'कैप्टन पंजाब दा' - ये पंजाब कांग्रेस की टैगलाइन थी. विधानसभा चुनाव के लिए. 10 साल बाद दोबारा से सत्ता हथियाने के लिए. डूबती कांग्रेस को पार लगाने के लिए. और बतौर कैप्टन कहें तो 'बाहरी' यानी आम आदमी पार्टी को बताने की कि ये सूबा उनका नहीं है. 'उनका' से कैप्टन का मतलब संजय सिंह, दुर्गेश पाठक जैसे आम आदमी पार्टी के कई दिग्गज नेताओं से था, जो पंजाब से नहीं थे और पिछले एक साल से यहीं डेरा जमाए बैठे थे. खैर ये बाहरी-अंदरूनी की लड़ाई 11 मार्च को खत्म हो गई. सामने आया एक ही चेहरा. महाराजा पटियाला, कैप्टन अमरिंदर सिंह का. कांग्रेस को 117 में से 77 सीटें मिलीं. ये कैप्टन के लिए उनके राजनीतिक करियर की सबसे बड़ी जीत थी.
रूह का कांग्रेसी होना शायद सिद्धू को डिप्टी सीएम बनाने के लिए नाकाफी था
बेहद सादे ढंग से हुए समारोह में कैप्टन पंजाब के 26वें मुख्यमंत्री बने. जानिए किन 9विधायकों ने मंत्री पद की शपथ ली.
इन 77 सीटों ने कैप्टन की राह जितनी आसान की, उतनी ही मुश्किल नवजोत सिंह सिद्धू के लिए कर दी. बताते हैं क्यों. कैप्टन के नाम पर तो राहुल गांधी मुख्यमंत्री की मुहर लगा ही चुके थे, लेकिन नवजोत सिंह सिद्धू की भूमिका तय नहीं थी. आज चंडीगढ़ के पंजाब राज भवन में हुए शपथ समारोह में सिद्दू को डिप्टी सीएम की जगह कैबिनेट मंत्री बनाया गया. उसकी वजह भी बताएंगे, लेकिन पहले बात शपथ समारोह की. जिस शान-ओ-शौकत और रॉयल होने की बात कैप्टन के साथ हर बार जुड़ती रही, इस बार उस से बिल्कुल उलट समारोह को किफायती और सादे ढंग से रखा गया. पंजाब सरकार के पास पैसे की कमी और भारी घाटे के चलते कैप्टन लोगों तक ये संदेश पहुंचाना चाहते थे कि वो किसी भी फिज़ूलखर्ची के खिलाफ हैं. दूसरी वजह ये भी बताई जा रही कि कैप्टन की मां महेंद्र कौर चंडीगढ़ के पीजीआई में एडमिट हैं और इस कारण से कैप्टन समारोह में ज़्यादा ताम-झाम नहीं चाहते थे.
लेकिन इस समारोह को सादा रखने के पीछे एक और बहुत बड़ी वजह है. वो है आम आदमी पार्टी. जैसी पॉलिटिक्स आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में की और पंजाब में करने की कोशिश की, वैसी ही स्ट्रैटिजी कांग्रेस ने भी बनाई. इस सब में शामिल था वीआईपी कल्चर खत्म करना, डेरे की पॉलिटिक्स ना करना और परिवारवाद के खिलाफ जाकर एक परिवार से एक ही व्यक्ति को टिकट देना. ये कुछ ऐसे पहलू थे जिसे कॉपी करके कांग्रेस ने 'पार्टी विद अ डिफरेंस' की बात करने वाली आम आदमी पार्टी से अपनी जीत का डिफरेंस काफी ज़्यादा कर लिया. अब जब पटखनी दे ही दी है, तो कांग्रेस की पूरी कोशिश रहेगी कि आम आदमी पार्टी ने जिस सादगी से पंजाबियों के दिल में जगह बनाई, उसे भी किसी तरह निल कर दिया जाए. ये सादगी भरा समारोह उसी दिशा में बढ़ता पहला कदम हो सकता है.
