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पाकिस्तान में बिक रहीं सरकारी कंपनियां, कर्ज पर चढ़ रहा कर्ज, क्या है इस बदहाली की वजह?

Pakistan की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है. साल की शुरुआत में कार्यवाहक प्रधानमत्री Anwaar-ul-Haq Kakar ने चीन से दो बिलियन अमेरिकी डॉलर क़र्ज़ मांगे था. अब ख़बर है कि पाकिस्तान सरकार लगभग सभी state-owned firms बेच रही है.

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पाकिस्तानी रुपये की तस्वीर. (फोटो: सोशल मीडिया)
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सोम शेखर
16 मई 2024 (Published: 13:48 IST)
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बीते साल पाकिस्तान के पेशावर का एक वीडियो सोशल मीडिया पर ख़ूब वायरल हुआ था. आवाम आटे से भरा ट्रक लूटने के लिए लड़ रही है… जिसके हाथ जितने पैकेट आए, उसने रख लिया. मगर बात सिर्फ़ वायरल वीडियो तक सीमित नहीं है. पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है. साल की शुरुआत में कार्यवाहक प्रधानमत्री अनवारुल हक़ ककर ने चीन से दो बिलियन अमेरिकी डॉलर (क़रीब 16,700 करोड़ रुपये) का क़र्ज़ मांगा था, और इस पैसे से चीन के ही क़र्ज़ का ब्याज चुकाना था. अब ख़बर है कि पाकिस्तान सरकार लगभग सभी सरकारी उपक्रमों (State-owned firms) को बेच रही है.

पाकिस्तान में लाले क्यों?

दरअसल, इस वक़्त पाकिस्तान गंभीर आर्थिक संकट में है. खाने के सामान से लेकर रोज़मर्रा की चीज़ों तक, सब महंगा हो गया है. सरकार के पास केवल 14 बिलियन अमेरिकी डॉलर (1,16,000 करोड़ रुपये) का विदेशी मुद्रा भंडार बचा है. IMF से जो तीन बिलियन US डॉलर का राहत पैकेज मिला था, उसकी आख़िरी क़िस्त भी पिछले महीने आ चुकी है. अब देश चलाना है, तो सरकार को पैसे की ज़रूरत है. फिर इंतेज़ाम कहां से हो?

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प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने इसका उपाय निकाला है. उपाय कि सरकारी कंपनियों को बेचा जाए. इसे नाम दिया, ‘निजीकरण’. हालांकि, कुछ कंपनियों को छोड़ दिया गया है. ये कहकर कि वो ‘ज़रूरी’ हैं.

मगर मुल्क यहां तक आया कैसे?

विशेषज्ञों की मानें तो समस्या जटिल है, और एक समस्या नहीं है. उच्च बेरोज़गारी, महंगाई, विदेशी निवेश की कमी, विदेशी मुद्रा की कमी, इंडस्ट्रियों का अभाव, अच्छी शिक्षा और अस्पतालों की कमी. इन सभी कारकों को जोड़कर स्थिति यहां तक पहुंची है.

