन जहूर वटाली के खिलाफ जांच के दौरान राशिद का नाम सामने आया था. जहूर पर NIA ने कश्मीर घाटी में आतंकवादी संगठनों और अलगाववादियों को फाइनेंशियली सपोर्ट करने का आरोप लगाया. NIA ने इस मामले में कश्मीरी अलगाववादी नेता यासीन मलिक, लश्कर-ए-तैयबा के संस्थापक हाफिज सईद और हिजबुल मुजाहिदीन के सैयद सलाहुद्दीन के साथ कई लोगों पर आरोप लगाया था. एक अदालत ने मलिक को 2022 में आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी.

राशिद को जब 2024 में सांसदी के चुनाव में जीत मिली तो उनकी खूब चर्चा हुई. चर्चा इस बात पर हुई कि जेल में रहते हुए वो शपथ ग्रहण कैसे करेंगे. लेकिन जैसा कि चुनाव जीतने के बाद शपथ लेना उनका अधिकार था, उन्हें मौका मिला. 5 जुलाई को अदालत ने उन्हें शपथ ग्रहण करने के लिए परोल दी. और उन्होंने शपथ ग्रहण की.

Jammu Kashmir की राजनीति

16 अगस्त को इलेक्शन कमीशन ने जम्मू-कश्मीर में तीन चरणों में विधानसभा चुनाव की घोषणा की. ये चुनाव 10 सालों के अंतराल के बाद हो रहा है. पहले चरण का चुनाव 18 सितंबर को, दूसरे चरण का चुनाव 25 सितंबर को और तीसरे चरण का चुनाव 1 अक्टूबर को होना है. वोटों की गिनती 8 अक्टूबर को होनी है.

चरणतारीखसीट
पहला चरण18 सितंबर24
दूसरा चरण25 सितंबर26
तीसरा चरण1 अक्टूबर40

धारा 370 के हटाए जाने के बाद लद्दाख एक केंद्र-शासित प्रदेश बन गया है.

आखिरी परिसीमन

साल 1995 में राज्य की विधानसभा में कुल 111 सीटें थीं. इसी साल यहां आखिरी बार परिसीमन किया गया था. कश्मीर क्षेत्र के लिए 46 सीटें थीं, जम्मू के लिए 37 और लद्दाख के लिए चार. (Pok) वाली 24 सीटें विधानसभा में खाली रखी जाती हैं. इस तरह वहां 87 सीटों पर चुनाव होता था. ऐसी चर्चा चली थी कि 2005 में जम्मू-कश्मीर में फिर से परिसीमन होगा. लेकिन उससे पहले 2002 में फारूक अब्दुल्ला की सरकार के एक फैसले से ऐसा नहीं हुआ. तत्कालीन सरकार ने संविधान की धारा-47(3) में संशोधन करते हुए 2026 तक परिसीमन पर रोक लगा दी थी. लेकिन जब जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा छिन गया तो ये अधिकार भी केंद्र से पास चला गया.

इसके बाद 6 मार्च 2020 को सुप्रीम कोर्ट की रिटायर्ड जज रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में एक परिसीमन आयोग का गठन हुआ. इस आयोग में तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा और उप चुनाव आयुक्त चंद्र भूषण कुमार भी थे. इस आयोग की रिपोर्ट के बाद मई 2022 में चुनाव आयोग ने कुछ बदलावों की घोषणा की. जम्मू-कश्मीर में विधानसभा सीटों की संख्या बढ़ा कर 90 कर दी गई. इसमें जम्मू क्षेत्र की 37 सीटों को बढ़ाकर 43 और कश्मीर क्षेत्र की 46 सीटों को 47 कर दिया गया. इन 90 सीटों में से अनुसूचित जाति (SC) के लिए 7 और अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए 9 सीटें आरक्षित की गईं.

आखिरी चुनाव

साल 2014 में केंद्र में BJP की बड़ी जीत हुई थी. इसी साल नवंबर-दिसंबर में जम्मू-कश्मीर में विधानसभा का आखिरी चुनाव हुआ. कुल 87 सीटों पर. BJP को 25 सीटों पर जीत मिली. ये सारी सीटें जम्मू डिवीजन की थी. कश्मीर और लद्दाख में BJP का खाता नहीं खुल पाया. PDP को 28 सीटें, NC को 15 सीटें और कांग्रेस को 12 सीटें मिलीं. 3 निर्दलीय और 4 अन्य दलों के नेताओं को जीत मिली थी.

वीडियो: जम्मू कश्मीर में आतंकियों के साथ हुई मुठभेड़ में कैप्टन दीपक सिंह शहीद