या फिर इसे पॉज़िटिवली लिया जाए, तो ये कैप्टन की पॉलिटिक्स का एक बड़ा बदलाव भी हो सकता है. क्योंकि कैप्टन पटियाला के राजघराने से आते हैं, कहा जाता है कि उनके आव-भाव और ठाठ-बाठ भी राजा जैसे ही हैं, ऐसे में गरीब तबका और रूरल वोटर उनसे कम रिलेट कर पाता है.
खैर कैप्टन पंजाब को कैसा भविष्य देते हैं और आने वाले 5 साल पंजाब को कितना मज़बूत करते हैं, वो उन कैबिनेट मिनिस्टर्स पर भी डिपेंड करता है. आइए बताते हैं उन दिग्गज नेताओं को बारे में जिन्हें शपथ दिलाई गई और जल्द ही मंत्रालय भी दे दिए जाएंगे.
ब्रह्मा मोहिंद्रा: उद्योग मंत्री बनाए जा सकते हैं. कांग्रेस के सीनियर नेता. 6 बार विधायक रह चुके हैं.पटियाला रूरल से चुनाव लड़ते हैं. इस बार 27,000 वोटों से आप प्रत्याशी को मात दी है. 1992 में इमरजेंसी के बाद बनी बेअंत सिंह की सरकार में भी इंडस्ट्री मिनिस्टर रहे. हालांकि 2002 में बनी कैप्टन सरकार में इन्हें कोई मंत्रालय नहीं दिया गया था. लेकिन कई संस्थाओं और बोर्ड के चेयरमेन रहे.
नवजोत सिंह सिद्धू: चुनावों से ठीक 15 दिन पहले कांग्रेस में एंट्री मारी. तब से माना जाने लगा कि अगर कांग्रेस जीतती है तो सिद्धू डिप्टी सीएम होंगे. लेकिन ऐसा नहीं हुआ औऱ बतौर कैबिनेट मंत्री शपथ दिलवाई गई. कैप्टन ने शुरुआत से ही सिद्दू की भूमिका पर अपने पत्ते नहीं खोले थे. सिद्धू भी कहते रहे कि मैं तो पंजाब को संवारने आया हूं, किसी पद का लालच नहीं है. शीला मुन्नी को बदनाम कहने वाले सिद्धू ने पत्रकारों से कहा कि उनकी रूह तो शुरू से ही कांग्रेस में थी. अब लगता है कि रूह का कांग्रेसी होना सिद्धू को डिप्टी सीएम बनाने के लिए नाकाफी था. डिप्टी सीएम तक पहुंचने वाली सीढ़ी के बीच कई कांग्रेसी नेता भी थे. जिनका मानना है कि सिद्धू के चलते उनकी लॉयलिटी को नज़र अंदाज़ किया गया. कैप्टन की इन-सिक्योरिटी भी सिद्धू को पंजाब का डिप्टी सीएम बनता नहीं देखना चाहती होगी. लेकिन सिद्धू का भी अपना अलग दबदबा है. स्टेट और नैशनल लीडर्स को मालूम है कि कैसे सिद्धू के आते ही सारा बीजेपी कैडर कांग्रेस की तरफ झुक गया. और मांझा में कांग्रेस ने अपना दबदबा बना लिया. सिद्धू ने अमृतसर ईस्ट से चुनाव लड़ा. और पूरे सूबे में कैप्टन के बाद सबसे बड़ी जीत दर्ज की. इस कारण उन्हें बड़ा मंत्रालय मिलना लगभग तय है.
