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'नया छत्तीसगढ़' बनाने के वादे पर सरकार बनाई, भूपेश बघेल ने इन वादों को पूरा किया ही नहीं

'गढ़बो नवा छत्तीसगढ़' के नारे के साथ 5 साल पहले सत्ता में आई कांग्रेस ने कुछ वादे पूरे तो किये. लेकिन कुछ बड़े वादों को कागज पर ही छोड़ दिया. इनमें एक बड़ा वादा एक लाख सरकारी नौकरी का भी है.

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छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल (फोटो- पीटीआई)

छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के लिए 7 नवंबर को पहले चरण की वोटिंग हो रही है. वोटिंग से ठीक दो दिन पहले कांग्रेस ने अपना घोषणा पत्र जारी किया. कहा जा रहा है कि कांग्रेस 'वेट एंड वॉच' की स्थिति में खड़ी थी. यानी बीजेपी के घोषणा पत्र का इंतजार कर रही थी. कांग्रेस पार्टी ने एक बार फिर किसानों की कर्जमाफी का बड़ा वादा किया है. किसानों के मुद्दों के आसपास कई और वादे किये गए हैं. लेकिन हमारी नजर चली गई 5 साल पुराने कांग्रेस के उन वादों पर जिसके आधार पर "नया छत्तीसगढ़" बनाने का वादा किया गया था.

2018 में कांग्रेस का नारा था- 'गढ़बो नवा छत्तीसगढ़'. कुल 36 लक्ष्य रखे गए थे. इनमें कई टारगेट को सरकार ने पूरा भी किया जैसे किसानों की कर्जमाफी, धान की कीमत आदि. इस बार भी धान की खरीद को लेकर बीजेपी और कांग्रेस रेस में दौड़ती नजर आई. बीजेपी ने सितंबर महीने में बघेल सरकार के खिलाफ 104 पन्नों का "आरोप पत्र" जारी किया था. इसमें आरोप लगाया गया कि कांग्रेस ने 36 वादों में 19 को पूरा नहीं किया. राजनीतिक दलों के आरोपों को छोड़ दें. अगर आप आंकड़ों को खंगालेंगे तो पता चलेगा कि कांग्रेस ने कुछ बड़े वादों को कागज पर ही छोड़ दिया.

वादे जो पूरे नहीं हुए....

1 लाख सरकारी नौकरी: कांग्रेस का वादा था कि राज्य सरकार की नौकरियों में आउटसोर्सिंग बंद होगी. विभागों के 1 लाख रिक्त पदों को जल्द भरा जाएगा. इस साल 18 जुलाई को जब विधानसभा में जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ की विधायक डॉ रेणु जोगी ने सरकार से सवाल किया कि कितने लोगों को सरकारी नौकरी दी गई तो कोई जवाब नहीं मिला. मुख्यमंत्री का जवाब था कि “जानकारी इकट्ठा की जा रही है.” 

अब इस बार के घोषणा पत्र में कांग्रेस ने इसकी चर्चा भी नहीं की है. वहीं, बीजेपी ने घोषणा पत्र में वादा किया है कि अगर छत्तीसगढ़ में BJP की सरकार बनी तो 2 साल के अंदर 1 लाख खाली सरकारी पदों पर भर्ती होगी.

कर्मचारियों को नियमित करने का वादा- 2018 के चुनाव में कांग्रेस के एक प्रमुख वादों में था जो अभी तक पूरा नहीं हुआ है. पिछले दो सालों में करीब 1.50 लाख ‘संविदा’, दैनिक वेतनभोगी और आउटसोर्स कर्मचारियों ने इस मुद्दे पर विरोध प्रदर्शन किया है. लेकिन अब तक उन्हें स्थायी नहीं किया गया. चुनावी साल में बघेल सरकार ने संविदा कर्मियों की सैलरी 27 परसेंट बढ़ाने की घोषणा की. लेकिन उनकी मांग अब भी वही है कि उन्हें नियमित किया जाए. बीजेपी ने इस मुद्दे को चुनाव से पहले खूब उठाया. लेकिन इस बार बीजेपी और कांग्रेस, दोनों के घोषणा पत्र से ये मुद्दा गायब है.

शराब की ब्रिकी पर पूर्ण प्रतिबंध- घोषणा पत्र में ये बड़ा वादा था. कांग्रेस द्वारा शराबबंदी के प्रमुख चुनावी वादे को पूरा नहीं करने के लिए भाजपा ने बघेल सरकार पर निशाना साधा है. माना जाता है कि इस वादे से कांग्रेस को 2018 में महिलाओं का वोट पाने में मदद मिली थी. इस पर अब तक कोई कदम नहीं उठाया गया. इस पर कांग्रेस की दलील है कि शराबबंदी को लेकर सरकार प्रतिबद्ध है लेकिन नोटबंदी की तरह, बिना किसी दूरगामी सोच और रणनीति के ऐसा कोई भी कदम नहीं उठाया जाएगा.

कांग्रेस सत्ता में वापसी की कोशिश कर रही है (फोटो- पीटीआई)

50 हजार शिक्षकों की भर्ती का वादा- लेकिन ये भी नहीं हुआ. इस साल जुलाई महीने में मुख्यमंत्री ने खुद कहा कि पिछले साढ़े चार सालों में 26 हजार 989 शिक्षकों की भर्तियां निकाली गईं. पहले 14 हजार 500 भर्तियां निकलीं. इनमें से 10 हजार 834 शिक्षकों को स्कूलों में नियुक्तियां दी गईं. फिर इस साल 12 हजार 489 शिक्षकों की और भर्तियां निकाली है, जो अभी प्रक्रिया में है.

