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DU में मनुस्मृति पढ़ाई जानी थी, लेकिन VC ने चौंका दिया

दिल्ली यूनिवर्सिटी के फैकल्टी ऑफ लॉ ने अपने अंडरग्रैजुएट प्रोग्राम में विवादास्पद धार्मिक ग्रंथ 'मनुस्मृति' को शामिल करने का प्रस्ताव लाया था.

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फैकल्टी ऑफ लॉ के प्रस्ताव का शिक्षकों ने किया था विरोध. (फाइल फोटो)

'मनुस्मृति' को सिलेबस में शामिल किए जाने के प्रस्ताव पर हुए विरोध के बाद दिल्ली विश्वविद्यालय (DU) ने इसे वापस लेने का फैसला लिया है. DU का फैकल्टी ऑफ लॉ अंडरग्रैजुएट प्रोग्राम में इस विवादास्पद धार्मिक ग्रंथ को शामिल करने पर विचार कर रहा था. लेकिन अब दिल्ली यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रोफेसर योगेश सिंह ने बताया कि ऐसा कुछ भी दिल्ली विश्वविद्यालय में नहीं पढ़ाया जाएगा. उन्होंने कहा कि फैकल्टी ऑफ लॉ के प्रस्ताव को काफी विचार के बाद रिजेक्ट कर दिया गया है.

प्रोफेसर योगेश सिंह ने एक वीडियो बयान जारी कर बताया, 

“आज दिल्ली विश्वविद्यालय को फैकल्टी ऑफ लॉ का एक प्रस्ताव आया है. इसमें न्याय शास्त्र (Jurisprudence) के पेपर में थोड़े से बदलाव किए. इनमें से एक बदलाव था 'मेधातिथि- कॉन्सेप्ट ऑफ स्टेट एंड लॉ'. और इसको पढ़ाने के लिए उन्होंने दो टेक्स्ट दिए. पहला था- 'मनुस्मृति विद द मनुभाष्य' और दूसरा था कमेंट्री ऑफ मनुस्मृति. ये दोनों टेक्स्ट और प्रस्ताव को दिल्ली विश्वविद्यालय ने खारिज कर दिया है.”

इन बदलावों के सुझाव का फैसला पिछले महीने फैकल्टी ऑफ लॉ की कोर्स कमिटी की बैठक में लिया गया था. इस बैठक की अध्यक्षता फैकल्टी ऑफ लॉ की डीन प्रोफेसर अंजू वाली टिकू ने की थी. अब 12 जुलाई को इस संशोधित सिलेबस को यूनिवर्सिटी की एकेडेमिक काउंसिल के सामने पेश किया जाना था.

फैकल्टी ऑफ लॉ के इस प्रस्ताव का काफी विरोध हो रहा था. सोशल डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट (SDTF) ने डीयू के कुलपति योगेश सिंह को पत्र लिखा था. और कहा है कि मनुस्मृति के विचार महिलाओं और पिछड़े समुदाय के प्रति आपत्तिजनक हैं. और ये एक प्रगतिशील शिक्षा व्यवस्था के खिलाफ होगा. मनुस्मृति के कई श्लोकों में महिलाओं की शिक्षा और समान अधिकार के खिलाफ लिखा गया है.

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SDTF ने लिखा था कि मनुस्मृति के किसी भी हिस्से को लागू करना भारतीय संविधान के सिद्धांतों के खिलाफ है. मांग की गई है कि इस प्रस्ताव को तुरंत वापस लिया जाए. और इसे एकेडेमिक काउंसिल की मीटिंग में मंजूरी नहीं मिलनी चाहिए.

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