The Lallantop
X
Advertisement
  • Home
  • News
  • Story of BJP's Dayashankar Sin...

BJP के बैड बॉय दयाशंकर सिंह के बदनाम किस्से

बसपा प्रमुख पर भद्दी टिप्पणी करने वाले भाजपा नेता के बारे में जान तो लीजिए.

Advertisement
Img The Lallantop
pic
सौरभ द्विवेदी
20 जुलाई 2016 (Updated: 20 जुलाई 2016, 12:21 IST)
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share
साल था 1999 का. यूपी में सरकार थी कल्याण सिंह की. लखनऊ यूनिवर्सिटी में हुए स्टूडेंट यूनियन के चुनाव. RSS की स्टूडेंट विंग ABVP के कैंडिडेट थे दयाशंकर सिंह. बलिया के रहने वाले. वह पिछले साल यूनियन में जनरल सेक्रेट्री रह चुके थे. कैंपस में उनकी दबंग छवि थी. उन्हें पूर्वांचल के माफिया अभय सिंह का खास माना जाता था. अभय सिंह उस वक्त पूर्वांचल में आतंक का दूसरा नाम बन चुके मुख्तार अंसारी का चेला था. मुख्तार अंसारी उस वक्त यूपी के टॉप 10 गैंगस्टर में था. साथ में बीएसपी से एमएलए भी था.
कैंपस में दो गुट काम करते थे. एक अभय सिंह का गुट. दूसरा दो बरस पहले लखनऊ यूनिवर्सिटी में जनरल सेक्रेट्री रहे अनिल सिंह वीरू का गुट. दोनों में खूब गैंगवार होती थी. कत्ल होते थे. एक दूसरे के खिलाफ क्रॉस एफआईआर होती थीं.
ऐसा ही एक कत्ल हुआ 1998 में. धर्मेंद्र नाम के लड़के का. वह वीरू का खास था. जिन लोगों के खिलाफ नामजद रिपोर्ट दर्ज हुई, उनमें एक थे दयाशंकर सिंह. मगर पुलिस उन पर हाथ नहीं डाल पाई. दयाशंकर सीएम कल्याण सिंह के खास थे. एबीवीपी के नेता थे. जनरल सेक्रेट्री थे. कहा जाता है कि उन्हें बचाने के लिए जांच क्राइम ब्रांच को ट्रांसफर कर दी गई. उसके बाद क्या होता है, सब जानते हैं.
कल्याण सिंह के साथ दयाशंकर सिंह
कल्याण सिंह के साथ दयाशंकर सिंह

साल बीता. यूनिवर्सिटी में सम्मानित शिक्षाविद और प्रोफेसर रूपरेखा वर्मा कार्यवाहक वीसी का काम संभाल रही थीं. वह नेतागीरी वाले प्रेशर कतई नहीं लेती थीं. इससे सरकार और सत्ताधारी दल को दिक्कत हो रही थी. और नेता खुलकर अपनी पार्टी के स्टूडेंट्स का पक्ष ले रहे थे. एक उदाहरण से हालात समझिए. छात्रसंघ का शपथ ग्रहण समारोह हुआ. मंच पर मुख्यमंत्री कल्याण सिंह थे. एक्टिंग वीसी रूपरेखा वर्मा थीं. और यूनियन के लोग. जनरल सेक्रेट्री दयाशंकर सिंह भाषण देने आए. उन्होंने मंच से ही एक्टिंग वीसी को बहुत खरी-खोटी सुनाई. जब कल्याण सिंह बोलने आए तो उन्होंने भी अपने छात्र नेताओं को पद की गरिमा समझाने की जरूरत नहीं समझी. कुछ ही महीनों बाद रूपरेखा वर्मा ने पद से इस्तीफा दे दिया. बोलीं, मैं कैंपस को गुंडों से मुक्त करने में असहाय महसूस कर रही हूं. पुलिस-प्रशासन भी साथ नहीं दे रहा. ऐसे में जबरन कुर्सी पर बैठे रहने का क्या फायदा.
अगले बरस चुनाव हुए. 1999 में. जिसका जिक्र खबर की पहली लाइन में किया है. दयाशंकर सिंह के साथ प्रशासन था. सरकार उनकी पार्टी की थी. उनके खिलाफ ताल ठोंक रहे थे सपा से ब्रह्म बख्श सिंह उर्फ गोपाल जी. तगड़ा मुकाबला. दोनों तरफ से धनबल, बाहुबल पनारे में बहते पानी सा दिखा. रिजल्ट आया, तो ब्रह्म बख्श सिंह को ज्यादा वोट मिले थे. मगर मामला सीएम के लाडले दयाशंकर का था. तो तकनीकी कारणों का हवाला देकर ब्रह्म बख्श सिंह का कैंडिडेचर खारिज कर दिया गया. हारे हुए दयाशंकर सिंह को अध्यक्ष पद की शपथ दिला दी गई. इसके खिलाफ ब्रह्म बख्श कोर्ट गए. वहां से उनके पक्ष में फैसला हुआ. मगर तब तक कार्यकाल बीत चुका था. अगले चुनाव में गोपल जी को जीत मिली. मगर उन्हें दयाशंकर सिंह से खुन्नस थी. गोपाल जी का कहना था कि दयाशंकर सिंह धोखाधड़ी से अध्यक्ष बने. और अब तो कोर्ट ने भी उनका निर्वाचन रद्द कर दिया. तो फिर यूनिवर्सिटी कैंपस में जहां-जहां उनके पत्थर लिखे हैं, जहां-जहां बोर्ड पर उनके नाम लिखे गए हैं, सब जगह से हटाए जाएं.
धर्मेंद्र प्रधान के साथ दयाशंकर सिंह
धर्मेंद्र प्रधान के साथ दयाशंकर सिंह

