कांग्रेस ने तीन राज्यों में फतह हासिल की. राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़. राजस्थान के सीएम बने अशोक गहलोत. मध्य प्रदेश के बने कमलनाथ. पर छत्तीसगढ़ का सीएम चुनने में कांग्रेस आलाकमान को बहुत मशक्कत करनी पड़ी. आखिरी मुहर लगी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल के नाम पर. सबसे छोटे राज्य ने सबसे ज्यादा तड़पाया. 5 दिन लग गए. 16 दिसंबर को फैसला हुआ. वैसे भी ये आखिरी दिन था. क्योंकि 17 दिसंबर को तीनों राज्यों में शपथ ग्रहण होना था. दो जगह हो भी गया है. पहले हुआ राजस्थान में जहां अशोक गहलोत ने सीएम तो सचिन पायलट ने डिप्टी सीएम की शपथ ली. फिर कमलनाथ ने मध्यप्रदेश के सीएम की शपथ ली. एक बार फिर लास्ट में नंबर लगा है भूपेश बघेल का. वो 17 दिसंबर की शाम 5:30 के करीब शपथ लेंगे. रायपुर के साइंस कॉलेज मैदान में.
भूपेश बघेल हालातों की पैदाइश थे लेकिन जिम्मेदारी मिलने पर उन्होंने खुद को साबित करके दिखाया.
साइंस कॉलेज में शपथ ग्रहण क्यों?
राहुल गांधी ने इसी साइंस कॉलेज मैदान से छत्तीसगढ़ में अपने चुनावी अभियान की शुरुआत की थी. तारीख थी 22 अक्टूबर 2018. किसान हुंकार रैली का आयोजन हुआ था. इसमें किसानों से कर्ज माफी का वादा किया गया था जो चुनाव में काम आया. ऐसे में कांग्रेस इस मैदान को बदलाव की शुरुआत के केंद्र के रूप में देख रही है. टीएस सिंह देव ने भी इसी मैदान का सुझाव दिया था. इससे पहले की कांग्रेस सरकार अजीत जोगी की थी जिन्होंने पुलिस परेड मैदान में शपथ ली थी. रमन सिंह ने भी पुलिस ग्राउंड पर शपथ ली थी.
क्यों इतनी देर हुई नाम चुनने में?
छत्तीसगढ़ का सीएम चुनने में इतनी देर क्यों लगी. 10 से ज्यादा मीटिंगें क्यों करनी पड़ीं. ये सवाल खूब चल रहा है. तो इसका जवाब है चार नाम. भूपेश बघेल, टीएस सिंह देव, ताम्रध्वज साहू और चरण दास महंत. और इनके बीच चली रस्साकशी. पहले खबर आई कि भूपेश बघेल के नाम पर कई बड़े नेता तैयार नहीं हैं. तो टीएस सिंह देव के नाम ने जोर पकड़ा. टीएस के नाम पर बघेल ने नाराजगी जताई. इन दोनों के बीच खींचतान देख सांसद और दुर्ग ग्रामीण सीट से विधायक चुने गए ताम्रध्वज साहू का नाम सामने आया. दिल्ली कोटरी के बड़े नेता जैसे पीएल पुनिया, मोतीलाल वोरा और मल्लिकार्जुन खड़गे साहू के नाम पर तैयार भी हो गए. नाम एकदम फाइनल होता देख दो दुश्मन साथ हो गए. टीएस और भूपेश. दोनों पहुंचे राहुल गांधी के पास. साफ किया कि हम दोनों में से ही किसी को चुना जाए. तीसरा नाम बर्दाश्त नहीं. वो एक दूसरे का विरोध नहीं करेंगे. इस तरह ताम्रध्वज की दावेदारी खत्म हुई. और अंतिम नाम बघेल का तय हुआ.
भूपेश बघेल के हिस्से जंग लगी कांग्रेस आई थी. उसे धारदार हथियार बनाने के लिए उन्होंने काफी मेहनत की.
क्यों चुने गए भूपेश बघेल -
# कांग्रेस संगठन को मजबूत करने का श्रेय. 2013 के विधानसभा चुनाव और फिर 2014 लोकसभा की हार के बाद प्रदेश कांग्रेस की कमान संभाली और लड़ने लायक बनाया.
# रमन सिंह की सरकार के खिलाफ मुखर रहे. सरकार विरोधी लहर को खड़ा करने में सफल रहे. सड़क पर दिखे. घोटालों पर सरकार को घेरा. कार्यकर्ताओं और बड़े नेताओं को एकजुट किया. अजीत जोगी और उनके परिवार को किनारे लगाया.
# ओबीसी समुदाय से आते हैं. छत्तीसगढ़ में इनकी बड़ी तादाद. 2019 के लिहाज से ये कदम इस समुदाय को भी खींचेगा. साथ ही बघेल का अग्रेसिव नेतृत्व मिलेगा.
और कौन साथ में ले सकता है शपथ -
1. टीएस सिंह देव - नेता प्रतिपक्ष रहे हैं. घोषणा पत्र तैयार किया था. अंबिकापुर सीट से चुनाव लड़े और 50 हजार से ज्यादा वोटों से जीते. सीएम पद के दूसरे सबसे प्रबल दावेदार थे.
टीएस सिंहदेव के घोषणापत्र ने भी कांग्रेस की जीत में अहम रोल अदा किया.
2. ताम्रध्वज साहू - छत्तीसगढ़ कांग्रेस की ओबीसी विंग के अध्यक्ष हैं और छत्तीसगढ़ के इकलौते कांग्रेस सांसद हैं. इस विधानसभा चुनाव में दुर्ग ग्रामीण से चुनाव लड़े और जीते. सीएम पद के दावेदार थे.
इनके अलावा तीसरा बड़ा नाम है चरण दास महंत का. उनका नाम विधानसभा अध्यक्ष के तौर पर चल रहा है. रही बात मंत्रियों की तो छत्तीसगढ़ में कुल 13 मंत्री ही बन सकते हैं. दो के नाम तो आपने ऊपर पढ़ ही लिए. बचे 11 पद. इनके दावेदार ये नाम हैं -
सत्यनारायण शर्मा, रविंद्र चौबे, धनेन्द्र साहू, शिव डहरिया, अमरजीत भगत, खेलसाय सिंह, लखेश्वर बघेल, उमेश पटेल, प्रेमसाय टेकाम, मोहम्मद अकबर, अमितेष शुक्ल, ताम्रध्वज साहू, अरुण वोरा, कवासी लखमा और अनिला भेड़िया.
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