  • बेरोज़गारी - वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक के अनुसार, पाकिस्तान में बेरोजगारी की दर 8% के करीब है. 
  • महंगाई - IMF के अनुसार, वित्त वर्ष 2023 में महंगाई दर 29.6% थी, जो पिछले साल के मई महीने में अधिकतम 37.97% तक पहुंची थी. हालांकि, इस साल के मार्च में ये 20.7% पर आ गई है. मगर फिर भी आलू, गेहूं, चावल जैसी जरूरी वस्तुओं के दाम आसमान पर हैं. रमज़ान के महीने में जनता ने प्याज़ 300 रुपये/किलो, टमाटर 200 रुपये/किलो, लहसुन 600 रुपये/किलो और दूध 210 रुपये/किलो ख़रीदा है.
  • बढ़ती उधारी - स्टेट बैंक ऑफ़ पाकिस्तान के मुताबिक़, दिसंबर 2023 में कुल बाह्य उधारी 131.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर है. Dawn की खबर की कहें, तो 2023 में पाकिस्तान सरकार पर कुल उधारी 271.2 बिलियन डॉलर थी. डेटा का अंतर इन फ़ैक्टर्स पर निर्भर करता है कि किन चीज़ों को गिना जाता है. मगर विशेषज्ञ भी यही मानते हैं कि पाकिस्तान का चीन का कर्ज चुकाने के लिए चीन से ही कर्ज मांगना ‘ऋण जाल’ का सबसे सटीक उदाहरण है.
  • राजनीतिक अस्थिरता - पाकिस्तान की आजादी के 76 बरस हो चुके हैं, लेकिन चुनी हुई किसी भी सरकार ने आज तक अपना कार्यकाल पूरा नहीं किया है. सेना का प्रशासन में सीधा दखल रहता है – ये बात ओपन सीक्रेट जैसी है. सेना की मर्जी के खिलाफ कोई भी सुधार नहीं कर सकते. आर्थिक भी नहीं.
  • ऊर्जा असुरक्षा - पाकिस्तान अपनी 40% से ज्यादा ऊर्जा के लिए आयात पर निर्भर है. अब रूस-यूक्रेन युद्ध हो या इजराइल-हमास वॉर, कच्चे तेल की सप्लाई रुकती है. देश की अपनी रिफाइनिंग क्षमता भी इतनी नहीं है. दुनिया की किसी भी हलचल से पाकिस्तान की ऊर्जा सप्लाई खतरे में पड़ जाती है. और, ऊर्जा की कमी माने इंडस्ट्रियों की कमी.
  • कुदरत का कहर - साल 2022 में बाढ़ आई थी. स्थानीय मीडिया रपटों के अनुसार करीब सवा तीन करोड़ लोग बुरी तरह प्रभावित हुए. 13,000 किलोमीटर लंबा रोड नेटवर्क बर्बाद हो गया. 22 लाख घर तबाह हो गए. 38 लाख हेक्टेयर फसल खराब हो गई. 12 लाख पशु मारे गए. इसने स्थिति को बद से बदतर किया. पुननिर्माण की लागत करीब 16.3 बिलियन डॉलर (करीब 1,33,000 करोड़ रुपये) होती.

ये तो हो हुए माइक्रो मुद्दे, जिनकी वजह से आज ये हाल है. मगर ये हाल यहां तक आया किन बड़ी वजहों से, लूप-होल्स से, ये समझने के लिए दी लल्लनटॉप ने बात की पाकिस्तान के आर्थिक नीति विशेषज्ञ डॉ अक़दस अफ़ज़ल से, जो अलग-अलग सरकारों को आर्थिक मामलों में सलाह देते रहे हैं. उन्होंने हमें बताया कि देश की अर्थव्यवस्था में दो मुख्य समस्याएं हैं: राजकोषीय घाटा और चालू खाता घाटा. उन्होंने बताया,

राजकोषीय घाटा बढ़ गया है क्योंकि जितनी भी सरकारें आईं और रहीं, उन्होंने टैक्स बेस नहीं बढ़ाया. मतलब तमाम संपत्ति, आय और आर्थिक गतिविधियां, जिन पर टैक्स लगाया जा सके बहुत नहीं बढ़ा. संभवतः पाकिस्तान की लोकतांत्रिक संस्थाओं की कमज़ोरी की वजह से ऐसा है. कमज़ोर जनादेश वाली सरकार बहुत महत्वाकांक्षी नहीं होती, इसीलिए किसी ने ख़तरा नहीं मोल लिया.

दूसरा, पाकिस्तान का चालू खाता घाटा (करेंट अकाउंट डेफ़सिट) एक बड़ी समस्या रही है, क्योंकि पाकिस्तान मुख्यतः निर्यात बढ़ाने में असमर्थ रहा है. और इसका कारण क्या? अलग-अलग सरकारों ने ह्यूमन कैपिटल में निवेश नहीं किया है. ह्यूमन कैपिटल (शिक्षा और स्वास्थ्य) की कमी के चलते देश वैसे सामान बना नहीं पा रहा, जो निर्यात बढ़ाने के लिए चाहिए.

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रोज़मर्रा के सामान की क़िल्लत तो है ही. जीवन स्तर भी काफ़ी गिर गया है. 2023 के ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स (HDI) रैंकिंग में पाकिस्तान 164वे नंबर पर था. क़रीब चार करोड़ लोग अंधेरे में रहते हैं. उनके यहां बिजली तक नहीं पहुंचती. 

पाकिस्तान की सरकार को चाहिए को वो मैक्रो मुद्दों पर दीर्घकालिक प्लैन बनाए और माइक्रो मुद्दों के लिए तत्काल उपाय करे.

(इस स्टोरी के लिए रिसर्च हमारे साथ इंटर्नशिप कर रहे नवनीत ने की है)

वीडियो: दुनियादारी: PoK में पाकिस्तान के ख़िलाफ़ हिंसक प्रोटेस्ट, भारत की चेतावनी काम कर गई?

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