2013 के आखिर तक मोदी लहर ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया था. हिंदी हार्टलैंड के तीन बड़े राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का सूपड़ा साफ़ हो गया. छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में बीजेपी लगातार तीसरी बार सत्ता हासिल करने में कामयाब रही. छत्तीसगढ़ की 90 सीटों वाली विधानसभा में बीजेपी 49 सीट के साथ बहुमत हासिल करने में कामयाब रही. 2014 के लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस को शिकस्त का सामना करना पड़ा. कुल 11 में से 10 लोकसभा सीटें बीजेपी के खाते में गईं.
भूपेश बघेल: किसान का बेटा कैसे बना मुख्यमंत्री?
अपने राजनीतिक गुरु के दिए तीन सबकों को बघेल आज भी गांठ बंधकर रखते हैं.
चुनावी हार-जीत अपनी जगह लेकिन छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया नक्सलियों ने. 2013 चुनावी साल था. मई 2013 में सूबे की कांग्रेस परिवर्तन यात्रा में लगी हुई थी. सुकमा जिले से रैली करके लौट रहे कांग्रेसी नेता दरभा घाटी में नक्सल हमले का शिकार हो गए. इस हमले का मुख्य निशाना थे महेंद्र करमा. लेकिन गोलीबारी के दौरान कांग्रेस के कई नेता चपेट में आ गए. इंदिरा के समय मजबूत सियासी रसूख रखने वाले विद्याचरण शुक्ल इस हमले में मारे गए. इसके अलावा नन्द कुमार पटेल और उनके बेटे दिनेश पटेल की भी हत्या कर दी गई. इस हमले ने सूबे में कांग्रेस की लीडरशिप का एक हिस्सा साफ़ कर दिया. अब बड़े नाम के तौर पर वहां सिर्फ अजीत जोगी बचे हुए थे.
कहते हैं कि कोई हीरो नहीं होता है. कोई हीरो बन भी नहीं सकता है. ये हालात होते हैं जो किसी को नायक और किसी को खलनायक के तौर पर गढ़ते हैं. छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल का उभार भी हालात की देन था. अजीत जोगी दरभा हमले के बाद अपनी साख गंवा बैठे थे. इसके अलावा एनसीपी के कार्यकर्ता की हत्या में वो और उनके बेटे आरोपी थे. ऐसे में कमान गई भूपेश बघेल के हाथों. भूपेश बघेल शुद्ध तौर पर संगठन के आदमी थे. तीखे तेवर, जनता में पकड़ और संगठन को साधने वाला दिमाग.
भूपेश बघेल हालातों की पैदाइश थे लेकिन जिम्मेदारी मिलने पर उन्होंने खुद को साबित करके दिखाया.
यह सब उन्हें इसलिए हासिल हो सका क्योंकि अपने दम पर राजनीति में आए थे. पिता तो किसान थे. राजनीति से दूर-दूर तक कोई साबका नहीं. बघेल ने राजनीति की शुरुआत 1986 में थी. उम्र थी महज 25 साल. उस समय मोती लाल वोरा मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री हुआ करते थे. छत्तीसगढ़ उस समय मध्य प्रदेश का हिस्सा हुआ करता था. दुर्ग के रहने वाले थे तो दुर्ग से ही सियासत की शुरुआत की. दुर्ग उस जमाने में कांग्रेस नेता चंदूलाल चंद्राकर का गढ़ हुआ करता था. बघेल ने सियासत का इमला चंद्राकर से सीखा. बाद के इंटरव्यू में याद करते हुए कहते हैं कि चंद्राकर के तीन सबक हमेशा काम आए.
-पहला कि कभी मीडिया के जरिए सियासत चमकाने की कोशिश नहीं करना. -दूसरा, घर चलाने के लिए बाप-दादा के धंधे पर निर्भर रहना. सियासत पेट भराई का जरिया ना बने. -तीसरा, आलाकमान के आदेश के खिलाफ बगावत नहीं करना.
