साल 2013. अन्ना आंदोलन के बाद दिल्ली का पहला विधानसभा चुनाव. राजधानी की सियासत में कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाले और भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन की गूंज सुनने को मिल रही थी. शहर की फिजा में बदलाव की बयार साफ दिखी. वसंत की आहट तले हुए चुनाव में एक पुराना दरख्त झड़ गया. 15 सालों से सत्ता में काबिज शीला दीक्षित का शासन अतीत हो गया. ताजी उम्मीदों पर नई कोपल की तरह एक पार्टी का उदय हुआ. आम आदमी पार्टी 28 सीटें जीतकर भी सत्ता पर आसीन हो गई.
जेल में रहते हुए CM, लेकिन बाहर आए तो इस्तीफा, इन वजहों से भी हारे केजरीवाल और AAP
2015 और 2020 में 60 से ज्यादा सीटें जीत कर AAP ने बीजेपी को किनारे लगा दिया. फिर आया साल 2025 का विधानसभा चुनाव. इस बार वसंत की आमद हो चुकी थी. और उसका रंग भी दिखा. यानी जो पुराना हो चुका था, जनता ने उसकी विदाई की इबारत लिख दी. 12 सालों से दिल्ली की सत्ता में रही AAP का शासन बीत गया.

अगले दो और चुनावों में पार्टी ने और मजबूत जीत के साथ सत्ता वापसी की. 2015 और 2020 में 60 से ज्यादा सीटें जीत कर AAP ने बीजेपी को किनारे लगा दिया. फिर आया साल 2025 का विधानसभा चुनाव. इस बार वसंत की आमद हो चुकी थी. और उसका रंग भी दिखा. यानी जो पुराना हो चुका था, जनता ने उसकी विदाई की इबारत लिख दी. 12 सालों से दिल्ली की सत्ता में रही AAP का शासन बीत गया. अब जानना ये है कि पिछले दो चुनावों में अपराजेय सी दिख रही AAP का किला आखिर इस चुनाव में ढह कैसे गया?
सत्ता विरोधी लहरसाल 2012 में आम आदमी पार्टी बनी. और अगले साल 2013 में पावर में आ गई. पहली बार कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनी. लेकिन केजरीवाल ने सिर्फ 49 दिनों तक सरकार चलाकर इस्तीफा दे दिया. फिर 2015 के चुनावों में 70 में से 67 सीटें जीतकर केजरीवाल ने शानदार वापसी की. 2020 में भी उनकी पार्टी को प्रचंड बहुमत मिला, पार्टी ने 62 सीटें अपने नाम कीं.
AAP के दो कार्यकाल के शासनकाल से उपजी सत्ता विरोधी लहर का दबाव AAP की कैंडिडेट लिस्ट से भी दिख रहा था. सूची में आखिरी मिनट तक बदलाव किए गए. लेकिन इससे चुनाव पर कोई असर नहीं पड़ने वाला था. सड़क और सीवर जैसे बुनियादी ढांचे में सुधार ना होना, पॉल्यूशन कंट्रोल में विफलता और कई चुनावी वादे पूरे करने में असफलता के चलते जनता AAP और उसके मुखिया अरविंद केजरीवाल के खिलाफ मन बना चुकी थी.
घोटाले और भ्रष्टाचार के आरोपआम आदमी पार्टी भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़े हुए आंदोलन से उपजी पार्टी मानी जाती थी. लेकिन सत्ता में आने और चले जाने के बीच पार्टी खुद भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरती दिखी. अरविंद केजरीवाल समेत उनकी सरकार के कई मंत्री करप्शन के केसों का सामना कर रहे हैं. इनमें सबसे बड़ा मामला है कथित शराब घोटाले का, जिसमें अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया समेत पार्टी के कई अहम सहयोगी और नेताओं की गिरफ्तारी हो चुकी है.
हालांकि अभी इस मामले में आरोप साबित नहीं हुए हैं, लेकिन इसने AAP की भ्रष्टाचार विरोधी छवि के खिलाफ सियासी प्रतिद्वंद्वियों को बार-बार बड़े हमले करने के मौके दिए हैं.
बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने ‘शीशमहल’ को बड़ा मुद्दा बनाया. बीजेपी ने अरविंद केजरीवाल पर सीएम आवास के रेनोवेशन को लेकर 45 करोड़ रुपये खर्च करने का आरोप लगाया. पार्टी ने इसको चुनावी मुद्दे के तौर पर खूब भुनाया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने अपनी चुनावी रैलियों में इस मुद्दे को लेकर AAP को निशाने पर रखा. अब चुनाव नतीजों से इस सवाल को बल मिला है कि क्या बदलाव की राजनीति करने का दावा करने वाले अरविंद केजरीवाल का सीएम आवास को रेनोवेट कराना जनता को रास नहीं आया.
भ्रष्टाचार के आरोप के बावजूद कुर्सी पर बने रहेAAP के नेता किसी भी अन्य नेता पर भ्रष्टाचार का आरोप लगते ही इस्तीफे की मांग करते थे. लेकिन अरविंद केजरीवाल पर जब शराब घोटाले के आरोप लगे तो उन्होंने कहा कि वो जेल से ही सरकार चलाएंगे. उनको इस्तीफा देने में 117 दिन लग गए. वो भी तब जब सुप्रीम कोर्ट का आदेश आया कि वो किसी भी डॉक्यूमेंट पर साइन नहीं कर सकते हैं. चुनाव परिणाम देखकर ये सवाल भी उठेगा कि क्या केजरीवाल के इस फैसले का जनता के बीच अच्छा संदेश नहीं गया.
साल 2013 में उन्होंने 49 दिन की सरकार चलाने के बाद इस्तीफा दिया था. इस फैसले के बाद ही उनकी ‘कट्टर ईमानदार’ वाली छवि बननी शुरू हुई थी और इसका फायदा भी उनको अगले चुनाव में मिला. लेकिन इस बार मामला अलग रहा. केजरीवाल ने ना जेल जाने से पहले इस्तीफा दिया, ना ही जेल में रहते हुए. लेकिन जेल से बाहर आकर उन्होंने इस्तीफे की घोषणा कर दी. इस बार ये पॉलिटिकल स्टंट बैकफायर कर गया.
मिडिल क्लास की अनदेखीAAP सरकार के कुछ फैसलों और योजनाओं की वजह से पार्टी की छवि ‘गरीबों के लिए काम करने वाली पार्टी’ की बनी थी. 200 यूनिट फ्री बिजली, मोहल्ला क्लिनिक और महिलाओं के लिए मुफ्त बस यात्रा इन वेलफेयर स्कीम्स में शामिल रहीं. इन्होंने 2015 और 2020 में मिली जीत में अहम भूमिका निभाई. लेकिन बुनियादी ढांचे के विकास में कोई खास काम नहीं हुआ. बीते सालों में मोहल्ला क्लिनिकों में खराब प्रबंधन, दवाइयों की कमी जैसी समस्याओं ने मिडिल क्लास को परेशान किया है. कई मोहल्ला क्लिनिक बंद भी हुए हैं.
उधर बीजेपी ने अपने रेवड़ी कल्चर वाले नैरेटिव में बदलाव कर दिया. चुनाव आते-आते पार्टी ने इस मुद्दे पर तीखी बयानबाजी कम कर दी. बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने तो यहां तक कह दिया कि अगर उनकी पार्टी सत्ता में आई तो मौजूदा सरकार की अच्छी योजनाओं को जारी रखा जाएगा. इससे कहीं ना कहीं मुफ्त योजनाओं के खत्म होने का डर मिडिल क्लास के वोटरों के मन से चला गया.
इसके बाद 8वें वेतन आयोग और बजट में 12 लाख रुपये तक की सैलरी पर इनकम टैक्स नहीं लगाने की घोषणा करके बीजेपी ने AAP के मिडिल क्लास वोट पर बड़ी सेंधमारी की. केंद्र के इस फैसले ने केजरीवाल से पहले से नाराज मिडिल क्लास को उनसे दूर जाने का एक और बहाना दे दिया.