लोकपाल अधिनियम लागू किया जाएगा- वादा किया गया था कि भ्रष्टाचार से निपटने के लिए मुख्यमंत्री, सरकार के मंत्रियों और अधिकारियों को लोकपाल अधिनियम के तहत लाया जाएगा. भ्रष्टाचार के मामलों में उनके खिलाफ भी कार्रवाई की जाएगी. लेकिन ऊपर के उन वादों की तरह सरकार इसे भी भूल गई.  

आवास नहीं देने का आरोप

इसके अलावा भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली सरकार कई मोर्चों पर फेल रही है. कांग्रेस ने इस बार घोषणा पत्र में एलान किया है कि 17.5 लाख परिवार को आवास दिया जाएगा. इसे 'मुख्यमंत्री आवास न्याय योजना' के तहत पूरा किया जाएगा. लेकिन आवास नहीं देने को लेकर सरकार पर पहले से आरोप लगते रहे हैं. 

केंद्र सरकार ने भी बघेल सरकार पर पीएम आवास योजना के लिए फंड जारी नहीं करने का आरोप लगाया. अगस्त 2022 में अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस में रिपोर्ट छपी थी. इसके मुताबिक, केंद्रीय ग्रामीण विकास सचिव नागेंद्र नाथ सिन्हा ने छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव अमिताभ जैन को चिट्ठी लिखी थी. इसमें राज्य सरकार को चेतावनी दी गई थी कि अगर राज्य सरकार योजना को सही से लागू नहीं करेगी तो केंद्र अपना समर्थन वापस लेने पर विचार करेगा. PM आवास योजना के लिए आने वाले खर्च को केंद्र और राज्य 60:40 के अनुपात में साझा करते हैं.

अखबार के मुताबिक, केंद्र ने वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण के तहत 7.8 लाख घरों के निर्माण का लक्ष्य रखा था. लेकिन, केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार छत्तीसगढ़ सरकार ने अपने हिस्से का 562 करोड़ रुपए का फंड जारी नहीं किया, जिस कारण इस योजना में कोई संतोषजनक काम नहीं हो सका. छत्तीसगढ़ सरकार के चलते केंद्र सरकार 7.8 लाख घरों के निर्माण के अपने लक्ष्य को पूरा नहीं कर पाई. इससे पहले 2020-21 में भी केंद्र सरकार ने 6.4 लाख घरों का निर्माण लक्ष्य रखा था. लेकिन, छत्तीसगढ़ सरकार ने अपने हिस्से का फंड जारी करने में वित्तीय बाधाओं का हवाला दिया और 4.9 लाख घर न बना पाने की बात कही.

जुलाई 2022 में टीएस सिंह देव ने भी पंचायती राज विभाग से इस्तीफा देते हुए यही कहा था कि राज्य सरकार द्वारा फंड न दिए जाने के कारण 8 लाख लोगों को घर नहीं मिल पाए.

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल (फोटो- पीटीआई)

हालांकि भूपेश बघेल ने हाल में दी लल्लनटॉप के साथ बातचीत में दावा किया कि बाद में 3 हजार करोड़ रुपये जारी किए गए. साढ़े सात लाख लोगों को पहली किस्त दे दी गई है. मुख्यमंत्री ने दलील दी कि उनकी प्राथमिकता कुछ और थी इसलिए देरी हुई. उन्होंने इसके लिए कोविड-19 महामारी का भी हवाला दिया.

नक्सल प्रभावित पंचायतों को फंड नहीं मिला

पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने राज्य की सबसे बड़ा समस्या को लेकर भी एक वादा किया था. नक्सल समस्या. इसके समाधान के लिए नीति तैयार करने की बात कही गई थी. साथ ही नक्सल प्रभावित पंचायत को सामुदायिक विकास कार्यों के लिए एक करोड़ रुपये देने का वादा किया गया था. इसी साल सरकार ने विधानसभा में खुद बताया कि इन पंचायतों को अलग से राशि का वितरण नहीं हुआ है.

एक तथ्य ये भी है कि भूपेश बघेल सरकार पर पिछले 5 सालों में कर्जा काफी ज्यादा बढ़ा है. छत्तीसगढ़ सरकार पर अभी 82,125 करोड़ रुपये का कर्जा भी है. राज्य गठन के बाद छत्तीसगढ़ सरकार ने अब तक 1.05 लाख करोड़ रुपये का कर्ज लिया है. इनमें से 54,491 करोड़ का कर्जा सिर्फ भूपेश सरकार के कार्यकाल में लिया गया है. यानी राज्य गठन के बाद सरकारों ने जितना कर्जा लिया, उनमें भूपेश सरकार की हिस्सेदारी 66.35 फीसदी है. मार्च 2023 में विधानसभा के भीतर भूपेश बघेल ने बताया कि कर्ज के लिए सरकार हर महीने औसतन 460 करोड़ का ब्याज भुगतान कर रही है.

बहरहाल, दिल्ली और दूसरे राज्यों से हेलीकॉप्टर इस जंगल से भरे राज्य में लगातार उतर रहे हैं. नेताओं की चमकती हुई तस्वीरें आ रही हैं. राजनीतिक दल वादों और दावों को दोहराते नजर आ रहे हैं. लेकिन राज्य के लोगों को इन वादों के पूरे होने का भी इंतजार है.

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