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यूपी का ये मुख्यमंत्री अपने अकाउंट में मात्र दस हजार रुपये लेकर मरा

डाइनिंग टेबल पर खुद ही बोलता- 'गली-गली में शोर है, सी बी गुप्ता चोर है'.

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ऋषभ
5 मार्च 2018 (Updated: 4 मार्च 2018, 05:01 IST)
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यूपी की राजनीति किसी दूसरे ग्रह से आई है. हमेशा अद्भुत चीजें मिलती हैं. हम आपको पढ़ा रहे हैं यूपी के मुख्यमंत्रियों के बारे में. नवाब छतारी, गोविंदबल्लभ पंत और संपूर्णानंद के बारे में बताया जा चुका है. आज कहानी है चंद्रभानु गुप्ता की जो आजीवन ब्रह्मचारी रहे. करप्शन का आरोप लगा पर जब मरे तो अकाउंट में मात्र दस हजार रुपये थे.



 
पंडित गोविंदबल्लभ पंत के होम मिनिस्टर बनने के बाद संपूर्णानंद को मुख्यमंत्री बनाया गया था. पर जैसा कि पहले के आर्टिकल में लिखा जा चुका है, यूपी की राजनीति में कई धड़े बन गये थे. एक धड़ा कमलापति त्रिपाठी का था. दूसरा चंद्रभानु गुप्ता का. आपस में खींचतान रहती. इनमें से कोई बुरा इंसान नहीं था, पर राजनीति किसको छोड़ती है. हर तरह के चक्रव्यूह रचे जाते. लोगों को भरोसा नहीं होता कि ये वही लोग हैं जो स्वतंत्रता संग्राम में साथ लड़े थे.
वो मुख्यमंत्री जो राज्यपाल बना. एकमात्र राज्यपाल जिसके नाम पर संस्थानों के नाम रके गए. (1) डॉक्टर संपूर्णानंद

काकोरी कांड के वकील के रूप में शुरूआत हुई
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चंद्रभानु गुप्ता (14 जुलाई 1902- 11 मार्च 1980)

चंद्रभानु गुप्ता का जन्म 14 जुलाई 1902 में अलीगढ़ के बिजौली में हुआ था. उनके पिता हीरालाल सामाजिक व्यक्ति थे. लिहाजा चंद्रभानु का भी समाज लोगों से भरा था. वो दौर आर्यसमाज का था. चंद्रभानु इससे जुड़ गये और पूरे जीवन इन्हीं बातों को ले के चलते रहे. आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन करते रहे, कभी शादी नहीं की. इनकी शुरुआती पढ़ाई लखीमपुर खीरी में हुई. फिर वो लखनऊ चले आए. लॉ पूरा किया. और लखनऊ में ही वकालत शुरू कर दी. एक जाने-माने वकील बन गये. उस वक्त के अधिकांश नेता जाने-माने वकील ही होते थे. आजकल तो वकीलों की बाढ़ आ गई है. उस वक्त बहुत कम लोग ही पढ़ते थे लॉ. जो पढ़ गया वो जाना-माना हो जाता था. बस गांधीजी ही वकालत में कुछ खास नहीं कर पाए थे.
17 बरस की उम्र में चंद्रभानु स्‍वतंत्रता आंदोलन में उतर आए थे. सीतापुर में रौलेट एक्ट के खिलाफ प्रदर्शन में शामिल हुए. ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आवाज उठाना उस दौर में जवानी की निशानी थी. ना उठाने का ऑप्शन ही नहीं था. चंद्रभानु साइमन कमीशन के विरोध में भी खड़े हुए. जेल गये. पूरे स्वतंत्रता आंदोलन में कुल 10 बार जेल गये. इसी दौरान काकोरी काण्ड के क्रांतिकारियों के बचाव दल के वकीलों में भी रहे.
फिर राजनीति ऐसी हुई कि मुख्यमंत्री बने पर नेहरू की नापसंदगी के चलते हटना पड़ा
cm-cb-gupta_3_i चंद्रभानु गुप्ता

चंद्रभानु गुप्ता के राजनीतिक करियर की शुरुआत 1926 में हुई. उनको उत्तर प्रदेश कांग्रेस और ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी का सदस्य बनाया गया. चंद्रभानु ने राजनीति में आते ही बहुत कम समय में कांग्रेस में अपनी पहचान बना ली थी. तुरंत यूपी कांग्रेस के ट्रेजरार, उपाध्यक्ष और अध्यक्ष भी बने. 1937 के चुनाव में वो उत्तर प्रदेश विधान सभा के सदस्य चुने गए. फिर स्वतन्त्रता के बाद 1946 में बनी पहली प्रदेश सरकार में वो गोविंदबल्लभ पंत के मंत्रिमंडल में पार्लियामेंट्री सेक्रेटरी के रूप में सम्मिलित हुए. फिर 1948 से 1959 तक उन्होंने कई विभागों के मंत्री के रूप में काम किया.
cm-cb-gupta_1_i चंद्रभानु गुप्ता गोविंदबल्लभ पंत के साथ

