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IIM एक्ट में ऐसा क्या है जिसे जानकार इन संस्थानों के लिए 'खतरे की घंटी' बता रहे?

नए संशोधन के अनुसार बोर्ड को IIM डायरेक्टर की नियुक्ति से पहले अब राष्ट्रपति की मंजूरी लेनी होगी.

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प्रस्तावित बिल के मुताबिक विजिटर किसी भी संस्थान के कामकाज का ऑडिट और उसके बारे में रिपोर्ट तैयार करने के लिए अधिकारियों की नियुक्ति भी कर सकता है. (फोटो- फेसबुक)

बीती 28 जुलाई को सरकार ने संसद में The Indian Institutes of Management (Amendment) Bill, 2023 (IIM संशोधन बिल) पेश किया. बताया गया है कि बिल में IIM के डायरेक्टर्स की नियुक्ति और उनको हटाने को लेकर सरकार को ज्यादा अधिकार दिए गए हैं. आरोप लग रहा है कि ये बिल IIM की स्वायत्तता को खत्म कर देगा. इसके अलावा भी कई और आरोप सरकार पर लगाए जा रहे हैं. 

क्या है ये बिल, इसका क्या मकसद है और क्या बदलाव किए जाएंगे? आइए जानते हैं.

IIM संशोधन बिल

सरकार इस बिल के जरिए IIM एक्ट, 2017 में बदलाव करने जा रही है. इस बिल के तहत देश के 20 भारतीय प्रबंधन सस्थानों (IIMs) को राष्ट्रीय महत्व के संस्थानों का दर्जा दिया गया है. 2017 वाले एक्ट के तहत IIM के डायरेक्टर की नियुक्ति एक बोर्ड ऑफ गवर्नर की टीम द्वारा की जाती है. सरकार के पास इसके तहत सीमित अधिकार हैं. नए संशोधन के तहत सरकार इसी को बदलने की कोशिश में है.

राष्ट्रपति को ‘विजिटर’ बनाने की बात हो रही है

प्रस्तावित बिल के सेक्शन 5 में बताया गया है कि 2017 एक्ट के सेक्शन 10 में कुछ नई धाराएं जोड़ी जाएंगी. इनके मुताबिक भारत के राष्ट्रपति IIM एक्ट के तहत आने वाले सभी संस्थानों के ‘विजिटर’ होंगे. बिल विजिटर यानी राष्ट्रपति के लिए तीन भूमिकाएं निर्धारित करता है. इनमें नियुक्तियां करना, संस्थानों के कामकाज का ऑडिट और जांच शामिल है.

वर्तमान में डायरेक्टर कैसे नियुक्त किए जाते हैं?

IIM एक्ट, 2017 के सेक्शन 16 (2) के मुताबिक डायरेक्टर की नियुक्ति एक बोर्ड के जरिए होगी. वहीं धारा 16 (1) में कहा गया है कि डायरेक्टर संस्थान का मुख्य कार्य़कारी अधिकारी होगा और संस्थान की अगुवाई भी करेगा. इसमें डायरेक्टर को बोर्ड द्वारा लिए गए फैसलों को लागू करने के लिए जिम्मेदार भी बनाया गया है.

एक्ट के सेक्शन 16 (3) के मुताबिक डायरेक्टर की नियुक्ति बोर्ड द्वारा गठित सर्च कम सेलेक्शन कमेटी द्वारा भेजे गए नामों के पैनल से की जाती है. बोर्ड का अध्यक्ष इस कमेटी की अगुवाई करता है. जिसमें जाने-माने प्रशासक, बिजनेसमैन, एजुकेशनिस्ट, साइंटिस्ट, टेक्नोक्रेट और मैनेजमेंट में से चुने गए 3 सदस्य होते हैं.

नए बिल में क्या है?

नए संशोधन के अनुसार बोर्ड को IIM डायरेक्टर की नियुक्ति से पहले अब राष्ट्रपति की मंजूरी लेनी होगी. इसी को लेकर विवाद की बात हो रही है. क्योंकि राष्ट्रपति केंद्रीय कैबिनेट की सलाह पर काम करते हैं. इसका सीधा मतलब ये है कि केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय बोर्ड की पसंद पर वीटो लगा सकता है. यही नहीं, बिल में सरकार को डायरेक्टर के चुनाव में शुरुआती प्रोसेस में भी भूमिका देने की बात कही गई है.

सेक्शन 16 (3) में सर्च कम सेलेक्शन कमेटी में शामिल होने वाले 4 सदस्यों के बारे में भी बताया गया है. इसमें बोर्ड के अध्यक्ष के अलावा एक सदस्य को ‘विजिटर’ नियुक्त करेगा. प्रस्तावित बिल में डायरेक्टर को हटाने के लिए बोर्ड को पहले विजिटर से मंजूरी लेनी होगी. इतना ही नहीं, बिल के मुताबिक डायरेक्टर की सेवाओं को विजिटर खत्म भी कर सकता है.

विजिटर के पास ऑडिट के अधिकार

प्रस्तावित बिल के मुताबिक विजिटर किसी भी संस्थान के कामकाज का ऑडिट और उसके बारे में रिपोर्ट तैयार करने के लिए अधिकारियों की नियुक्ति भी कर सकता है. इसको लेकर विजिटर नियम और निर्देश भी जारी कर सकता है.

2015 वाले एक्ट में विजिटर की बात थी

इससे पहले साल 2015 के ड्राफ्ट बिल में भी ‘विजिटर’ की बात कही गई थी. लेकिन उस वक्त देश के IIM द्वारा इसका कड़ा विरोध किया गया था. जिसके बाद फाइनल बिल से इसे हटाने का फैसला किया गया था.

IIM के पूर्व निदेशक ने खतरे की घंटी बताया

दी प्रिंट से की गई एक बातचीत में IIM अहमदाबाद के पूर्व डायरेक्टर बकुल ढोलकिया ने IIM बिल में किए जा रहे संशोधनों के बारे में बात की. उन्होंने संशोधन को एक खतरे की घंटी बताया है. उनके मुताबिक संस्थानों को इसे गंभीरता से लेना चाहिए. ढोलकिया ने कहा,

“मौजूदा संशोधन आधे-अधूरे कदम हैं. जिसमें सरकार ने केवल डायरेक्टर और अध्यक्ष की नियुक्ति का नियंत्रण अपने हाथ में लिया है.”

ढोलकिया ने आगे कहा कि उनकी चिंता ये है कि चूंकि IIM के कामकाज के संबंध में मंत्रालय को बहुत सारी शिकायतें भेजी गई थीं, इसी कारण ये संशोधन लाया जा रहा है. ढोलकिया ने बताया कि अब अगर मंत्रालय के पास और शिकायतें जाएंगी, तो सरकार कई और संशोधन लाएगी. जो कि संस्थानों की स्वायत्तता को खत्म कर देगा. उन्होंने ये भी कहा कि सरकार को IIMs के संचालन से दूर रहना चाहिए, उसे संशोधनों के उपयोग से IIM में बैकडोर एंट्री कर नियंत्रण की कोशिश नहीं करनी चाहिए.

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