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हिंडनबर्ग-अडानी रिपोर्ट पर ED का बड़ा खुलासा, रिपोर्ट से पहले हो गया अरबों छापने का खेल!

ED ने SEBI को भेजी अपनी जांच रिपोर्ट में शॉर्ट सेलिंग के बारे में बताया है. ED के मुताबिक, 12 कंपनियों ने हिंडनबर्ग रिपोर्ट आने से पहले अडानी समूह के शेयरों पर शॉर्ट पोजिशन ले ली थी.

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हिंडनबर्ग रिपोर्ट के बाद अडानी समूह को बहुत नुकसान हुआ था (फाइल फोटो: इंडिया टुडे)

हिंडनबर्ग रिपोर्ट (Hindenberg Report) और अडानी ग्रुप (Adani Group) से जुड़ी एक नई जानकारी सामने आई है. अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने अपनी शुरुआती जांच के बाद कहा है कि एक दर्जन कंपनियों ने अडानी ग्रुप के शेयर्स की शॉर्ट सेलिंग से 'सबसे ज्यादा मुनाफा' कमाया है. ED ने जुलाई 2023 में भारत के शेयर मार्केट रेगुलेटर, Securities and Exchange Board of India (SEBI) के साथ अपनी जांच के कुछ निष्कर्ष साझा किए थे. आरोप है कि ये सब अडानी ग्रुप पर वित्तीय अनियमितता का आरोप लगाने वाली हिंडनबर्ग रिपोर्ट जारी होने के दौरान हुआ. सभी कंपनियां टैक्स हेवन कहे जाने वाले उन देशों से काम करती हैं जहां व्यापार करने पर निवेशकों, कंपनियों या विदेशी निवेशकों पर बहुत कम या जीरो इनकम टैक्स लगता है. इन कंपनियों में कुछ विदेशी पोर्टफोलियो इन्वेस्टर्स (FPI) और कुछ इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर्स (FII) भी हैं. ED के मुताबिक, इन कंपनियों ने हजारों करोड़ रुपये कमाकर विदेशों में बैठे ‘बड़े खिलाड़ियों’ को फायदा पहुंचाया है. 

खबर के साथ आगे बढ़ने से पहले शॉर्ट सेलिंग समझना जरूरी है.

शॉर्ट सेलिंग का खेल

सामान्य रूप से एक निवेशक किसी कंपनी के शेयर में पैसा इस उम्मीद से लगाता है कि शेयर का दाम बढ़ेगा तो उसका मुनाफा भी बढ़ेगा. लेकिन शॉर्ट सेलिंग इसके ठीक उलट है. शॉर्ट सेलिंग में फायदा तब होता है जब किसी कंपनी के शेयर घाटे में चले जाएं. माने उनका प्राइस गिर जाए.

कैसे? इसके लिए आपको पहले शेयर बेचना होता है. आप कहेंगे मेरे पास शेयर ही नहीं हैं तो बेचें कैसे? उसके लिए होता है आपका शेयर ब्रोकर. ये कोई शेयर ब्रोकिंग कंपनी हो सकती है या कोई इंडिविजुअल. अब मान लीजिए आपको लगता है कि XYZ कंपनी के शेयर का दाम घटेगा. ऐसे में आपने अपने शेयर ब्रोकर से कहा कि वो आपको XYZ कंपनी के 10 शेयर उधार दे दे. और अगर शेयर 10 रुपये का था तो आपने आगे किसी तीसरे व्यक्ति को ये 10 शेयर बेच दिए. आपके पास कुल रुपये आए 100. अब मान लीजिए कुछ वक्त बाद XYZ के शेयर का दाम घटकर 8 रुपये हो गया. ऐसे में आपने 10 शेयर खरीद लिए. जिसे बेचे थे वो भी आपको दे सकता है और ओपन मार्केट में भी आप किसी और से खरीद सकते हैं. और इसके लिए आपको सिर्फ 80 रुपये देने होंगे. इधर आपने जिस जिस ब्रोकर से 10 शेयर खरीदे थे, उसे वापस दे दिए. कुल मिलाकर उधार लिए हुए शेयर भी चुकता हो गए और आपको 20 रुपये का प्रॉफिट भी हुआ. यही शॉर्ट सेलिंग है. हालांकि ये शेयर की ट्रेडिंग से कहीं ज्यादा आर्थिक जोखिम का काम होता है. कैसे, ये फिर कभी समझेंगे. 

फ़िलहाल वापस आते हैं खबर पर.

इंडियन एक्सप्रेस में छपी रितु सरीन की खबर के मुताबिक, जब इस साल 24 जनवरी को अडानी ग्रुप से जुड़ी हिंडनबर्ग की रिपोर्ट आई, उसके 2-3 दिन पहले ही 12 कंपनियों में से कुछ ने पोजीशनिंग कर ली थी. आसान भाषा में शॉर्ट सेलिंग में पोजीशन लेने का मतलब है शेयर बेचना. माने लगभग आधा काम कर लेना. इसके अलावा कुछ और कंपनियां भी पहली बार शॉर्ट पोजीशन ले रही थीं.

बता दें कि घरेलू निवेशकों के अलावा SEBI के साथ रजिस्टर्ड FPIs और FIIs को भी डेरीवेटिव में ट्रेडिंग करने की अनुमति है. माने निवेशक घाटे के खतरे से बचने के लिए अपने निवेश की खरीद-फरोख्त कर सकते हैं. हालांकि, SEBI इस पर नजर रखता है. बड़े पैमाने पर ऐसा करना कान खड़े करने वाला होता है. SEBI का मानना है कि प्रतिबंधों के चलते किसी शेयर प्राइस में नुकसान हो सकता है, प्रमोटर्स को कीमतों में हेर-फेर की अनुमति मिल सकती है और हेर-फेर करने वालों को मदद. इसलिए प्रतिबंध जरूरी हैं.