मनप्रीत बादल: वित्त मंत्री बनाए जा सकते हैं. चुनाव से पहले ही रैलियों में कैप्टन लोगों से मनप्रीत को वित्त मंत्रालय देने की बात करते थे. परकाश सिंह बादल के भतीजे हैं. 2007 में जब अकाली+बीजेपी की सरकार बनी तो वित्त मंत्री भी बनाए गए. लेकिन 2010 में पार्टी से बगावत की और 2012 में पीपल्स पार्टी ऑफ पंजाब बनाकर चुनाव लड़े. एक भी सीट नहीं जीते तो धीरे-धीरे कांग्रेस की तरफ बढ़ते चले गए. चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस में ही शामिल हो गए औऱ बठिंडा अर्बन से चुनाव लड़े. करीब 18,000 वोटों से दीपक बंसल को हराया.
साधू सिंह धर्मसोत: नाभा सीट से करीब 19,000 वोट से जीत दर्ज की. पंजाब के बड़े दलित चेहरों में से एक. कांग्रेस के सत्ता से दूर रहने के बावजूद साधू की जीत बरकरार रही. जाति समीकरण के चलते इन्हें जाति मंत्रालय मिल सकता है.
तृप्त राजिंदर सिंह बाजवा: माझा इलाके से आते हैं. फतेहगढ़ चूड़ी अकाली दल के उम्मीदवार को हराकर लगातार दूसरी जीत. करीब 2000 वोट से जीते हैं.
राणा गुरजीत सिंह: कैप्टन के करीबी. 2004-09 तक सांसद रहे. इस विधानसभा चुनाव में कपूरथला से चुनाव लड़े. 28,817 वोट से जीते और लगातार विधायक बन गए. पार्टी सीनिऑरिटी और लॉयलटी के चलते मंत्री बनना लगभग तय. पंजाब के कारोबारियों में बड़ा नाम है. इस कारण एक्साइज़ और इंडस्ट्री मिनिस्टर बनाए जा सकते हैं.
चरणजीत सिंह चन्नी: 2007 में किसी पार्टी ने टिकट नहीं दिया तो निर्दलीय लड़कर जीते. 2012 में कांग्रेस से टिकट मिला. पार्टी हार गई, चन्नी जीत गए. पंजाब कांग्रेस विधायक दल के नेता बनाए गए. 2017 में भी चमकौर साहिब से लड़े और 12,000 से ज़्यादा वोटों से जीते. इन सब के अलावा चन्नी पंजाब कांग्रेस में बड़ा दलित चेहरा हैं. समाज कल्याण विकास मंत्रालय दिया जा सकता है.
अब कुछ ऐसे नेता जिन्हें राज्य मंत्री की शपथ दिलाई गई है:
अरुणा चौधरी: दीनानगर विधानसभा से लगातार तीसरी जीत. इस हिंदू बेल्ट से करीब 32,000 वोटों से बीजेपी उम्मीदवार को शिकस्त दी. दलित समुदाय से संबंध रखती हैं. महिला कोटे के चलते उनका मंत्रिमंडल में आना पहले से तय माना जा रहा था. महिला विकास और कल्याण मंत्रालय दिया जा सकता है.
रजिया सुल्ताना: माइनिऑरिटीज़ वेलफेयर और NRI मंत्रालय दिया जा सकता है. पंजाब कांग्रेस में सबसे बड़ा मुस्लिम चेहरा. पंजाब के मुस्लिम डॉमिनेटिंग इलाके मलेरकोटला से चुनाव लड़ती हैं. इस बार अकाली दल के प्रत्याशी को 12702 वोट से हराया. हालांकि 2012 के चुनाव में हार गई थीं. 2002 में कैप्टन सरकार में मुख्य संसदीय सचिव रहीं. इनके पति मोहम्मद मुस्तफा IPS कैप्टन अमरिंदर सिंह के करीबी हैं. आने वाले समय में उन्हें भी पंजाब का DGP बनाया जा सकता है.
जीते प्रत्याशी विधायक बने गए हैं और 9 विधायक मंत्री. इन सब पर नज़र रखेंगे कैप्टन. जिनमें पंजाबियों ने अपना विश्वास जताया है. जिस मंदी और तप से पंजाब गुज़र रहा है, हर पंजाबी कैप्टन से एक ही बात कहना चाहता है "अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों"
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