झारखंड के पहले मुख्यमंत्री और वर्तमान में झारखंड भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बाबू लाल मरांडी (Babu Lal Marandi). RSS से जुड़े ऐसे नेता, जिन्होंने लंबे समय के लिए भाजपा से अलग होकर खुद को स्थापित किया. उन्होंने अपनी खुद की झारखंड विकास मोर्चा - प्रजातांत्रिक (JVM) का गठन किया. कई चुनाव लड़े. जानकारों की मानें तो उन्होंने व्यक्तिगत स्तर पर भी और अपनी खुद की पार्टी को लेकर भी एक अलग पहचान बनाई.
Jharkhand Election: बाबू लाल मरांडी का पॉलिटिकल करियर दांव पर है? BJP ने 'फ्री हैंड' दिया है!
जानकार बताते हैं कि इस चुनाव में भाजपा ने Babu Lal Marandi को पूरा मौका दिया है. ऐसे में अगर उनको और राज्य में BJP को सफलता नहीं मिलती तो क्या होगा? Jharkhand Assembly Election में मरांडी का पॉलिटिकल करियर दांव पर है?
हालांकि, एक ऐसा दौर भी आया जब मरांडी को लगातार हार का सामना करना पड़ा. और अंत में उन्हें ‘घर वापसी’ करनी पड़ी. उन्होंने अपनी पार्टी का विलय BJP में कर दिया और खुद भी BJP में शामिल हो गए. लोकसभा चुनाव 2024 में पार्टी ने उनको 'आदिवासी फेस' बनाकर पेश किया. इसके बावजूद, राज्य में आदिवासियों के लिए आरक्षित 5 में से एक सीट पर भी भाजपा को सफलता नहीं मिली. इसके कारण ऐसा माना जा रहा है कि इस चुनाव में मरांडी के ऊपर कुछ ज्यादा दबाव है. वरिष्ठ पत्रकार निराला बिदेसिया बताते हैं,
“बाबू लाल मरांडी पहले ऐसे नेता हैं जिन्होंने (राष्ट्रीय स्तर पर) लंबे समय तक भाजपा से अलग होकर खुद को स्थापित किया. भाजपा के इतिहास में ऐसा नहीं दिखता. ये कांग्रेस से उलट स्थिति है. उन्होंने साबित किया है कि वो एक स्वतंत्र पहचान रखते हैं. हालांकि, उनके सामने कई चुनौतियां हैं. पार्टी के भीतर भी संघर्ष है. पहले तो अर्जुन मुंडा ने ही उनको चुनौती दी. अब कई और नेता बन गए हैं. इस बार पार्टी में सर्वमान्य नेता के तौर पर, अध्यक्ष के तौर पर और CM फेस के तौर पर उनकी परीक्षा है. उन पर कई दबाव हैं. उन्हें खुद को स्टेबलिस करना है.”
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“Babu Lal को 'राजनैतिक पुनर्जीवन’ मिलना है”उन्होंने आगे कहा,
“उनकी पृष्ठभूमि संघ की है. इस चुनाव में उनको ‘राजनैतिक पुनर्जीवन’ मिलना है. पार्टी ने उनको फ्री हैंड दिया है. अगर इस बार बाबू लाल मरांडी चूक गए तो कई दूसरे नेता हावी हो जाएंगे. वो आदिवासी फेस भी हैं. इसलिए उनके साथ ‘आदिवासी अस्मिता’ भी जुड़ी है. हालांकि, इस मुद्दे पर हेमंत सोरेन सारे दांव खेल चुके हैं. बाबू लाल मरांडी ने स्थानीयता का जो बीज बोया था, वो अब पौधा बन गया है. और इस चुनाव में भी वो एक मुद्दा है.”
