भारत में इनवेस्टर्स की एक बड़ी आबादी निवेश के लिए प्रॉपर्टी से लेकर गोल्ड, शेयर या म्यूचुअल फंड को पसंद करती है. वजह है, इसे बेचने पर मिलने वाला मोटा रिटर्न. लेकिन इस कमाई पर आयकर विभाग करदाताओं से भारी टैक्स भी वसूलता है. इसे लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स कहते हैं. एक बार में मोटी कमाई की खुशी पल भर में टैक्स देनदारी सुनकर फीकी पड़ जाती है. लेकिन कुछ ऐसे तरीके हैं जो संपत्ति बेचने पर आपकी टैक्स देनदारी को घटा सकते हैं. ये फायदे आपको आयकर कानून का सेक्शन 54 और सेक्शन-54F के तहत मिलते हैं. आइए जानते हैं किस स्थिति में इन प्रावधानों का फायदा उठा सकते हैंः
प्रॉपर्टी बेचकर हुई मोटी कमाई, ये तरीके लाखों का टैक्स बचाकर सोने पे सुहागा कर देंगे
अगर टैक्सपेयर किसी संपत्ति को बेचने से हुई कमाई को दोबारा किसी आवासीय प्रॉपर्टी में लगाता है तो उसे सेक्शन-54 और सेक्शन-54F के तहत टैक्स छूट मिलने का प्रावधान है.

अगर निवेशक संपत्ति बेचने से हुई कमाई को दोबारा किसी आवासीय प्रॉपर्टी में लगाता है तो उसे सेक्शन-54 और सेक्शन-54F के तहत 10 करोड़ तक टैक्स छूट देने का प्रावधान है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने वित्त वर्ष 2023-24 के लिए बजट पेश करते समय यह ऐलान किया था.
क्या है लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स?टैक्स बचाने के तरीके जानने से पहले जरा लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स को समझ लेते हैं. किसी भी असेट या निवेश को लंबे समय तक रखकर बेचने पर होने वाला फायदा तकनीकी भाषा में कैपिटल गेन कहलाता है. इस फायदे पर आयकर विभाग टैक्स वसूलता है. इस स्थिति में लॉन्ग टर्म कैपिटल ऐसे असेट पर लागू होता है जो दो साल से ज्यादा के लिए रखे गए हैं. अगर असेट रियल एस्टेट में है तो कम से कम तीन सालों के लिए रखा गया हो.
अलग-अलग तरह की संपत्तियों पर भारत में 10-20 फीसदी का कैपिटल गेन टैक्स लगता है. अलग-अलग असेट क्लास से यहां रियल एस्टेट, स्टॉक्स और बॉन्ड, गोल्ड म्यूचुअल फंड या ईडीएफ जैसे इंस्ट्रूमेंट से मतलब है. इस फायदे को आयकर विभाग कमाई की तरह देखता है और उस पर कैपिटल गेन टैक्स नाम से कर लेता है. मिसाल के तौर पर किसी ने 20 लाख रुपये में कोई घर खरीदा. पांच साल बाद उस घर को 40 लाख में बेच दिया. इस तरह उसे 20 लाख रुपये का फायदा हुआ. यह रकम कैपिटल गेन टैक्स के दायरे में आएगी. अब देखते हैं दोनों सेक्शन के तहत निवेशकों को कब और कितना फायदा मिलता हैः
सेक्शन-54F और सेक्शन-54 दोनों के तहत इंडिविजुअल टैक्सपेयर और हिंदू यूनिफाइड फैमिली को ही इस टैक्स छूट का फायदा मिलेगा. असेट बेचने पर मिले प्रॉफिट और नई प्रॉपर्टी की कीमत में जिसकी भी कम वैल्यू हो उसके आधार पर ही टैक्स छूट गिनी जाएगी. इसके अलावा दोबारा निवेश करने के नाम पर नई प्रॉपर्टी खरीदने का एक समय तय किया गया है. नियमों के मुताबिक नई प्रॉपर्टी अगर पुरानी संपत्ति बेचने से एक साल पहले या दो साल बाद खरीदी गई हो. या तीन साल के अंदर बनवा ली गई हो तब निवेशकों को 54 और 54F के तहत छूट का फायदा मिलेगा.