इसके अलावा मिडिल क्लास का एक हिस्सा जो 'ब्रांड अरविंद केजरीवाल' यानी उनकी कट्टर ईमानदार नेता की छवि से आकर्षित हुआ था, उसका भी उनसे मोहभंग होता दिखा है. केजरीवाल ने चुनाव से पहले अपने भाषणों में मिडिल क्लास की चिंताओं को एड्रेस करने की कोशिश की, लेकिन शायद तब तक देर हो चुकी थी.
खराब सड़क और बजबजाते सीवरदिल्ली की सड़कों को यूरोप जैसा बनाने का AAP का दावा पूरे पांच साल फ्लॉप दिखा. हर साल बारिश के सीजन में इसकी पोल खुलती रही. पीने का साफ पानी अभी भी दिल्ली की सभी जनता को उपलब्ध नहीं है. सीवर की समस्या आज भी है. ओवरफ्लो हो रही नालियां, गड्ढों वाली सड़क और अनियमित कचरा प्रबंधन ने वोटर्स को काफी परेशान किया.
MCD पर कब्जा होने के बाद भी दिल्ली के बुनियादी ढांचे में बेहतरी होती नहीं दिखी. नाम नहीं छापने की शर्त पर एक सीनियर AAP नेता ने स्वीकार किया कि उनकी पार्टी सड़कों की स्थिति में सुधार नहीं कर पाई. कचरा प्रबंधन भी बेहतर नहीं रहा. इसके अलावा लल्लनटॉप के लिए चुनाव कवर कर रहे विपिन किराड ने बताया कि सड़क और सीवर की समस्या पहले अनिधिकृत कॉलिनियों की समस्या होती थी. लेकिन इस बार ये पूरी दिल्ली में एक मुद्दा बनकर उभरा है.
कांग्रेस ने खेल बिगाड़ा?साल 2024 के लोकसभा चुनाव में AAP और कांग्रेस साथ लड़े. नतीजे अपेक्षित नहीं रहे. इसके बाद दोनों के संबंधों में दरार आई. पहले हरियाणा और फिर दिल्ली में इनका गठबंधन नहीं हो पाया. हरियाणा के नतीजों पर तो इसका कोई खास असर नहीं दिखा. लेकिन दिल्ली चुनाव के नतीजे बता रहे हैं कि गठबंधन नहीं कर पाने का डिसीजन AAP के लिए किसी-किसी सीट पर आत्मघाती साबित हुआ.
AAP के संस्थापक अरविंद केजरीवाल अपनी नई दिल्ली सीट हार गए. उनको बीजेपी के प्रवेश वर्मा ने पटखनी दी. गौर करने वाली बात है कि इस सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार संदीप दीक्षित को लगभग उतने ही वोट मिले जितने वोट से अरविंद केजरीवाल को हार मिली है. कांग्रेस के संदीप दीक्षित को 4568 वोट मिले. जबकि केजरीवाल की हार का अंतर 4089 वोटों का रहा.
मनीष सिसोदिया भी चुनाव हारे. उनकी हार का अंतर मात्र 600 वोटों का रहा. इस सीट से भी कांग्रेस उम्मीदवार का वोट उनको ठीक-ठाक जीत दिलाने के लिए पर्याप्त था, अगर दोनों दलों का तालमेल होता. इस सीट से कांग्रेस कैंडिडेट फरहाद सूरी को 7350 वोट मिले. इन दो सीटों के अलावा बादली, नांगलोई जाट, मादीपुर, और द्वारका जैसी सीटों में भी इसी तरह के रुझान देखने को मिले.
हालांकि कांग्रेस का कहना है कि वो AAP की हार के लिए जिम्मेदार नहीं है. पार्टी प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने कहा कि AAP को जीत दिलाना कांग्रेस का काम नहीं है.
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