इंडिया टुडे से जुड़े आनंद दत्त इस पर स्पष्ट कहते हैं,
“इस चुनाव में बाबू लाल मरांडी का पूरा ‘पॉलिटिकल करियर’ ही दांव पर है. अगर वो हारते हैं या झारखंड में BJP हारती है, तो BJP की ओर से एक तरीके से ‘The End’ होगा (पार्टी और मौके नहीं देगी). अगर नतीजे बेहतर होते हैं तो CM फेस हो सकते हैं. और अगर तीसरी स्थिति बनती है. और अगर BJP कम सीटों की स्थिति में किसी दूसरे दल के साथ समझौता करती है तो इनको कहीं का राज्यपाल बनाया जा सकता है. ऐसा लगता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनसे ठीक-ठीक प्रॉमिस किया है.”
उन्होंने आगे कहा,
“BJP मे वापसी के बाद उन्होंने काफी मेहनत की है. अपनी टीम बनाई है. टिकट बंटवारे में भी उनकी चली है. ये भी आरोप लगे हैं कि उन्होंने अपनी पुरानी पार्टी के नेताओं को तरजीह दी है.”
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कई चुनाव नॉन ट्राइबल सीटों से जीतावरिष्ठ पत्रकार सुशील मंटू इससे अलग राय रखते हैं. वो कहते हैं,
“मेरी निजी राय है कि बाबू लाल मरांडी का बहुत कुछ दांव पर नहीं है. क्योंकि वो 2019 के चुनाव के पहले से ही BJP के टच में थे. BJP और बाबू लाल में ये तय था कि चुनाव के बाद उनको पार्टी में आना है. उन्होंने कठिन परिस्थितियों में भी अपनी JVM पार्टी को जिंदा रखा और वोट शेयर लेकर आए. उनको BJP में इसीलिए लाया ही गया, क्योंकि वो एक कुशल संगठनकर्ता हैं. एक ट्राइबल नेता के तौर पर, नन ट्राइबल सीटों पर उनका एक्सपीरियंस किसी दूसरे नेता की तुलना में सबसे अधिक है. उन्होंने कई बार नन ट्राइबल सीटों से चुनाव जीता है. (कोडरमा और धनवार). फील्ड में रहने वाले नेता हैं. हालांकि, लोकसभा चुनाव में पांचों आदिवासी सीटों पर हार के बाद उनके ऊपर दबाव है.”
सुशील याद करते हैं,
“JVM ने अपना एक वार्षिक सम्मेलन किया था. राज्य में भाजपा की ऐसा सम्मेलन नहीं करा पाई. इसके बारे में महीनों तक अखबारों में छपता रहा. बाबू लाल माहौल बनाने वाले नेता भी हैं. हालांकि, BJP में लाते ही पार्टी ने उनको प्रदेश अध्यक्ष बनाया होता तो बात कुछ और होती. उनके पास तैयारी के लिए कम समय था. जब वो मुख्यमंत्री थे तब और जब अपनी पार्टी चला रहे थे तब, अपने हिसाब से फैसला करते थे. लेकिन अब भाजपा में केंद्रीय स्तर पर बहुत सारी चीजें होती हैं.”
सुशील कहते हैं कि पार्टी में उन्होंने अपनी मजबूती बढ़ाई है. मसलन कि पार्टी में उनको बदनाम करने की कोशिश करने वाले लोग अब साइडलाइन कर दिए गए हैं. उन्होंने भी अपने ऊपर काम किया है. अब वो चार-पांच लोगों के ही बीच घिरे नहीं रहते.
Dhanwar सीट से चुनाव लड़ रहे हैं Babulalमरांडी वर्तमान में धनवार सीट से विधायक हैं. और इस चुनाव में भी इसी सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. इलाके के चुनावी माहौल पर बात करेंगे लेकिन उससे पहले उनके अब तक के चुनावी यात्रा पर एक नजर डालते हैं.
