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शक्तिमान के जरिए पारले-जी की बिक्री दो हजार टन ऐसे बढ़ा दी थी, कैंपेन चलाने वाले ने सुनाई कहानी

पहले हर महीने 50 टन हो रही थी पारले जी की बिक्री. एक कैंपेन के जरिए ये बढ़कर दो हजार टन हो गई.

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पारले-जी दक्षिणी बाजार में अपनी जगह बनाना चाहता था. (फोटो: सोशल मीडिया)

प्रसिद्ध भारतीय सुपरहीरो शो शक्तिमान (Shaktiman) के 25 साल पूरे होने पर मार्केटिंग रणनीतिकार संजय मुडनानी ने पारले-जी और शक्तिमान से जुड़ा एक खुलासा किया. उन्होंने बताया कि कैसे उन्होंने मुकेश खन्ना के साथ एक ऐड प्रयोग किया था. जिससे उन्हें तमिलनाडु के बाजार में एंट्री मिली थी. उस समय ये मार्केट काफी चुनौतीपूर्ण था. 

दरअसल, प्रसिद्ध भारतीय सुपरहीरो शक्तिमान का किरदार मुकेश खन्ना ने निभाया था. ये शो 1997 से 2005 तक चला था. शक्तिमान बच्चों के बीच अपनी लोकप्रियता के कारण एक घरेलू नाम बन गया था. मुकेश खन्ना ने 90 के दशक में पारले-जी बिस्किट का प्रचार किया था. जिससे उस समय बिस्किट की बिक्री 50 टन से बढ़कर दो हजार टन हो गई थी.

क्या था ऐड प्रयोग?

मुडनानी, जिन्होंने अभी-अभी अपनी पहली इंटीग्रेटेड मार्केटिंग कंपनी बनाई है बताते हैं कि पारले-जी उनका क्लाइंट था. और कुछ 25 साल पहले के मार्केटिंग हेड प्रवीण कुलकर्णी ने उन्हें तमिलनाडु के बाजार की चुनौतियों के बारे में जानकारी दी थी. उन्होंने बताया था कि उस समय बाजार में दूध के बिस्किट का बोलबाला था, साथ ही ब्रिटानिया मिल्क बिस्किट भी लोगो को काफी पसंद था. वहीं पारले-जी, जो एक ग्लूकोज बिस्किट था, उसकी बाजार में कोई भी मौजूदगी नहीं थी. 

उस समय पारले-जी देश के दक्षिणी बाजार में जगह बनाना चाहता था. उन्होंने बताया कि एक प्रयोग करने का फैसला किया गया. शक्तिमान पारले-जी के लिए एक राष्ट्रीय ब्रांड एम्बेसडर था और तमिलनाडु के बच्चो में भी काफी लोकप्रिय था. शक्तिमान के चरित्र में वो तमाम बातें थीं, जैसे की एनर्जी, स्टैमिना, स्ट्रेंथ और गुड वैल्यूज, जिससे कि पारले जी अपने आप को रिलेट करता था. मुडनानी का कहना है कि उन्होंने शक्तिमान को बच्चों से मिलवाने के लिए चेन्नई ले जाने का फैसला किया था. उसके लिए वहाँ एक ग्राउंड बुक किया गया था, जिसमे एंट्री करने के लिए हर व्यक्ति को पारले-जी के दो खाली रैपर टिकट के रूप में लाने थे. उनकी टीम ने इस इवेंट का स्कूल में प्रचार करने के साथ-साथ अखबारों में भी विज्ञापन चलाए थे. 

कैसे रहा प्रयोग?

उनकी टीम को उम्मीद थी कि कुछ बच्चे अपने माता पिता के साथ शक्तिमान से मिलने ज़रूर आएंगे. लेकिन, जो वहाँ हुआ वो एकदम अचंभित करने वाला था. उन्होंने बताया कि उस दिन सुबह बिलकुल भी भीड़ नहीं थी. शक्तिमान वहां मंच पर बच्चो का इंतज़ार कर रहे थे. लेकिन वहां ज़्यादा बच्चे नहीं आए थे. हालांकि, कुछ समय बाद वहां पर एक के बाद एक स्कूल की बसें आना शुरू हुईं और शाम तक लाखों की तादाद में वहां भीड़ इकट्ठा हो गयी. लोगो को संभालना मुश्किल हो गया था क्योंकि हर व्यक्ति अपने सुपरहीरो को एक बार छूना चाहता था. मुडनानी ने कहा कि उनकी टीम ने अपने पीआर को भी सक्रिय कर दिया था. अगले दिन अखबारों में पहले पन्ने की कहानी यही थी- ‘चेन्नई में शक्तिमान’. नतीजा ये हुआ कि पारले जी की बिक्री एकदम से बढ़ गया.

उन्होंने कहा कि उस समय हमने इस शक्तिमान कैंपेन को इंटरनेट के बिना ही किया था. ये इंटरनेट के बिना किये गए मार्केटिंग की केस स्टडीज में से एक है. उनका मानना है कि लोग सिर्फ चीज़ नहीं ख़रीदते, वो उसके साथ जुड़ीं कहानियां भी खरीदते हैं. बच्चों को उनके हीरो शक्तिमान से मिलवाकर और पारले-जी बिस्किट के साथ उनके जुड़ाव ने उन बच्चों को कहानी का हिस्सा बना दिया था. उनका ये भी मानना है कि जब बिना इंटरनेट के उन्होंने ये अभियान सफलतापूर्वक कर लिया था, तो आज और आने वाले कल में हमारे पास अच्छी मार्केटिंग की असीमित संभावनाएं है.

(ये स्टोरी हमारे साथ इंटर्नशिप कर रहीं शिवानी ने लिखी है.)

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