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मुख़्तार अंसारी: सुनहरा चश्मा पहनने वाला वो 'नेता' जो मीडिया के सामने पिस्टल नचाता था

गैंगस्टर और पूर्व विधायक मुख्तार अंसारी की मौत हो गई है. 28 मार्च की शाम खबर आई थी कि उल्टी की शिकायत के बाद बेहोशी की हालत में उन्हें बांदा जेल से अस्पताल ले जाया गया. वहां 9 डॉक्टरों की टीम ने उन्हें बचाने की कोशिश की, लेकिन कामयाबी नहीं मिली.

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मुख़्तार अंसारी.
30 जून 2021 (Updated: 28 मार्च 2024, 23:18 IST)
Updated: 28 मार्च 2024 23:18 IST
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गैंगस्टर और पूर्व विधायक मुख्तार अंसारी की मौत हो गई है. 28 मार्च की शाम खबर आई थी कि उल्टी की शिकायत के बाद बेहोशी की हालत में उसे बांदा जेल से अस्पताल ले जाया गया. वहां 9 डॉक्टरों की टीम ने मुख्तार को बचाने की कोशिश की, लेकिन कामयाबी नहीं मिली. प्रशासन की तरफ से जारी अपडेट के मुताबिक कार्डियक अरेस्ट की वजह से मुख्तार अंसारी की मौत हुई है. इस बीच उत्तर प्रदेश पुलिस ने एहतियातन कई इलाकों में पुलिस की तैनाती कर दी है.

हमने मुख्तार अंसारी की जिंदगी पर एक विस्तृत स्टोरी की थी. पाठक इसे एक बार फिर पढ़ सकते हैं.

मुख्तार अंसारी की कहानी

तारीख़ 25 नवंबर 2005. यूपी के ग़ाज़ीपुर का गोडउर गांव. थोड़ी बारिश हो चुकी थी. गुलाबी सर्दी थी. मोहम्मदाबाद सीट से बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय अपने घर से निकले. पास के ही सियारी गांव में जाना था. एक क्रिकेट टूर्नामेंट था, उसके उद्घाटन के लिए. लिहाज़ा कृष्णानंद राय ने बग़ल के गांव में जाने के लिए अपनी बुलेट प्रूफ़ गाड़ी नहीं ली. सादी गाड़ी और क़ाफ़िले के साथ चले गए. टूर्नामेंट का उद्घाटन किया. फिर वहां से एक दूसरे गांव के लिए रवाना हो गए. कुछ दूर आगे बढ़े होंगे कि रास्ते में एक सिल्वर ग्रे कलर की एसयूवी सामने से आकर खड़ी हो गयी. रास्ताबंद. क़रीब 7-8 लोग एसयूवी में से उतरे. उनके हाथ में हथियार थे. औने-पौने कट्टे-पिस्टल नहीं, बल्कि एके-47. पूर्वांचल का सबसे बड़ा हत्याकांड होने जा रहा था. एसयूवी से उतरे लोगों ने विधायक कृष्णानंद राय की गाड़ी पर फ़ायर झोंक दिया. ख़बरें बताती हैं कि इस घटना में 500 राउंड से ज़्यादा गोलियां चलीं थीं. बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय, गनर निर्भय उपाध्याय, ड्राइवर मुन्ना, रमेश राय, श्यामशंकर राय, अखिलेश राय और शेषनाथ सिंह की मौत हो गई थी. पोस्ट्मॉर्टम में पता चला कि इन सात लोगों के शवों से कुल 67 गोलियां बरामद की गयी थीं.

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कृष्णानंद राय.

मारे गए विधायक कृष्णानंद राय के भाई रामनारायण राय दूसरी गाड़ी में बैठे हुए थे. बच गए. ख़बरों के मुताबिक़, रामनारायण राय ने कहा था कि कृष्णानंद राय और उनके साथियों पर गोली चला रहे लोग कह रहे थे, ‘मारो इनको, इन लोगों ने भाई को बहुत परेशान कर रखा है.’

