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विदेशों में भारतीय मसाले हो रहे बैन, भारत में मसालों में कीटनाशकों को लेकर क्या नियम हैं?

हाल ही में 8 अप्रैल को FSSAI ने एक आदेश जारी कर मसालों में अपंजीकृत कीटनाशकों की MRL बढ़ाने की बात कही थी. इससे पहले यह लिमिट 0.01 mg/kg थी जिसे बढ़ाकर 0.1 mg/kg कर दिया गया था.

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MDH everest
हाल ही में मसालों में कीटनाशकों को लेकर मानकों में बदलाव किया गया था.
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राजविक्रम
24 अप्रैल 2024 (Updated: 24 अप्रैल 2024, 14:09 IST)
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हांगकांग सरकार के सेंटर फॉर फूड सेफ्टी (CFS Hong Kong) ने कुछ भारतीय मसालोंं (Everest MDH row) की बिक्री रोक दी है. कहा गया है कि इन मसालोंं में कीटनाशक एथिलीन ऑक्साइड (ethylene oxide) पाया गया है. इस केमिकल से कैंसर के खतरे की बात भी कही गई है. जिसके बाद से मसालोंं की चर्चा खबरों में हो रही है. चर्चा के साथ ही मसालोंं की सुरक्षा पर भी सवाल उठ रहे हैं. FSSAI के भारत में मसालोंं की जांच करने की बात भी कही जा रही है. इस सब के बीच सवाल ये कि मसालोंं में कीटनाशकों को लेकर भारत में क्या नियम हैं. और हांगकांग की सरकार ने किस हवाले से ये कदम उठाए हैं?

हाल ही में मसालोंं में कीटनाशकों के मानकों को लेकर FSSAI ने भी कुछ बदलाव किए थे. जिसे लेकर एक्सपर्ट्स ने चिंता जाहिर की है. ये भी कहा गया कि इससे भारतीय मसालोंं के एक्सपोर्ट पर भी असर पड़ सकता है. इस पर आगे बात करते हैं पहले मामला समझते हैं. 

क्या था पूरा मामला?  

हांगकांग सरकार के सेंटर फॉर फूड सेफ्टी (CSF) ने Everest, MDH जैसे कुछ भारतीय ब्रांड के मसालोंं के सैंपल कलेक्ट किए थे. जो एक रूटीन सैंपल चेकिंग थी. 5 अप्रैल को जिसके टेस्ट रिजल्ट में एथिलीन ऑक्साइड (ethylene oxide) कीटनाशक मिलने की बात कही गई. 

 Source: Centre for Food Safety Hong Kong

ये भी कहा गया कि इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर ने इसे ग्रुप-1 कार्सिनोजेन में रखा है. बता दें कार्सिनोजेन ऐसे पदार्थ होते हैं, जिनसे कैंसर का खतरा हो सकता है. CFS ने ये भी कहा कि खाने में कीटनाशक रेगुलेशन के नियमों के मुताबिक, सेहत के लिए खतरनाक कीटनाशक युक्त खाने की चीजों की बिक्री की इजाजत नहीं है.

जिसके बाद CFS ने दुकानदारों को मसालोंं की बिक्री बंद करने के लिए सूचित किया. साथ ही मामले से जुड़े प्रोडक्ट्स को दुकानों से हटाने के लिए भी कहा गया. 
हांगकांग में CFS ने ये भी निर्देश दिए कि मसाले आयात करने वाले इन प्रोडक्ट्स को बाजार से वापस ले लें. इसके बाद सिंगापुर के बाजर से भी Everest फिश करी मसालोंं को वापस लेने की बात कही गई. 
 ये भी पढ़ें: हांगकांग ने Everest, MDH मसालोंं को बैन किया था, अब भारत में ये एक्शन होने जा रहा है

 Source: Centre for Food Safety Hong Kong

इस सब के बीच में अब भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण FSSAI के भारत से मसालोंं के सैंपल लिए जाने की बात भी कही जा रही है. बता दें भारतीय खाद्य सुरक्षा रेगुलेटर भी खाने की चीजों में एथिलीन ऑक्साइड के अवशेषों की इजाजत नहीं देते. पर ये एथिलीन ऑक्साइड है क्या?

एग्रो टेक फूड्स लिमिटेड, हैदराबाद के रिसर्च एंड डेवलपमेंट एग्जीक्यूटिव एबिन मैथ्यू ने हमें एथिलीन ऑक्साइड (ethylene oxide) के बारे में बताया. वो बताते हैं कि ये एक तरह का कीटनाशक या जीवाणुनाशक है. जिसका इस्तेमाल धुंआ करके मसालोंें वगैरह को प्रिजर्व करने के लिए किया जाता है. ताकि मसाले वगैहर लंबे समय तक चलें. इसका इस्तेमाल अक्सर फार्म वगैरह में किया जाता है. 

इसी के कुछ अवशेष मसालोंं में रह सकते हैं. बताया जा रहा है कि ये भारत में पंजीकृत कीटनाशक नहीं है. पंजीकृत कीटनाशक ऐसे कीटनाशक होते हैं, जो केंद्रीय कीटनाशक बोर्ड और पंजीकरण समिति (CIB&RC) के अंतर्गत दर्ज होते हैं. और जिनके कीटनाशक के तौर पर इस्तेमाल करने की इजाजत होती है. खाने पीने की चीजों में इनके अवशेषों के मानक तय होते हैं.