1960 में उनको यूपी का मुख्यमंत्री बनाया गया. उस वक्त ये रानीखेत साउथ से विधायक थे. संपूर्णानंद के मुख्यमंत्री रहते हुए पॉलिटिक्स बहुत जटिल हो गई थी. कई धड़े बन गये थे कांग्रेस में. ऐसे में संपूर्णानंद को राजस्थान का राज्यपाल बना दिया गया और चंद्रभानु को यूपी का मुख्यमंत्री. इस बीच गुप्ता का कद यूपी की राजनीति में बहुत ज्यादा बढ़ गया था. मुख्यमंत्री बनना हर तरह के विपक्ष पर भारी जीत थी. इससे केंद्र के नेताओं में खलबली मच गई. ये वो दौर था जब केंद्र में नेहरू की सत्ता को कांग्रेस के लोग ही चुनौती देने लगे थे.
चंद्रभानु नेहरू के सोशलिज्म से पूरी तरह प्रभावित नहीं थे. तो नेहरू इनको पसंद नहीं करते थे. पर यूपी कांग्रेस में चंद्रभानु का इतना रौला था कि विधायक पहले चंद्रभानु के सामने नतमस्तक होते थे, बाद में नेहरू के सामने साष्टांग. नेहरू डिंट लाइक दिस. 1963 में के कामराज ने नेहरू को सलाह दी कि कुछ लोगों को छोड़कर सारे कांग्रेस के मुख्यमंत्रियों को रिजाइन कर देना चाहिए. जिससे कि स्टेट सरकारों को फिर से ऑर्गेनाइज किया जा सके. कहा गया कि कुछ दिन के लिए पद छोड़ दीजिए. पार्टी के लिए काम करना है. पर चंद्रभानु की नजर में ये था कि ये सारा गेम इसलिए हो रहा है कि नेहरू जिसको पसंद नहीं करते, वो चला जाए. उन्होंने मना कर दिया. पर इनको समझा लिया गया कि ये कुछ दिनों की बात है. फिर से आपको बना दिया जायेगा मुख्यमंत्री. पर नहीं हुआ ऐसा. कामराज प्लान के तहत चंद्रभानु को आदर्शों की दुहाई पर पद छोड़ना पड़ा. जनतंत्र पर तानाशाही का बड़ा ही डेमोक्रेटिक वार था ये. चुने हुए नेता को नापसंदगी की वजह से पद से हटना पड़ा.
तीन बार मुख्यमंत्री रहे पर किस्मत बार-बार पलटती रही
cm-cb-gupta_2_i सारे नेता एक जगह बैठे हुए हैं