किस भाई की बात हो रही थी? पूर्वांचल को समझने वाले कहते हैं कि कृष्णानंद राय की अदावत पूर्वांचल के एक ही भाई से थी. नाम मुख़्तार अंसारी. 

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 मुख़्तार अंसारी.

मुख़्तार अंसारी और उनका परिवार पूर्वांचल की राजनीति में एक अहम हिस्सा रखता है. कृष्णानंद राय हत्याकांड में मुख़्तार और उनके बड़े भाई, बसपा नेता और ग़ाज़ीपुर से सांसद अफ़जाल अंसारी पर सीधे आरोप लगे. कहते हैं कि दोनों भाइयों के इशारे पर डॉन मुन्ना बजरंगी ने इस हत्याकांड को अंजाम दिया था. घटना के बाद FIR दर्ज हुई. लेकिन जांच अटकी रही. जिले के SP जांच करने से क़तरा रहे थे. ख़बरें चलीं कि भाजपा नेता बार-बार CBI जांच की मांग कर रहे थे और CBI भी इसमें नहीं उतरना चाह रही थी. कृष्णानंद राय की पत्नी ने एक और FIR दर्ज करवायी, और फिर मामले की जांच शुरू हुई साल 2006 में. लेकिन इसी साल इस मामले के इकलौते चश्मदीद गवाह शशिकांत राय की रहस्यमयी परिस्थितियों में मौत हो गयी. शशिकांत राय ने मुख़्तार और बजरंगी के गुर्गों को पहचान लिया था. चौराहों की चर्चा में कहा गया कि शशिकांत राय की हत्या करा दी गयी, ख़बरें चलीं कि ये आत्महत्या का मामला है. सुनवाई हुई. केस चला. सब बरी हो गए.

कृष्णानंद राय की हत्या में मुन्ना बजरंगी का भी नाम आया था, जिसकी जेल में हत्या कर दी गई.
कृष्णानंद राय की हत्या में भी मुन्ना बजरंगी का भी नाम आया था, जिसकी जेल में हत्या कर दी गई.
कॉलेज की दोस्ती से मिला गैंग में दाख़िला

कहते हैं कि मुख़्तार अंसारी का ग्राफ़ पूर्वांचल में अदावत की राजनीति से ही चढ़ा. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके मुख़्तार अहमद अंसारी के बेटे सुभानुल्लाह अंसारी के घर में साल 1963 में मुख़्तार अंसारी ने जन्म लिया. सुभानुल्लाह ख़ुद कम्युनिस्ट नेता थे. शुरुआती पढ़ाई के बाद मुख़्तार अंसारी ने कॉलेज की पढ़ाई शुरू की. और तय हो गया कि मुख़्तार अंसारी अब वर्चस्व की लड़ाई लड़ेंगे. ये वो समय था, जब केंद्र की सरकारें पूर्वांचल के विकास की ओर ज़्यादा ध्यान दे रही थीं. विकास योजनाएं प्रकाश में आ रही थीं. और इन विकास योजनाओं को अमली जामा पहनाने के लिए वही काम हो रहा था, जिसके आधार पर यूपी के शक्ति केंद्र संचालित होते हैं. ठेकेदारी. रेलवे का ठेका हो, शराब के ठेके हों, सड़क निर्माण के ठेके हों, सबमें उसी ठेकेदार की चलती थी, जिसके पास ताकत होती थी. और कहते हैं कि इस समय ठेकेदारी के कल्चर में पूर्वांचल का ठाकुर-भूमिहार खेमा ज़्यादा सक्रिय था. वही खेमा, जिसके प्रमुख नेताओं में कृष्णानंद राय गिने जाते थे.

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बृजेश सिंह.

और इस वर्चस्ववादी ठेकेदार खेमे का जो चेहरा मुखर होकर सामने आ रहा था, वो था बृजेश सिंह का. उनकी कहानी फिर कभी. 

