क्रिकेट और फुटबॉल से जुड़े हैं DRDO की सबसे हल्की बुलेट प्रूफ जैकेट के तार, हैरान कर देगा गोली रोकने का विज्ञान
हवा में ध्वनि की रफ्तार होती है 1,235 किलोमीटर प्रति घंटा. यानी आवाज एक घंटे में एक हजार किलोमीटर से भी ज्यादा दूरी तय कर सकती है. वहीं किसी दमदार राइफल से निकली गोली की रफ्तार इसके दोगुना से भी ज्यादा हो सकती है.
23 अप्रैल, 2024 को DRDO ने देश की सबसे हल्की बुलेट प्रूफ जैकेट (light weight bullet proof jacket) बनाए जाने की जानकारी दी. बताया कि रक्षा सामग्री एवं भण्डार अनुसंधान तथा विकास स्थापना (DMSRE) कानपुर ने बनाई है. जो ‘स्नाइपर’ राइफल की 6 गोलियों को रोक सकती है. कहा जा रहा है कि इससे BIS के लेवल-6 जितनी सुरक्षा मिल सकेगी. बता दें लेवल-6 अधिकतम सुरक्षा का मानक है. इससे स्नाइपर की 7.62X54mmR गोलियों को रोका जा सकता है. ये अपनी तरह की अनोखी जैकेट है, जिसमें खास मोनोलिथिक सिरेमिक प्लेट का इस्तेमाल हुआ है. जिसकी वजह से ये इन गोलियों को रोक सकती है. पर ये गोली कैसे रोक लेती हैं, भला ये बुलेट प्रूफ जैकेट काम कैसे करती हैं? जानते हैं.
DRDO की बनाई इस जैकेट की खास बात है, कम वजन के साथ सुरक्षा. किसी बॉडी आर्मर या बुलेट प्रूफ जैकेट में उसके वजन का खास ख्याल रखा जाता है. ताकि सुरक्षा के साथ उसे पहनने में सुविधा भी रहे.
आपने फिल्मों में पुराने जमाने के लोगों को स्टील वगैरह धातु के बॉडी आर्मर या कवच पहने देखा होगा. लेकिन 16वीं - 17वीं शताब्दी में धातु के बॉडी आर्मर चलन से कम हो गए. आगे चलकर इनका इस्तेमाल भी बंद हो गया. क्योंकि ये जितने भारी होते थे, उस हिसाब से सुरक्षा नहीं दे पाते थे. कुल मिला कर पहनने में प्रैक्टिकल नहीं थे.
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बंदूकें लगातार बेहतर हो रही थीं, एक समय में गोलियां और भी काफी घातक हो गईं. अब उन्हें रोकने के लिए ज्यादा वजनी धातु के आर्मर की जरूरत पड़ने लगी. मतलब इंसान गोली के बजाय आर्मर के वजन से ही दब जाए.
इसके अलावा काम सिर्फ किसी गोली को रोकने का नहीं है. एक काम गोली के धक्के या शॉक से शरीर के अंगों को बचाने का भी है. धातु के आर्मर से गोली भले ही शरीर के पार हो न हो, लेकिन गोली के धक्के से हड्डी तक टूट सकती है. जानलेवा अंदरूनी चोट भी पहुंच सकती हैं. ऐसे में पिक्चर में आते हैं बुलेट प्रूफ जैकेट, जो हल्के भी थे साथ ही गोलियों के शॉक से शरीर के अंगों को बचा भी सकते थे.
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कैसे बचाते हैं गोली के शॉक सेहवा में ध्वनि की रफ्तार होती है 1,235 किलोमीटर प्रति घंटा. यानी आवाज एक घंटे में एक हजार किलोमीटर से भी ज्यादा दूरी तय कर सकती है. वहीं किसी दमदार राइफल से निकली गोली की रफ्तार इससे दोगुना से भी ज्यादा हो सकती है. इस रफ्तार के साथ आती है ऊर्जा, गतिज ऊर्जा जिसकी वजह से ये धातु तक को भेद सकती है.
सारा खेल है ऊर्जा का. आपने विज्ञान की किताबों में पढ़ा होगा. ऊर्जा को न तो बनाया जा सकता है, न ही नष्ट किया जा सकता है. इसका सिर्फ रूप बदला जा सकता है. यानि एक तरह की ऊर्जा को दूसरे तरह की ऊर्जा में बदलना. इसे कहते हैं ऊर्जा संरक्षण का नियम.
ऐसे ही गोली की गतिज ऊर्जा को दूसरी ऊर्जा में बदलकर कम करने का काम करती है, बुलेट प्रूफ जैकेट. ये हो पाता है क्रिकेट में कैच पकड़ने और फुटबॉल के गोल पोस्ट नेट से गेंद रोकने वाले विज्ञान से.
फुटबॉल के नेट जैसा है बुलेट प्रूफ जैकेटजब फुटबॉल को खिलाड़ी गोलपोस्ट में मारता है और वो नेट से टकराती है. तब नेट में लहरों सी बनती देखी जा सकती है. दरअसल इसके पीछे की वजह है, फुटबॉल की गतिज ऊर्जा. गतिज ऊर्जा के नाम से ही साफ है, गति की वजह से मिलने वाली ऊर्जा. इसी गतिज ऊर्जा को सोखने या एब्जॉर्ब करने का काम गोल पोस्ट का नेट करता है. जिससे नेट में ऊर्जा बंट जाती है. अब इसी चीज का थोड़ा काम आता है बुलेट प्रूफ जैकेट में, समझते हैं.
