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Share Market Crash: इन वजहों से शेयर बाजार में डूबे रहे हैं हमारे पैसे, वापसी की उम्मीद...

Sensex Nifty Crash: ट्रंप की टैरिफ धमकियां और विदेशी संस्थागत निवेशकों का लगातार भारतीय बाजार से पैसे निकालना इस क्रैश की प्रमुख वजहों में शामिल हैं. सवाल यही है कि भारतीय शेयर बाजार (Indian Share Market) में गिरावट का यह दौर कब तक जारी रहेगा?

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Indian Share Market इस समय बुरे दौर से गुजर रहा है. (फाइल फोटो)

भारतीय शेयर बाजार में तबाही (Indian Share Market Crash) का दौर जारी है. फरवरी महीने के आखिरी दिन भी बाजार में भारी गिरावट देखी जा रही है. निफ्टी 50 इंडेक्स 22,433 पर खुला और कुछ ही देर में गिरकर 22,220 पॉइंट्स पर पहुंच गया. बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज का सेंसेक्स गिरावट के साथ ही खुला. कुछ ही देर में यह 74,201 के आंकड़े से 73,542 पर आ गया. इस गिरावट के साथ निफ्टी ने 28 साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया है. फरवरी लगातार पांचवा महीना है, जो निफ्टी में गिरावट के साथ बंद होने की कगार पर है. पिछले 5 महीनों में निफ्टी में कुल 13.5 प्रतिशत की गिरावट आ चुकी है. IT, ऑटो और टेलीकॉम जैसे प्रमुख सेक्टर्स का हाल बेहाल है.

आज यानी 28 फरवरी के दिन की बात करें तो BSE स्मॉल कैप इंडेक्स में 2 परसेंट तक की गिरावट दर्ज की गई. वहीं BSE मिड-कैप इंडेक्स में भी लगभग इतनी ही गिरावट देखी गई. पतंजलि फूड्स, आदित्य बिड़ला रियल स्टेट, रेडिंग्टन इत्यादि के स्टॉक्स सबसे ज्यादा गिरे. हालांकि, स्टार हेल्थ, कोल इंडिया, अलाइन इन्श्योरेंस कंपनी, पॉलीकैब इंडिया इत्यादि के शेयर्स तेजी से ऊपर चढ़े. 28 फरवरी की सुबह 11.30 बजे तक BSE में लिस्टेड 78 स्टॉक्स में अपर सर्किट लगा और 360 स्टॉक्स लोअर सर्किट में फंस गए.

अब बात करेंगे कि आखिर भारतीय शेयर मार्केट में जारी इस गिरावट की वजह क्या है? और आगे कितने समय तक यह गिरावट जारी रह सकती है?

ट्रंप की टैरिफ धमकियां

एक्सपर्ट्स का कहना है कि ट्रंप की टैरिफ घोषणाएं दुनियाभर के शेयर बाजारों पर गलत असर डाल रही हैं. जियोजीत फाइनेंशियल सर्विस के चीफ इनवेस्टमेंट स्ट्रैटजिस्ट वीके विजयकुमार कहते हैं,

ट्रंप की कनाडा, मेक्सिको और चीन के ऊपर टैरिफ लगाने की घोषणाओं ने दुनियाभर के बाजारों में अस्थिरता पैदा कर दी है. किसी भी तरह की अस्थिरता किसी भी शेयर मार्केट को पसंद नहीं आती. ऐसी आशंकाएं हैं कि अमेरिका और चीन के बीच एक भयंकर व्यापार युद्ध शुरू हो सकता है.

एक्सपर्ट्स का कहना है कि सिर्फ अमेरिका और चीन के बीच ही नहीं, बल्कि अमेरिका और दूसरे देशों के बीच भी व्यापार युद्ध शुरू हो सकते हैं.

आशंका यह भी जताई जा रही है कि भारतीय बैंकों के चौथे क्वार्टर की कमाई में गिरावट आ सकती है. तीसरी तिमाही के आंकड़े निराश करने वाले थे. निफ्टी 50 इंडेक्स पर लिस्टेड लगभग 30 परसेंट स्टॉक्स भारतीय बैंकों के प्रदर्शन पर निर्भर हैं. ऐसे में अगर चौथे क्वार्टर का प्रदर्शन बिगड़ता है, तो शेयर बाजार की हालत और खराब हो सकती है.

FIIs का एग्जिट

पिछले कई महीनों से विदेशी संस्थागत निवेशक (FII) भारतीय बाजार से पैसे निकाल रहे हैं. पहले जब ऐसा होता था, तब घरेलू संस्थागत निवेशक (DII) निवेश करते थे. हालांकि, इस बार यह ट्रेंड देखने को नहीं मिल रहा है. प्रॉफिटमार्ट सिक्योरिटीज में रिसर्च हेड अविनाश गोरक्षकर ने मिंट को बताया कि DIIs ऐसा इसलिए कर रहे हैं क्योंकि उन्हें मार्केट की कोई क्लियर पिक्चर नहीं मिल रही है.

इस साल अभी तक FIIs ने भारतीय बाजार से एक लाख 13 हजार 721 करोड़ रुपये निकाले हैं. जनवरी महीने में इन निवेशकों ने लगभग 78 हजार करोड़ रुपये निकाले थे, वहीं फरवरी महीने में 35,694 करोड़ रुपये. अविनाश गोरक्षकर बताते हैं,

US बॉन्ड मार्केट में इस सयम बेहतर रिटर्न्स मिल रहे हैं. इसलिए FIIs भारतीय बाजार से अपना पैसा निकालकर अमेरिकी बाजार में निवेश कर रहे हैं. जब तक ट्रंप की टैरिफ घोषणाओं के इर्द-गिर्द तस्वीर साफ नहीं हो जाती, तब तक FIIs भारतीय बाजार में नहीं लौटने वाले.

चीन की चांदी

FIIs का निवेश चीन भी जा रहा है. चीन की सरकार ने पिछले साल देश की अर्थव्यवस्था का कायाकल्प करने के लिए बड़े निवेश का एलान किया था. इस निवेश के बाद FIIs चीन के बाजार में जाने लगे थे. यह दौर अभी भी जारी है. वीके विजयकुमार कहते हैं,

ट्रंप की जीत के बाद अमेरिकी बाजार दुनियाभर से निवेश आकर्षित कर रहा है. दूसरी तरफ संस्थागत निवेश के लिए चीन का बाजार एक मजबूत विकल्प के तौर पर उभरा है. चीन की सरकार के नए प्रयासों ने एक सकारात्मक भावना पैदा की है. इसलिए निवेशक वहां जा रहे हैं. चीन ने ब्याज दरों में कटौती की, मार्केट में पैसा डाला और अर्थव्यवस्था को स्थिर किया. इससे निवेशकों को कॉन्फिडेंस मिला है.

अब आखिरी सवाल. भारतीय शेयर बाजार में ये तबाही कब तक जारी रहेगी? वीके विजयकुमार कहते हैं कि मार्च में कुछ रिकवरी देखने को मिल सकती है. उनका मानना है कि मैक्रोइकॉनमिक स्तर पर बेहतर खबरें आ सकती हैं और कुछ FIIs भी भारतीय बाजार में लौट सकते हैं.

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