चुनाव | सीट | रिजल्ट | वोटों का अंतर | |
लोकसभा चुनाव 1991 | दुमका | मरांडी (BJP) हार गए | शिबू सोरेन (JMM) की जीत | 1,33,641 |
लोकसभा चुनाव 1996 | दुमका | मरांडी (BJP) हार गए | शिबू सोरेन (JMM) की जीत | 5,478 |
लोकसभा चुनाव 1998 | दुमका | मरांडी (BJP) जीत गए | शिबू सोरेन (JMM) की हार | 12,556 |
लोकसभा चुनाव 1999 | दुमका | मरांडी (BJP) जीत गए | रूपी सोरेन (JMM) की हार | 4,648 |
लोकसभा चुनाव 2004 | कोडरमा | मरांडी (BJP) जीत गए | चंपा वर्मा (JMM) की हार | 1,54,944 |
लोकसभा उपचुनाव 2006 | कोडरमा | मरांडी (निर्दलीय) जीत गए | मनोज यादव (INC) की हार | 1,94,140 |
लोकसभा चुनाव 2009 | कोडरमा | मरांडी (JVM) जीत गए | राज कुमार यादव (माले) की हार | 48,520 |
लोकसभा चुनाव 2014 | दुमका | मरांडी (JVM) हार गए | शिबू सोरेन (JMM) की जीत | 39,030 |
विधानसभा चुनाव 2014 | धनवार | मरांडी (JVM) हार गए | राज कुमार यादव (माले) की जीत | 10,712 |
विधानसभा चुनाव 2014 | गिरिडिह | मरांडी (JVM) हार गए | निर्भय शाहाबादी (BJP) की जीत | 9,933 |
लोकसभा चुनाव 2019 | कोडरमा | मरांडी (JVM) हार गए | अन्नपूर्णा देवी (BJP) की जीत | 4,55,600 |
विधानसभा चुनाव 2019 | धनवार | मरांडी (JVM) जीत गए | लक्ष्मण प्रसाद सिंह (BJP) की हार | 17,550 |
इस बार के चुनाव में भी धनवार में CPI (ML) (L) के राज कुमार यादव चुनावी मैदान में हैं. पिछली बार वो तीसरे स्थान पर रहे थे. इसके अलावा JMM ने निजाम उद्दीन अंसारी को टिकट दिया है. CPI (ML) (L) और JMM के बीच ‘फ्रेंडली फाइट’ की बात है.
राज कुमार यादव धनवार के ही रहने वाले हैं. 2014 में धनवार विधानसभा सीट से राज कुमार यादव को CPI (ML) (L) की टिकट पर 10,712 वोटों से जीत मिली थी. उन्होंने JVM के टिकट पर चुनाव लड़े बाबूलाल मरांडी को हराया था. मरांडी को 39,922 वोट और यादव को 50,634 वोट मिले थे. BJP के लक्ष्मण प्रसाद सिंह 31,659 वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रहे थे.
राज कुमार CPI (ML) (L) से साल 2000 से ही इस सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. 2000 में हार गए. राज कुमार ने 2005 में चुनाव लड़ा. धनवार सीट से ही. CPI (ML) (L) की टिकट पर हार गए थे. BJP के रविंद्र कुमार राय ने उनको 3,334 वोटों से हराया था. राज कुमार यादव को 39,023 वोट और रविंद्र कुमार राय को 42,357 वोट मिले थे. JMM के निजाम उद्दीन अंसारी तब 38,754 के साथ तीसरे स्थान पर रहे थे.
इसके बाद 2009 के चुनाव में राज कुमार याद को इसी सीट पर फिर से हार मिली. इस बार बाबूलाल मरांडी की पार्टी JVM के टिकट पर निजाम उद्दीन अंसारी ने उनको 4,973 वोटों से हराया. भाजपा के रविंद्र कुमार राय तीसरे स्थान पर रहे. 2014 में राज कुमार को जीत मिली. लेकिन 2019 में फिर से हार गए.
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राज कुमार और मरांडी में हो चुका है चुनावी मुकाबलाकोडरमा लोकसभा सीट पर राज कुमार यादव और बाबूलाल मरांडी के बीच साल 2004 में मुकाबला हुआ था. मरांडी की जीत हुई थी. राज कुमार तीसरे नंबर पर थे. 2006 के लोकसभा उप चुनाव में भी इस सीट पर दोनों के बीच मुकाबला हुआ. यादव इस बार चौथे नंबर पर थे. लेकिन 2009 के लोकसभा चुनाव में यादव दूसरे स्थान पर रहे. हालांकि, इस बार भी मरांडी को ही जीत मिली.