1993 में पहली बार दुर्ग की पाटन सीट से चुनाव लड़े और जीतने में कामयाब रहे. इसके बाद जमीन छोड़ी नहीं. इस सीट से लगतार जीतते रहे. सिवाए 2008 के. इस साल उन्हें बीजेपी के विजय बघेल के हाथों 7,842 के हाथों मात खानी पड़ी. विजय बघेल रिश्ते में भूपेश बघेल के भतीजे होते हैं. 2014 का लोकसभा चुनाव भी लड़ा लेकिन जीत नहीं सके.
2014 में जिस कांग्रेस की कमान बघेल के हाथ आई वो बुरी तरह से जंग खाई हुई थी. 15 साल सत्ता से बाहर रहने की वजह से कांग्रेस का संगठन बिखर चुका था. नेता खेमों में बंटे हुए थे. बघेल ने सबसे पहले जमीन का रास्ता लिया. कस्बे और गांव के दौरे शुरू किए. पुराने कार्यकर्ताओं को मनाया. संगठन के ढांचे को फिर से खड़ा किया. 2016 में अजीत जोगी के कांग्रेस छोड़ना बघेल के लिए फायदेमंद साबित हुआ. अब वो संगठन की खेमेबाजी को आसानी से साध सकते थे.
बघेल के पास जमीन पर काम करने का अनुभव था. वेंटिलेटर पर पड़ी कांग्रेस के लिए यह दवा सबसे ज्यादा असरदार साबित हुई.
2016 से कांग्रेस संगठन का काम जमीन पर दिखाई देने लगा. कांग्रेस ने विरोध के चलते सरकार को अपने कदम कई जगह पीछे खींचने पड़े. मसलन धान की खरीद पर सरकार को लिमिट 10 क्विंटल से बढ़ाकर 15 करनी पड़ी. आदिवासी क्षेत्रों में पट्टे निरस्त करने का आदेश स्थगित करना पड़ा. सरकार ग्रामसभा के बजट से मोबाइल टावर लगवा रही थी. विपक्ष के विरोध के चलते इसे भी रोकना पड़ा. इसका असर दिखाई देने लगा. सूबे में कांग्रेस अपनी पराजित योद्धा वाली इमेज सुधारने में कामयाब रही.
सीडी कांड पर सत्याग्रह
अक्टूबर 2017 में छत्तीसगढ़ सरकार के मंत्री राजेश मूणत की कथित सेक्स सीडी पर विवाद शुरू हुआ. मूणत के करीबी माने जाने वाले बीजेपी नेता प्रकाश बजाज ने शिकायत ने सेक्स सीडी के नाम पर ब्लैकमेलिंग की शिकायत दर्ज करवाई. इसके बाद गाजियाबाद से एक पत्रकार को इस केस में गिरफ्तार कर लिया गया.
सीडी काण्ड की आंच भूपेश बघेल तक भी पहुंची. आरोप लगा कि बघेल मूणत की सेक्स सीडी की कॉपी बंटवा रहे थे. सितंबर 2018 में भूपेश बघेल को सीबीआई ने गिरफ्तार कर लिया. उन्होंने अपनी पैरवी के लिए वकील लेने से मना कर दिया. कहा कि वो निर्दोष हैं और सरकार बदला लेने के लिए उन्हें गिरफ्तार करवा रही है. संगठन उनके पास था ही. विद्रोही की तरह जेल गए. बाहर कार्यकर्ता गिरफ्तारी के विरोध में सड़के जाम कर रहे थे. 14 दिन जेल में रहे. जो गिरफ्तारी बघेल का करियर खत्म कर सकती थी, उसे भुनाने में वो कामयाब रहे. जेल से छूटे तो सियासी कद और बढ़ गया.
भूपेश बघेल ही क्यों
भूपेश बघेल ओबीसी समुदाय से आते हैं. ओबीसी छतीसगढ़ का सबसे बड़ी आबादी है. ऐसे में दोनों बड़ी पार्टी इस समुदाय को साधने की फिराक में हैं. दूसरी बड़ी वजह यह रही कि वो संगठन पर अच्छी पकड़ रखते हैं. आने वाले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस छत्तीसगढ़ की 11 लोकसभा सीटों को अपने खाते में देखना चाहती है. ऐसे में जीत दिलवाने वाले सेनापति को दरकिनार करना मुश्किल.
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