उधर दयाशंकर सिंह को तब तक यूपी सरकार ने लखनऊ यूनिवर्सिटी एग्जिक्यूटिव काउंसिल में नामित कर दिया था. यानी कि वह अब यूनिवर्सिटी प्रशासन का हिस्सा हो गए थे. इस नाते तमाम कार्यक्रमों में वह अपनी आमद दर्ज कराते रहे. दोनों के बीच हर बात पर टकराव होने लगा. एक बार कैंपस में लगी स्वामी विवेकानंद की मूर्ति को लेकर टकराव हुआ. वजह वही, पत्थर पर नाम लिखा होना. एक बार एड्स पर एक कॉन्फ्रेंस ही कैंसिल कर दी गई. क्योंकि स्टूडेंट यूनियन अध्यक्ष ब्रह्म बख्श को पता चला कि जिन अतिथियों को बुलाया गया है, उसमें दयाशंकर सिंह भी हैं.
दयाशंकर की सियासत की ये शुरुआत थी. सीवी में लखनऊ यूनिवर्सिटी का स्टूडेंट यूनियन अध्यक्ष लिखने के बाद वह भारतीय जनता युवा मोर्चा की राजनीति करने लगे. उसके प्रदेश अध्यक्ष के पद तक पहुंचे. 2007 में अपने गृह जनपद बलिया की सदर सीट से चुनाव लड़े. बुरी तरह हारे. 7 हजार वोट भी न पा सके. जमानत जब्त हो गई. मगर इस हार से उनकी राजनीति में रुकावट नहीं आई.
लखनऊ के संपर्कों के सहारे वह पार्टी की प्रदेश कार्यसमिति में आ गए. इसके सचिव पद तक पहुंच गए. फिर उन्होंने 2012 में मोर्चा खोला राजनाथ सिंह के खिलाफ. उन दिनों प्रदेश अध्यक्ष थे सूर्यप्रताप शाही. शाही ने कार्यकारिणी का ऐलान किया. उसमें राजनाथ सिंह के बेटे पंकज सिंह को महासचिव घोषित किया. इससे पहले पंकज सिंह और दयाशंकर सिंह, दोनों सचिव थे. पंकज के प्रमोशन से दयाशंकर खफा हो गए. या मुमकिन है कि उनके पॉलिटिकल मास्टर खफा हो गए. दयाशंकर सिंह समेत तीन सचिवों ने पद से इस्तीफा दे दिया. राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी को दखल देना पड़ा. उन्होंने पंकज के मनोनयन को सही ठहराया.
ओपी माथुर के साथ दयाशंकर सिंह
ओपी माथुर के साथ दयाशंकर सिंह

राजनाथ से अदावत की कीमत दयाशंकर को फौरन चुकानी पड़ी. पिछला चुनाव तो वह बुरी तरह हारे ही थे. इसलिए 2012 में उन्हें विधानसभा का टिकट नहीं मिला. बरस बीते. दयाशंकर सिंह ने भूल सुधार किया. तमाम चौपालों में आमद दर्ज कराई. और फिर से कुछ हैसियत पाई. पिछले दिनों यूपी में विधान परिषद के चुनाव हुए थे. उसमें उन्हें बीजेपी ने टिकट दिया. दूसरे कैंडिडेट के तौर पर. इलेक्शन रिस्की था. क्योंकि बीजेपी के पास श्योर शॉट जिताने के लिए एक ही कैंडिडेट भर के विधायक वोट थे. दयाशंकर सिंह के पक्ष में तमाम लोगों ने जुगत लगाई. इसमें बीएसपी से निकाले गए सांसद नेता जुगल किशोर सबसे आगे थे. फिर भी दयाशंकर सिंह चुनाव हार गए.
कुछ दिनों पहले बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्या ने पार्टी कार्यकारिणी का गठन किया. दयाशंकर सिंह को इसमें उपाध्यक्ष बनाया गया था. आज उन्होंने एएनआई के माइक पर मायावती के खिलाफ घटिया बयान दिया. मन में सोच रहे होंगे कि बीएसपी नेता की धज्जियां उड़ा रहे हैं. शाबाशी मिलेगी. मिली लताड़. और पद भी छीन लिया गया है.
और कांड तो दयाशंकर सिंह ने ऐसा कर दिया है कि बीजेपी अब उन्हें दोबारा लेने से पहले दस बार सोचेगी. उन्हें पार्टी के मंच से भी दूर ही रखा जाएगा. क्योंकि नरेंद्र मोदी बार-बार दलितों की बात कर रहे हैं. कांग्रेस हर उपलब्ध मौके पर उन्हें घेर रही है. और दयाशंकर सिंह ने कांग्रेस को और उससे भी ज्यादा मायावती को भैरंट मौका दे दिया है.


इन्हें भी पढ़ें:

डियर दयाशंकर, मायावती मर्द होतीं तब भी 'वेश्या' कहते?

वो शाम, जिसने 21 साल की मायावती की जिंदगी बदल दी

मोदी को नुकसान पहुंचाने के लिए UP में 4 काम कर रहे हैं नीतीश कुमार

कहानी राजनाथ सिंह की, जिनके PM बनने की भविष्यवाणी अभी मरी नहीं

यूपी चुनाव जीतने के लिए सभी पार्टियों को करने होंगे ये 5-5 काम

Comments
thumbnail

Advertisement

Advertisement