इसके बाद 2014 में मरांडी इस सीट से लोकसभा चुनाव नहीं लड़े. राज कुमार लड़े. दूसरे स्थान पर रहे. 2019 में राज कुमार और मरांडी इस सीट पर फिर से आमने-सामने आए. दोनों में से किसी को जीत नहीं मिली. मरांडी दूसरे और यादव तीसरे स्थान पर रहे. BJP की अन्नपूर्णा देवी को जीत मिली थी. इस तरह लोकसभा चुनावों में मरांडी और राज कुमार का 4 बार मुकाबला हुआ है. राज कुमार यादव को एक बार भी जीत नहीं मिली है.
निजाम उद्दीन अंसारीJMM के टिकट पर निजाम उद्दीन अंसारी धनवार से चुनाव लड़ रहे हैं. अंसारी साल 2000 में इसी सीट पर JMM के टिकट पर चुनाव लड़े थे. हार गए. 2005 में भी JMM के टिकट पर फिर से चुनाव लड़े. फिर से हार गए. 2009 बाबूलाल मरांडी की पार्टी JVM के टिकट पर चुनाव लड़े. आखिरकार जीत मिली. 2019 में फिर से JMM के टिकट पर यहां से चुनाव लड़े. काफी खराब प्रदर्शन रहा. छठे स्थान पर थे. 14,432 वोट मिले थे.
JMM ने इस बार भी इनको टिकट दिया है.
JMM और CPI (ML) (L) दोनों ही दल INDIA गठबंधन का हिस्सा हैं. ऐसे में राज कुमार यादव और निजाम उद्दीन अंसारी के बीच 'फ्रेंडली फाइट की बात हो रही है.
पत्रकार आनंद दत्त बताते हैं कि इस सीट पर बाबू लाल मरांडी के जीतने की संभावना अधिक है. वरिष्ठ पत्रकार सुशील मंटू कहते हैं कि जिन सीटों पर भी त्रिकोणीय मुकाबला होता है, वहां इसका फायदा BJP को होता है. धनवार सीट पर भी ऐसा ही लग रहा है.
Babulal Marandi की राजनीतिक यात्रा- जन्म- 11 जनवरी 1958.
- 1983- RSS का प्रचार करने के लिए दुमका भेजा गया.
- 1990- आधिकारिक रूप से बीजेपी में शामिल हुए.
- 1991- BJP ने दुमका लोकसभा सीट से मरांडी को टिकट दिया. शिबू सोरेन ने हरा दिया.
- 1996- लोकसभा चुनाव में पार्टी ने उनको फिर से टिकट दिया. शिबू सोरेन ने फिर से हरा दिया.
- 1998 का लोकसभा चुनाव- दुमका में मरांडी ने शिबू सोरेन को हराया. अटल बिहारी सरकार में उनको पर्यावरण और वन राज्य मंत्री बनाया गया.
- 1999 लोकसभा चुनाव- भाजपा ने चुनावी घोषणा पत्र में छत्तीसगढ़, उत्तराखंड और वनांचल (झारखंड) बनाने का वादा किया. बाबू लाल को दुमका सीट पर फिर से जीत मिली.
- 15 नवंबर 2000- बिहार से अलग होकर झारखंड राज्य बना.
- 42 साल की उम्र में बाबू लाल झारखंड के मुख्यमंत्री बनाए गए.
- स्थानीयता के मुद्दे ने जोर पकड़ा. 1932 के सर्वे सेटलमेंट को ही स्थानीयता का आधार माना गया.
- 2002- जुलाई महीने में कई दिन बंद बुलाए गए. 24 जुलाई 2002 को रांची और दूसरे शहरों में हिंसा भड़क गई और उसमें 6 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी.
सरकार में कई मंत्रियों ने बगावत कर दी. इन बागी मंत्रियों के साथ झामुमो, कांग्रेस और राजद ने सरकार बनाने की कोशिश की. - 17 मार्च 2003- स्पीकर ने मरांडी को बहुमत साबित करने का निर्देश दे दिया.