मोटे तौर पर बुलट प्रूफ जैकेट्स या बॉडी आर्मर दो तरह की होती हैं. एक सॉफ्ट आर्मर और दूसरी हार्ड आर्मर. सॉफ्ट आर्मर में हल्की और लचीले खास कपड़े की कई परतें होती है. ये पिस्तौल वगैरह की कम घातक गोलियों को रोक सकते हैं.
वहीं हार्ड आर्मर में इस परत के साथ एक ठोस परत भी होती है. जिसमें बोरॉन कार्बाइड, सिलिकॉन कार्बाइड, स्टील या टाइटेनियम वगैरह हो सकते हैं. मोनोलिथिक सिरेमिक प्लेट भी इसी का हिस्सा है. जो ज्यादा घातक गोलियों से सुरक्षा दे सकते हैं. सुविधा के लिए हम हार्ड आर्मर के जरिए गोली रोकने के मामले को समझते हैं.
हार्ड बॉडी आर्मर में मोटा-माटी तीन मेन हिस्से हैं. एक है सिरेमिक, दूसरा है कंपोजिट लेयर और तीसरा है रियर प्लेट. नाम हो गए अब काम समझते हैं.
जैकेट में मौजूद हार्ड परत का काम गोली की रफ्तार को कम करना. और इसकी ऊर्जा को एब्जॉर्ब करने का होता है. ये ऊर्जा तीन तरीकों से फैलकर कम होती है.
पहला है ‘ब्रिटल फेलियर’. माने जैसे कोई चीनी मिट्टी की प्लेट टूटती है. ऐसे ही इस परत में जब गोली लगती है, तो ये उसके शॉक से टूटकर उसकी ऊर्जा को अपने में फैलाकर, उसे कम करती है.
दूसरा है ‘डिलेमिनेशन’. जैसे फोन में पहले लेमिनेशन करवाया करते थे ना. वैसे ही ये एक के ऊपर एक कई परतें होती हैं, जैसे कोई प्लाईबोर्ड कई परतों में होता है. ऊर्जा को कम करने के लिए ये कई परतें फैल कर शॉक एब्जॉर्ब करती हैं, इसे ही टेक्निकल भाषा में डिलेमिनेशन कहते हैं.
तीसरा है ‘प्लास्टिक डिफॉर्मेशन’, ये नहाने की बाल्टी वाला प्लास्टिक नहीं है. यहां प्लास्टिक का मतलब है आकार में बदलाव, जैसे किसी धातु की परत में हथौड़ा मारने पर उसका आकार बदल जाता है. वैसे ही प्लास्टिक डिफॉर्मेर्शन में धातु वगैरह की परत का गोली की ऊर्जा से अपना आकार बदलती हैं, और उसकी ऊर्जा और रफ्तार को कम करती हैं.
अब क्रिकेट की बारीआपने देखा होगा कि क्रिकेट में कैच लेेते वक्त खिलाड़ी अपना हाथ पीछे ले जाते हैं. ताकि गेंद की ऊर्जा को कम करके आसानी से रोक सकें. ऐसा ही कुछ बुलेट प्रूफ जैकेट की इस दूसरी लेयर से, जिसे कंपोजिट लेयर भी कहते हैं. ये बनी होती है एकदम कसकर बुने गए फाइबर से, जो लैब वगैरह में खासतौर पर बनाए जाते हैं.
जैसे शुरुआती दिनों में केवलार नाम के एक मटेरियल का इस्तेमाल इस लेयर में किया गया. ये किसी आम कपड़े से काफी मजबूत होता था. फिर पॉलीइथाइलीन फाइबर का इस्तेमाल इसमें किया जाने लगा. जो केवलार से ज्यादा मजबूत माना जाता है.
खैर मटेरियल कोई भी हो इसका मेन काम है गोली को ‘कैच’ करने का. मतलब क्रिकेट की गेंद को कैच करने जैसा कुछ मामला. दरअसल इसकी कई परतें एक के बाद एक तहकर, बुलेट प्रूफ जैकेट में लगाई जाती हैं. ताकि ये हार्ड प्लेट से आने के बाद गोली की बची हुई ऊर्जा को, फुटबॉल के नेट की तरह अपने में फैलाकर कम कर सके.
इस परत का काम अचनाक कम हुई गोली की रफ्तार के शॉक से शरीर के अंगों को बचाना भी है. इसके बाद भी गोली में कुछ ऊर्जा बची रहे तो रियर प्लेट काम आती है. जो एल्युमिनियम वगैरह की बनी होती है. ऊपर जो प्लास्टिक डिफॉर्मेशन वाला मामला हमने आपको बताया था. ये प्लेट वैसे ही गोली की ऊर्जा को कम करती है.
इसके अलावा भी कई तरह की बुलेट प्रूफ जैकेट हो सकती हैं. जिनमें अलग-अलग मटेरियल का इस्तेमाल किया गया हो. लेकिन सब काम कमोवेश ऐसे ही करती हैं.
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