मुख़्तार भी ठेके की राह देख रहे थे. इसलिए उतर गए फ़ील्ड में. अपने कॉलेज के दोस्त साधू सिंह के साथ मिलकर उन्होंने साथ पकड़ा मकनु सिंह गैंग का. मकनु सिंह गैंग की अदावत थी, साहिब सिंह गैंग से. इस गैंग के ख़ास सिपाहियों में शामिल थे बृजेश सिंह. कहते हैं कि इन दोनों गैंग में बहुत ख़ास दुश्मनी नहीं थी, लेकिन ज़मीन के एक टुकड़े को लेकर लड़ाई हुई, और दोनों गैंग में फिर ठनाठनी शुरू हो गयी. 

बृजेश सिंह ने कुछ दिनों बाद साहिब सिंह गैंग का साथ छोड़ दिया. पूर्वांचल के शब्दों में कहें तो जगलिंग करने लगा. ख़ुद काम ढूंढ़ना, ठेकों का चुनाव करना और पूरा ज़ोर लगाकर अपने साथ के लोगों को भी काम दिलवाना, बृजेश का ऐसे ही चल रहा था. इधर मुख़्तार का भी ग्राफ़ चढ़ने लगा था. 1988 में ही अपराध की दुनिया में मुख़्तार का नाम आ गया था. मंडी परिषद की ठेकेदारी को लेकर ठेकेदार सच्चिदानंद राय की हत्या हुई. नाम लिया गया मुख़्तार का. इस समय बृजेश सिंह की क़रीबी थी गाजीपुर के मुडियार गांव में रहने वाले त्रिभुवन सिंह से. बताया जाता है कि त्रिभुवन के राजनीतिक और आपराधिक संपर्क अच्छे थे. दोनों साथ हो गए.

इधर मकनु सिंह गैंग भी ऐक्टिव था, जिसके साथ मुख़्तार काम करते थे. वाराणसी की पुलिस लाइन में कॉन्स्टेबल के पद पर तैनात त्रिभुवन सिंह के भाई राजेन्द्र सिंह की हत्या कर दी गयी. मुक़दमा दर्ज हुआ मकनु सिंह गैंग के दो ख़ास लोगों पर - साधू सिंह और मुख़्तार अंसारी. दोनों कॉलेज के समय के दोस्त भी थे. इसी समय बृजेश और मुख़्तार में रार शुरू हो गई. साधू और मुख़्तार दोनों बख़्तरबंद हो गए थे. साधू जेल में था. बीवी को इधर बच्चा हुआ. साधू अपनी पत्नी और बच्चे को देखने पुलिस कस्टडी में अस्पताल आया. पुलिस की वर्दी में एक आदमी ने घुसपैठ कर दी और साधू को अस्पताल में मार गिराया. कहा गया कि बृजेश ही वो आदमी था. इसी दिन साधू के गांव में उसके भाई और मां समेत 8 लोगों की भी हत्या कर दी गई थी.

अवधेश राय हत्याकांड

ये वो समय था, जब गैंगवार होने के बाद भी एक गैंग दूसरे गैंग से सतर्क तो रहता ही था, साथ ही बहुत कोशिश करता था कि ऐसे काम ना किए जायें, जिससे बेजा तनाव भड़के. कहा जाता है कि अदावत के बावजूद बृजेश और मुख़्तार एक दूसरे को नुक़सान पहुंचाने का काम करने से बचते थे. लेकिन सबकुछ के बावजूद इलाक़े में वर्चस्व की लड़ाई तो थी ही. कौन ज़्यादा ठेके हथियाएगा, ये बड़ा प्रश्न रहता था. कहा जाता है कि साल 1991 में मुख़्तार और बृजेश के बीच संबंधों में निर्णायक मोड़ आया. बनारस की पिंडरा सीट से विधायक रह चुके और नरेंद्र मोदी के खिलाफ़ दो लोकसभा चुनाव हार चुके अजय राय के बड़े भाई अवधेश राय की हत्या हो गयी. अवधेश बृजेश सिंह के क़रीबी माने जाते थे. और उनकी हत्या में नाम आया मुख़्तार गैंग का. तल्ख़ी बढ़ गयी. दोनों ही ओर से गैंगवार की घटनाएं सामने आने लगीं. कभी छोटी गोलीबारी की ख़बरें आतीं, जिसमें एकाध गुर्गे ढेर होते, तो कभी बड़े हमलों की, जिसमें 3-4 गुर्गे मारे जाते. 
 