हाल ही में FSSAI ने किए थे कुछ बदलाव

खाने पीने की किसी चीजों में केमिकल वगैरह के अवशेषों की एक सीमा FSSAI ने तय कर रखी है. जिसे अधिकतम अवशेष स्तर या MRL कहते हैं. ये मसालोंं में कीटनाशक वगैरह के बचे अवशेषों का अधिकतम स्तर होता है. जिसकी इजाजत होती है. 

हाल ही में 8 अप्रैल को FSSAI ने एक आदेश जारी कर मसालोंं में कीटनाशकों की MRL बढ़ाने की बात कही थी. जिसमें कहा गया था कि जो कीटनाशक CIB&RC के अंतर्गत पंजीकृत हैं, उनके मानक तय हैं. उनकी अलग-अलग कीटनाशक के मुताबिक अधिकतम सीमा है. लेकन जिन कीटनाशकों के लिए MLR तय नहीं हैं, उनके लिए नया MLR 0.1 mg/kg तय किया गया. इसे लेकर एक्सपर्ट्स ने FSSAI को एक पत्र भी लिखा था. 

 Source: Fssai
इसपर एक्सपर्ट्स ने जताई थी चिंता

इस पर पेस्टीसाइड एक्शन नेटवर्क (PAN) ऑफ, इंडिया ने FSSAI को एक पत्र भी लिखा. जिसमें कहा गया कि ये चौंकाने वाला फैसला है. इसके पीछे के तर्क को निराधार भी बताया. पत्र में सार्वजनिक नीति विशेषज्ञ प्रो. नरसिम्हा रेड्डी ने इस आदेश को अवैज्ञानिक करार दिया. ये भी बताया कि कीटनाशकों के लिए पहले यह लिमिट 0.01 mg/kg थी, जिसे 10 गुना बढ़ाकर 0.1mg/kg कर दिया गया. 

उन्होंने ये भी कहा कि सेंट्रल इंसेक्टिसाइड बोर्ड एंड रजिस्ट्रेशन (CIBRC) फील्ड ट्रायल नहीं करती है. जिनका हवाला देकर ये लिमिट बढ़ाई गई है. फील्ड ट्रायल यानी जमीनी स्तर पर जांच.


इस पत्र में ये भी कहा गया कि RTI से मिली जानकारी के मुताबिक, अवशेषों वाले सैंपल मिलने का प्रतिशत बढ़ा है. 2018-19 में ये सैंपल 22.6% थे, वहीं 2022-13  में ये 35.9% हो गए. कहा गया कि इन तथ्यों से मालूम पड़ता है कि भारत में कृषि उत्पादों में कीटनाशकों के अवशेष काफी ज्यादा हैं, जो काफी चिंताजनक है. इस सब के बीच एक सवाल ये कि भारत के इतर दूसरे देशों में इस बारे में नियम क्या कहते हैं?

कई देश रखते हैं 'जीरो टॉलरेंस'

कीटनाशकों को लेकर कई देशों में अलग-अलग नियम हैं. आमतौर पर इस्तेमाल किए जाने वाले कीटनाशकों के MRLs तय होते हैं. लेकिन जो कीटनाशक आमतौर पर इस्तेमाल या रेगुलेट नहीं होते, उनके लिए अलग नियम हैं. CFS के मुताबिक सामान्यत: जिन कीटनाशकों के MRLs तय नहीं हैं, उनको रेगुलेट करने के कई तरीके हो सकते हैं.

जैसे ‘जीरो टॉलरेंस’, जिसके मुताबिक ऐसे कीटनाशकों की कितनी भी मात्रा गैरकानूनी मानी जाती है. अमेरिका, सिंगापुर, आस्ट्रेलिया जैसे देशों में ये मानक हैं.

दूसरा है तय मानक, इसमें अनिर्धारित MRL वाले कीटनाशकों के लिए अधिकत सीमा तय कर दी जाती है. जैसे ऐसे कीटनाशकों के लिए, यूरोपियन यूनिय और जापान में 0.01mg/kg की तय सीमा है.

ऐसे ही हर देश के मानक अलग हो सकते हैं. नीचे लगी फोटे से बिना तय MRL वाले कीटनाशकों के लिए अलग-अलग देशों की पॉलिसी देखी जा सकती है.

 Source: Centre for Food Safety Hong Kong
क्या है MRL का भारतीय प्रोडक्ट्स पर असर?

FSSAI के MRL लिमिट को बढ़ाने के बारे में पेस्टीसाइड एक्शन नेटवर्क (PAN), इंडिया के CEO दिलीप कुमार ने हमें बताया कि अपंजीकृत कीटनाशकों के लिए MRL की सीमा बढ़ाए जाने से कई नुकसान हो सकते हैं. मसलन भारतीय प्रोडक्ट्स को विदेशी बाजारों में नुकसान उठाना पड़ सकता है. क्योंकि उनके मानक हमसे अलग या कड़े हो सकते हैं.

उन्होंने आगे बताया,

भारतीय किसानों को भी इससे नुकसान हो सकता है. इसके अलावा दूसरे देश के प्रोडक्ट्स जो बाकी जगह के मानकों में खरे नहीं उतरते, उन्हें भारत में बेचने के लिए भेजा जा सकता है. इससे फूड इंडस्ट्री को भी फर्क पड़ सकता है. साथ ही उपभोक्ताओं को खाने में अधिक टाक्सिक मिलना एक और मुद्दा है.


उन्होंने ये भी कहा कि मानकों को यूरोपीय मानकों के आधार पर रखा जाना चाहिए. ताकि उपभोगताओं को भी बेहतर प्रोडक्ट्स मिल सकें. 

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