चंद्रभानु तीन बार उत्‍तर प्रदेश के मुख्‍यमंत्री रहे थे. 1960 से 1963 तक तो रहे ही. पर मुख्यमंत्री पद छोड़ने के बाद भी राजनीति में उनका प्रभाव बना रहा. किस्मत की बात. 1967 के चुनाव में जीतने के बाद फिर से मुख्यमंत्री बने. लेकिन इस बार सिर्फ 19 दिनों के लिए. फिर से वही किस्मत. किसान नेता चौधरी चरण सिंह ने कांग्रेस को तोड़कर अपनी पार्टी बना ली. चंद्रभानु की सरकार गई. चरण सिंह मुख्यमंत्री बन गये. पर वो सरकार चला नहीं पाए. वो सरकार भी गिरी. और चंद्रभानु गुप्ता को आनन-फानन में फिर मुख्यमंत्री बनाया गया 1969 में. करीब एक साल तक इस पद पर बने रहे. तभी कुछ ऐसा हुआ जिसने कांग्रेस को हमेशा के लिए बदल दिया.
1969 में कांग्रेस पार्टी टूट गई. ये यूपी का अंदरूनी मसला नहीं था. अबकी टूट केंद्र के लेवल पर हुई थी. इंदिरा गांधी और कामराज के नेतृत्व वाले सिंडिकेट ग्रुप में. सबको लगा था कि इंदिरा हाथों की कठपुतली रहेंगी. पर इंदिरा सबसे बड़ी पॉलिटिशियन निकलीं. दोनों धड़ों में तकरार हुई राष्ट्रपति को लेकर. मोरारजी देसाई इंदिरा के प्रबल विरोधी निकले. चंद्रभानु गुप्ता मोरार जी कैंप में चले गये. पर ये कैंप हार गया. इंदिरा के सपोर्ट से वी वी गिरि राष्ट्रपति बन गये. यहीं पर सिंडिकेट के अधिकांश नेताओं के करियर पर ब्रेक लग गया. चंद्रभानु का करियर खत्म हो गया. पर वक्त की बात है. मोरारजी भी प्रधानमंत्री बने. चंद्रभानु को मंत्रिमंडल में पद ऑफर किया. पर चंद्रभानु की हेल्थ बहुत खराब हो गई थी. मंत्री पद लेना मुनासिब नहीं था. उन्होंने मना कर दिया. 11 मार्च 1980 को मौत हो गई.
इनसे जुड़े कुछ किस्से यूं हैं-
1. गली-गली में शोर है, सी बी गुप्ता चोर है
चंद्रभानु ने कभी शादी नहीं की थी. पर किसी भी तरह का आरोप नहीं लगा था उन पर. हालांकि विरोधी उन पर सवाल उठाते रहते थे. पर चंद्रभानु इतने चिल्ल थे कि एक डिनर पार्टी में खुद ही मजाक करने लगे- 'आप लोगों ने सुना? गली-गली में शोर है, सी बी गुप्ता चोर है.'
2. नेहरू के लिए वेजीटेरियन खाना रातोरात इन्वेंट किया गया
प्रधानमंत्री नेहरू और प्रेसिडेंट जाकिर हुसैन चंद्रभानु गुप्ता की डाइनिंग टेबल पर लखनऊ के इम्तियाज पहलवान के वेजीटेरियन खाने की तारीफ करते रहते थे. इम्तियाज मांसाहार बनाते थे. पर गुप्ता ने वेज बनाने को कहा. ये बड़ा शॉकिंग और डरावना था. पर इम्तियाज ने रात भर दिमाग लगाया. आखिर इतने बड़े लोगों की खिदमत जो करनी थी. तो फिश कालिया की जगह लौकी कालिया बनी. मुर्ग मुसल्लम की जगह जैकफ्रूट मुसल्लम और शमी कबाब की जगह लोटस स्टेम कबाब बना. नेहरू और हुसैन दोनों ने खूब तारीफ की. इम्तियाज कुरैशी बाद में ITC होटल्स के ग्रैंड मास्टर शेफ बने. और दम पख्त ब्रैंड नाम की इंडियन क्यूजीन बनाई.
3. जब मरे तो एकाउंट में दस हजार रुपये थे
पार्टी के लिए ब्रिलिएंट स्ट्रेटजिस्ट और फंड रेजर माने जाते थे. गुप्ता के आलोचक कहते हैं कि यही थे जो कांग्रेस में अनएकाउंटेड पैसा लाये. पर बड़ाई करने वाले कहते हैं कि प्रजेन्ट लखनऊ इन्हीं के दिमाग की उपज है. कहते हैं कि बिजनेस मैन गुप्ता को पैसे देते और बदले में सरकारी फेवर लेते. पर उस वक्त शायद इन चीजों पर उतनी बात नहीं होती थी. गुप्ता लोगों की मांगों पर हमेशा फनी जवाब देते. हमेशा आरोप लगता रहा कि गुप्ता ने खूब पैसा बनाया है. पर जब मरे तो उनके अकाउंट में दस हजार रुपये थे.
4. हट के काम करने का जुमला फेमस था
चंद्रभानु गुप्‍ता एक अलग नेचर के राजनेता माने जाते थे. उनका जुमला मशहूर था कि जो भी काम करो, वो हट के करो.
5. राजनैतिक लड़ाई हो तो फिर ऐसी ही हो
चंद्रभानु से जुड़ा एक किस्‍सा आज भी याद किया जाता है. उस वक्त चंद्रभानु गुप्ता उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे. उनके खिलाफ भविष्य के प्रधानमंत्री चंद्रशेखर और उनके साथियों ने लखनऊ में प्रदर्शन किया. प्रदर्शन करते-करते शाम हो गई थी. लगभग दस हज़ार प्रदर्शनकारी लखनऊ में थे. पर किसी के खाने-पीने का कोई इंतजाम नहीं था. तो चंद्रशेखर अपने कुछ साथियों के साथ  चंद्रभानु गुप्ता से मिलने गए. चंद्रभानु ने कहा, आओ भूखे-नंगे लोगों. इनको ले तो आए, अब क्या लखनऊ में भी भूखा ही रखोगे. चंद्रशेखर ने कहा - आपका राज है, जैसा चाहें कीजिए.  चंद्रभानु गुप्ता  बोले, ' पूड़ी-सब्जी पहुंचती ही होगी. मैंने पहले ही समझ लिया था कि बुला तो लोगे, लेकिन खाने का इंतजाम नहीं कर पाओगे.' ये उस वक्त की राजनैतिक लड़ाई थी जिसमें पर्सनल चीजें अलग ही रहती थीं.
हालांकि कहा ये भी जाता है कि चंद्रभानु गुप्ता के दुश्मन बहुत थे और दोस्त बहुत कम. पर चंद्रभानु गुप्ता के अंदाज निराले थे.


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