नौकरी देते हुए कंपनियां खूब इतरा कर बताती हैं कि सैलरी के अलावा आपको मेडिक्लेम या मेडिकल इंश्योरेंस पॉलिसी भी मिलेगी. एक नए नवेले फ्रेशर को लगता है कि सैलरी से इतर पांच लाख रुपये का मेडिकल इंश्योरेंस मिल रहा है, डील इतनी बुरी भी नहीं है. लेकिन यहीं पर वो गच्चा खा जाते हैं.
मेडिक्लेम और मेडिकल इंश्योरेंस को एक समझने की गलती मत करना, नहीं तो बिल भरते रह जाओगे
हेल्थ इंश्योरेंस में हॉस्पिटल के खर्चों के अलावा बीमारी से जुड़ी सभी तरह के खर्चे कवर होते हैं. जैसे- OPD का खर्चा, हर दिन देखभाल में लगने वाला खर्चा, दवाई का खर्चा और एंबुलेंस का खर्चा. जबकि, मेडिक्लेम पर सिर्फ हॉस्पिटल में भर्ती होने से जुड़े खर्चे ही मिलेंगे.
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दरअसल, कई लोग मेडिक्लेम और मेडिकल इंश्योरेंस को एक ही चीज समझ बैठते हैं. जबकि, दोनों कई मायनों में एक दूसरे से अलग होते हैं. इसलिए कंपनी बीमा करा रही हो या आप खुद खरीद रहे हों, तो ये जरूर देख लें कि वो क्या है- मेडिक्लेम या मेडिकल इंश्योरेंस. दोनों के बीच का अंतर समझेंगे, लेकिन उससे पहले दोनों चीजों को अलग-अलग समझ लेते हैं.
हेल्थ इंश्योरेंसहेल्थ इंश्योरेंस प्लान लेने वालों को सेहत से जुड़े कई तरह के खर्चों का पैसा वापस मिलता है. इंश्योरेंस लेने वाला बीमा कंपनी को पॉलिसी के लिए एक प्रीमियम भरता है. इसके बदले उसे हॉस्पिटल में भर्ती होने से लेकर, एंबुलेंस चार्ज, दवाई, दिन में उसकी देखभाल के ऊपर आने वाले खर्चे वापस मिलते हैं.
हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी दो तरह से काम करती है. रिंबर्समेंट और कैशलेस. यानी या तो पॉलिसी लेने वाला सारी पेमेंट खुद कर दे और बाद में उसके बिल कंपनी के पास जमा कर दे. बिल वेरिफाई होने के बाद उसे पैसे वापस मिल जाएंगे. दूसरा तरीका है, जो भी खर्चा आए वो सीधे बीमा कंपनी ही भर दे.
बीमा पॉलिसी लेने वाले को कोई पेमेंट करने की जरूरत नहीं पड़ती. ये सुविधा कैशलेस कहलाती है. ये सुविधा उन्हीं अस्पतालों में मिलती है, जिनका बीमा कंपनियों के साथ टाइअप होता है. इसे कैशलेस मोड कहते हैं.
मेडिक्लेनमेडिक्लेम भी एक तरह का मेडिकल इंश्योरेंस ही होता है, लेकिन मेडिक्लेम का पैसा तभी मिलेगा जब पॉलिसी लेने वाला हॉस्पिटल में भर्ती हो. इसके इतर किसी अन्य खर्चे के लिए मेडिक्लेम से पैसे नहीं मिलेंगे. वो पैसे खुद की जेब से ही भरने होंगे. ज्यादातर मामलों में अधिकतम 5 लाख रुपये तक का ही मेडिक्लेम मिलता है. एक्सिडेंट हो जाए, अचानक कोई सर्जरी करानी पड़े, उस सूरत में मेडिक्लेम काम आ सकता है. मेडिक्लेम के तहत पैसा लेने के लिए हॉस्पिटल में भर्ती होना जरूरी शर्त है.
ज्यादातर लोग मेडिक्लेम पॉलिसी और हेल्थ इंश्योरेंस को एक ही समझते हैं. जबकि, दोनों में कई फर्क हैं. दिक्कत तब आती है जब आप सारे खर्चों का बिल लेकर पैसा क्लेम करने जाते हैं. वहां जाकर पता चलता है कि उन्होंने तो मेडिक्लेम खरीदा था और उन्हें सिर्फ हॉस्पिटल में भर्ती के दौरान हुआ खर्चा वापस मिलेगा. इसलिए पॉलिसी खरीदते वक्त चौकन्ना रहना जरूरी होता है.
दूसरी तरफ हेल्थ इंश्योरेंस में हॉस्पिटल के खर्चों के अलावा बीमारी से जुड़े सभी तरह के खर्चे कवर होते हैं. जैसे- OPD का खर्चा, हर दिन देखभाल में लगने वाला खर्च, दवाई का खर्चा और एंबुलेंस का खर्चा.