दोनों ही प्रावधानों के तहत टैक्स छूट का फायदा उठाने की अलग-अलग शर्तें हैं. इन मामलों में अलग हैं सेक्शन-54 और 54F-
अगर कोई आवासीय संपत्ति बेचकर मिले मुनाफे से नई प्रॉपर्टी में निवेश किया गया है तो उस पर सेक्शन-54 के तहत टैक्स छूट मिलती है. वहीं, आवासीय संपत्ति को छोड़कर किसी भी संपत्ति जैसे- गोल्ड, शेयर, म्यूचुअल फंड या बॉन्ड को बेचकर मिले पैसों से नई आवासीय प्रॉपर्टी खरीदने पर सेक्शन-54F के तहत टैक्स छूट मिलती है.
अगर इंडेक्स्ड लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन के पैसे से नई प्रॉपर्टी खरीदी गई है तो उस सूरत में सेक्शन-54 के तहत टैक्स छूट का फायदा मिलेगा. कई मामलों में आयकर विभाग इंडेक्सेशन बेनेफिट देता है. इसमें टैक्सपेयर का मुनाफा हाथ में आई कीमत के आधार पर नहीं बल्कि महंगाई को ध्यान में रखकर निकाला जाता है.
टैक्स एक्सपर्ट शरद कोहली ने दी लल्लनटॉप को बताया कि इंडेक्सेशन के तहत मुनाफा निकालने के लिए आयकर विभाग ने एक मानक इंडेक्स तय किया हुआ है. उसी के आधार पर असल टैक्स देनदारी निकाली जाती है. मिसाल के तौर पर किसी आदमी ने 2001 में 10 लाख रुपये का मकान खरीदा और 2005 में 15 लाख रुपये में बेच दिया. यहां पर मोटा-मोटी मुनाफा 5 लाख रुपये होता.
लेकिन, गौर करने वाली बात है कि इस दौरान महंगाई का इंडेक्स भी बढ़कर 6 फीसदी पर पहुंच गया. इस स्थिति में पहले ये निकाला जाएगा 2005 में उस प्रॉपर्टी की कीमत क्या होगी. तय फॉर्म्यूला के आधार पर 2005 में उसी प्रॉपर्टी की लागत 10 लाख 60 हजार रुपये होगी. इस तरह टैक्सपेयर का मुनाफा 4 लाख 40 हजार रुपये होगा. अब टैक्स का आकलन 5 लाख की जगह 4 लाख 40 हजार रुपये पर होगा. इन पैसों से नई प्रॉपर्टी खरीदने पर इस आदमी को सेक्शन-54 के तहत टैक्स में छूट मिलेगी.
जबकि, सेक्शन-54एफ के तहत टैक्स छूट का फायदा उठाने के लिए किसी असेट को बेचने से मिली पूरी रकम को नई प्रॉपर्टी में लगाना होगा. मिसाल के तौर पर किसी ने 10 लाख रुपये में शेयर, म्यूचुअल फंड या कमर्शियल प्रॉपर्टी खरीदी थी और उसे 30 लाख में बेच दिया. इस तरह उसका कैपिटल गेन 20 लाख रुपये हुआ. इस शख्स को अगर मुनाफे पर टैक्स बचता है तो संपत्ति बेचने से मिले प्रॉफिट नहीं बल्कि पूरे 30 लाख रुपये को नई प्रॉपर्टी खरीदने में लगाना होगा तभी उसे सेक्शन-54F का फायदा मिल पाएगा.
इसके अलावा सेक्शन-54F के तहत फायदा लेने के लिए एक और शर्त है. निवेशक के नाम नई प्रॉपर्टी को मिलाकर दो घर से ज्यादा नहीं हो सकते. जबकि, सेक्शन-54 के तहत फायदा लेने के लिए ऐसी कोई शर्त नहीं है.
मान लेते हैं टैक्सपेयर ने जिस साल प्रॉपर्टी बेची उस साल उसने कोई नई प्रॉपर्टी नहीं खरीदी या नहीं बनवाई. उस साल उसका टैक्स कैसे गिना जाएगा? इस पर शरद कोहली ने बताया कि ऐसे लोग ये पैसा कैपिटल गेन अकाउंट स्कीम के तहत खाता खुलवा कर उसमें जमा करवा सकते हैं. आयकर विभाग मानता है कि इस खाते में रखी हुई रकम तय समय के अंदर नई प्रॉपर्टी खरीदने में लगा दी जाएगी और उस पर टैक्स नहीं लगता है. अगर समय के अंदर नई प्रॉपर्टी नहीं खरीद पाए तो? इस स्थिति आयकर विभाग इस रकम को कमाई मानकर उसी तरीके से टैक्स काटता है.
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