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इंडियन एक्सप्रेस अपने सूत्रों के हवाले से लिखता है कि इन 12 कंपनियों में से 3 भारत की हैं. इन तीन में से एक विदेशी बैंक की भारतीय ब्रांच है. जबकि 4 कंपनियां मॉरीशस की हैं और एक-एक फ्रांस, हांगकांग, केमैन द्वीप, आयरलैंड और लंदन की कंपनियां हैं. इनमें से किसी भी कंपनी ने इनकम टैक्स ऑफिसर्स को अपने मालिकाना हक़ के बारे में जानकारी नहीं दी है.

कंपनियों ने चंद महीनों में हजारों करोड़ कमाए

एक कंपनी जुलाई 2020 में आधिकारिक रूप से शुरू हुई. सितंबर 2021 तक कंपनी कोई बिज़नेस नहीं कर रही थी. और सितंबर 2021 से मार्च 2022 तक सिर्फ 6 महीने में इस कंपनी का कारोबार 31 हजार करोड़ रुपये का हो गया, जिससे कंपनी ने 1,100 करोड़ रुपये की कमाई की. इसी तरह एक और फाइनेंशियल सर्विसेज देने वाले ग्रुप ने केवल 122 करोड़ रुपये कमाए. ये ग्रुप भारत में एक कंपनी की तरह काम करता है. जबकि एक और फॉरेन इन्वेस्टर कंपनी ने 9 हजार 700 करोड़ रुपये कमाए.

केमैन आइलैंड्स वाली इन्वेस्टर कंपनी, अडानी के शेयर्स की शॉर्ट सेलिंग से फायदा कमाने वाली 12 कंपनियों में से एक है. इस कंपनी का मालिकाना हक़ रखने वाली कंपनी को अंदरूनी शेयर ट्रेडिंग (इनसाइडर ट्रेडिंग) का दोषी पाया गया था. इसने अमेरिका में 14 हजार 880 करोड़ रुपये से ज्यादा का जुर्माना भी दिया था. केमैन आइलैंड्स वाली कंपनी ने  20 जनवरी को अडानी ग्रुप के शेयर्स में शॉर्ट पोजिशन ली और 23 जनवरी को इसे और बढ़ा दिया. वहीं मॉरीशस वाली कंपनी ने पहली बार 10 जनवरी को शॉर्ट पोजिशन ली थी.

'टॉप शॉर्ट सेलर्स' में दो भारतीय कंपनियां हैं. इनमें से एक के प्रमोटर्स के खिलाफ SEBI ने इन्वेस्टर्स को गुमराह करने और शेयर बाजार में हेरफेर पर एक आदेश पास किया था. जबकि दूसरी कंपनी मुंबई में रजिस्टर्ड है.

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सुप्रीम कोर्ट में मामला

ED ने इनसाइडर ट्रेडिंग से जुड़ी कुछ जानकारी जुटाई थी और अडानी ग्रुप पर वित्तीय गड़बड़ियों के आरोपों की जांच के लिए बनाई गई सुप्रीम कोर्ट द्वारा 6 सदस्यीय एक्सपर्ट कमेटी को ये जानकारियां और अपनी जांच के नतीजे सौंपे थे. कमेटी ने 6 मई 2023 को 173 पेज की अपनी फाइनल रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपी थी. इसमें कमेटी ने कहा था कि ED को कुछ पक्षों द्वारा नियमों का उल्लंघन करते हुए शेयर्स की बिक्री की जानकारी मिली है. और इससे भारतीय बाजारों को ठोस रूप से अस्थिर करने के आरोप लग सकते हैं. ऐसे में SEBI को क़ानून के तहत जांच करनी चाहिए.

इसके बाद बीते हफ्ते सुप्रीम कोर्ट के सामने SEBI ने कहा था कि इस मामले में जांच की 22 रिपोर्ट्स फाइनल हैं जबकि 2 रिपोर्ट्स अंतरिम हैं. इनमें से एक रिपोर्ट SEBI के शेयर्स से जुड़े नियमों के उल्लंघन से जुड़ी है जबकि दूसरी अडानी ग्रुप की कंपनियों में शेयर्स की ट्रेडिंग के पैटर्न और शेयर्स की शॉर्ट पोजीशनिंग की जांच से जुड़ी है. 18 से 31 जनवरी के बीच चली जांच में SEBI ने ये पता करने की कोशिश की है कि क्या हिंडनबर्ग की रिपोर्ट आने के आस-पास के वक़्त कुछ गड़बड़ियां हो रही थीं. SEBI का कहना है कई वो बाहरी एजेंसीज और संस्थाओं से कुछ जानकारी आने के इंतजार में है.

ED ने SEBI को अपनी जांच के नतीजे में ये भी बताया है कि लेनदेन और इनकम टैक्स का डाटा इस बात की तरफ इशारा करता है कि शॉर्ट सेलिंग करने वाली कंपनियां इस खेल से लाभ उठाने वाले आख़िरी नहीं हैं, बल्कि ये कंपनियां असल में विदेशों में बैठे बड़े खिलाड़ियों के लिए बिचौलिए का काम कर रही हैं.

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