- राजनाथ सिंह रांची पहुंचे और अर्जुन मुंडा को विधायक दल का नेता चुना गया. बाबू लाल पार्टी में साइडलाइन कर दिए गए.
- 2004 का लोकसभा चुनाव- बाबू लाल की सीट बदल दी गई. उन्हें कोडरमा (गृहक्षेत्र) से टिकट दिया गया. इस बार झारखंड इलाके में BJP से सिर्फ उन्हें ही जीत मिली.
तब के CM अर्जुन मुंडा से तकरार. उनकी सराकर पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया. और विरोध प्रदर्शन किया. - 2005 का विधानसभा चुनाव- मरांडी ने पार्टी छोड़ने का मन बना लिया था.
- 2006- इस्तीफे की घोषणा कर दी.
- 17 मई 2006- उन्होंने लोकसभा और BJP की सदस्यता दोनों से इस्तीफा दे दिया.
- सितंबर 2006- बाबू लाल मरांडी ने अपनी पार्टी झारखंड विकास मोर्चा (प्रजातांत्रिक) (झाविमो-JVM) बनाई. BJP के पांच और विधायकों को तोड़कर.
- नवंबर 2006- कोडरमा लोकसभा सीट पर उपचुनाव. बाबू लाल को निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर जीत मिली.
- 2009- लोकसभा चुनाव में मरांडी ने कोडरमा सीट पर झाविमो के टिकट पर जीत हासिल की.
- 2009 का विधानसभा चुनाव- मरांडी ने कांग्रेस के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा. उनकी पार्टी 25 सीटों पर चुनाव लड़ी और 11 जीत गई.
- 2014 लोकसभा चुनाव- मरांडी खुद दुमका से हार गए.
- 2014 विधानसभा चुनाव- चुनाव आते-आते पार्टी के 7 विधायक बीजेपी में शामिल हो गए. इसके बाद एक विधायक जेएमएम में चले गए.
- 2014 विधानसभा चुनाव- मरांडी की पार्टी को 8 सीटों पर जीत मिली. मरांडी खुद धनवार और गिरिडीह से लड़े थे, लेकिन दोनों जगह से उनको हार मिली.
- फरवरी 2015- 6 विधायक टूटकर भाजपा में शामिल हो गए. उनके पास बस 2 विधायक बचे.
- 6 जुलाई 2018- मरांडी ने तत्कालीन राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू से मुलाकात की. BJP पर आरोप लगाया कि BJP ने उनके 6 विधायकों को 2-2 करोड़ देकर तोड़े थे.
- 2019 का लोकसभा चुनाव- कोडरमा सीट पर मरांडी को हार मिली.
- 2019 का विधानसभा चुनाव- पार्टी तीन सीटों पर सिमट गई. मरांडी को धनवार सीट पर जीत मिली.
- 17 फरवरी 2020- बाबू लाल मरांडी BJP में शामिल हो गए और जेवीएम का बीजेपी में विलय कर दिया.
- बीजेपी में वापसी के बाद ही मरांडी को तुरंत विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष भी बनाया गया. लेकिन ये मामला बाद में अदालत में चला गया.
- 4 जुलाई 2023- को BJP ने उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाया.
- लोकसभा चुनाव 2024: बाबू लाल पर आदिवासी वोटों को जुटाने की जिम्मेवारी थी. पार्टी को 14 में से 8 सीटों पर जीत मिली लेकिन आदिवासियों के लिए आरक्षित 5 में से किसी भी सीट पर जीत नहीं मिली.
झारखंड की 81 सीटों के लिए दो चरण में 13 और 20 नवंबर को चुनाव होना है, पहले चरण में 43 विधानसभा सीटों पर और दूसरे चरण में 38 सीटों पर चुनाव होना है. 23 नवंबर को वोटों की गिनती होनी है. 28 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं. झारखंड में आदिवासी मतदाताओं की आबादी 26% है.
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