इसे उदाहरण से समझते हैं. मान लेते हैं एक शख्स का एक्सीडेंट हुआ. उसे पैर में चोट लगी. डॉक्टर ने कुछ दवाइयां लिखीं और घर पर आराम करने को कहा. कुछ दिनों के बाद आराम नहीं हुआ तो वह हॉस्पिटल गया. वहां डॉक्टरों ने MRI समेत कई अन्य टेस्ट कराने को कहा. रिपोर्ट में पता चलता है कि चोट काफी गहरी है और पैर का ऑपरेशन करना पड़ेगा. उसे हॉस्पिटल में भर्ती किया गया. उसका ऑपरेशन हुआ, रोज उसकी मरहम पट्टी की जा रही है. दवाईयां आ रही हैं. हॉस्पिटल में भर्ती रहने के बाद वो घर आ गया. डॉक्टर्स ने कहा कि घर पर भी उसे स्पेशल केयर में रखना होगा. इस दौरान पीड़ित शख्स ने बीमा क्लेम करने के लिए सारे बिल भरे.
हॉस्पिटल में भर्ती होने से पहले डॉक्टर को दिखाने का खर्च= 1500 रुपये.
दवाईयों का खर्च= 5000 रुपये.
दोबारा डॉक्टर को दिखाने का खर्च= 1500 रुपये.
MRI समेत अन्य टेस्ट का खर्च= 40,000 रुपये.
लिंब ऑपरेशन का खर्च= 3 लाख रुपये.
10,000 रुपये प्रति दिन के हिसाब से 10 दिन हॉस्पिटल में भर्ती रहने का खर्च= 10,000X10= 1 लाख रुपये.
हॉस्पिटल में भर्ती रहने के दौरान देखभाल पर अन्य खर्च आया= 35,000 रुपये.
घर पर स्पेशल केयर में रखने का खर्च= 50,000 रुपये.
इस आदमी का कुल खर्चा आया= 5,31,500 रुपये.
इस स्थिति में अगर शख्स ने मेडिकल इंश्योरेंस लिया है तो वह पूरे 5 लाख 31 हजार 500 रुपये पाने का हकदार होगा. वहीं, मेडिक्लेम लेने वाला सिर्फ लिंब ऑपरेशन का खर्च+10 दिन हॉस्पिटल में भर्ती रहने का खर्च यानी 4 लाख रुपये ही क्लेम कर पाएगा. यानी 1,31,500 रुपये का फर्क पड़ जाएगा.
मेडिकल इंश्योरेंस में पॉलिसी होल्डर्स अपनी जरूरत के हिसाब से किसी खास बीमारी के लिए अलग से ऐड ऑन या कवर जुड़वा सकते हैं. मिसाल के तौर पर किसी गंभीर बीमारी के लिए, गर्भावस्था के लिए, कैंसर के लिए. वहीं, मेडिक्लेम में अलग से ऐसा कोई कवर नहीं जुड़वा सकते हैं. मेडिकल इंश्योरेंस कवरेज अलग-अलग पहलुओं पर निर्भर करता हैः उम्र, जगह और घर के सदस्यों की संख्या. प्लान में अपनी जरूरत के हिसाब से फेरबदल करवाया जा सकता है. जबकि, मेडिक्लेम में ज्यादा फेरबेदल नहीं करवा सकते.
बेहतर क्या है?मेडिक्लेम बेहतर रहेगा या हेल्थ इंश्योरेंस, इसका फैसला कई पहलुओं पर निर्भर करता है.
आपकी आर्थिक स्थिति कैसी है.
आपकी या आपके घरवालों की सेहत कैसी है, उन्हें कोई बीमारी तो नहीं है.
आप लंबे समय के लिए सुरक्षा चाहते हैं या कम समय के लिए.
हेल्थ प्लान में लचीलापन चाहते हैं या नहीं.
ऐड ऑन या कवर की जरूरत पड़ेगी या नहीं.
ज्यादा प्रीमियम देना चाहते हैं या कम.
आपकी या घरवालों के सदस्यों की उम्र कितनी है.
अगर कम प्रीमियम देना चाहते हैं, या कम समय के लिए हेल्थ प्लान लेना चाहते हैं या फिर इमरजेंसी केस के लिए हेल्थ प्लान की जरूरत लग रही है तो मेडिक्लेम ले सकते हैं. उम्मीद करते हैं आप मेडिकल इंश्योरेंस और मेडिक्लेम में बड़े अंतर समझ गए होंगे. इसलिए मेडिक्लेम लें या इंश्योरेंस प्लान, पहले अच्छे तरीके से रिसर्च कर लें. अपनी जरूरतें समझ लें, उसके बाद ही हेल्थ प्लान खरीदें.