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विधायक बनने के बाद मुख़्तार के वर्चस्व का गेम बहुत बदला, इतना कि बृजेश सिंह को दिक़्क़त होने लगी थी.

कहा जाता है कि साल 1991 में एक बार मुख़्तार को पुलिस ने हिरासत में लिया भी था, लेकिन दो पुलिस वालों को गोली लगी और मुख़्तार फ़रार. अब मुख़्तार को ख़ुद की शक्तियों को एक नया कलेवर देने की सनक चढ़ी. मुख़्तार ने राजनीति में एंट्री ली. साल 1996 में, मुख़्तार अंसारी के नाम के आगे विधायक लिखा गया. विधायक बन जाने के बाद मुख़्तार के पास शक्तियों का अकूत ख़ज़ाना आ गया था. कहते हैं कि इसके तुरंत बाद पुलिस भी उन पर हाथ डालने से डरती थी. ठेके वग़ैरा आसानी से मिल जा ही रहे थे, तो वही बृजेश सिंह का गैंग मुसीबत में पड़ा हुआ था. उन लोगों पर पुलिस का प्रेशर भी लाज़िम है कि ज़्यादा ही था.

रॉबिन हुड अवतार से मेक ओवर की कोशिश

इधर मुख़्तार का मेकओवर पीरियड चल रहा था. रॉबिन हुड की छवि बनायी जा रही थी. किसी का कोई सरकारी काम अटकता, किसी को घर में पड़ी शादी के लिए आर्थिक मदद चाहिए होती, नौकरी का लफड़ा होता, तो मुख़्तार के दरवाज़े पहुंचा जा सकता था. मुख़्तार अंसारी की ओर से मदद मिलती थी. और 19वीं सदी का अवसान ऐसा समय था, जब पूर्वांचल के मुस्लिम बुनकरों के बनाए कपड़े तो लाखों में बिकते थे, लेकिन बुनकर ख़ुद मोमबत्ती-लालटेन की रोशनी और हाथ से डुलाने वाले पंखों की मदद से ज़िंदा थे. बिजली आती थी नहीं. जो इक्का-दुक्का लोग हैंडलूम के बजाय पावरलूम लगाने का सपना देखते थे, वो सपना रोज़ाना कई घंटों की बिजली कटौती में कई बार टूटता था. कहते हैं कि मुख़्तार ने इस दिशा में भी काम शुरू किया. और बहुत हद तक कई इलाक़ों में बिजली की समस्या को सुलझाने की दिशा में सार्थक प्रयास किया. रॉबिन हुड तैयार था.

पत्रकार बताते हैं कि मुख़्तार की तूती बोलने लगी थी. वो लोग इंटरव्यू लेने जाते तो सुनहरे रंग के चश्मे के फ़्रेम के साथ मुख़्तार अंसारी हाज़िर होते और कई मौक़ों पर जेब से पिस्टल निकालकर खेलना शुरू कर देते. इमेज मेकओवर का बड़ा फ़ेज़ था.

लेकिन ये वो समय भी था, जब केबल टीवी की क्रांति आ रही थी. लोग घरों में केबल कनेक्शन लेते थे. राष्ट्रीय चैनल तो आते ही थे, लोकल चैनल भी आते थे. शहरों के जो बड़े प्रतिष्ठान होते थे, वो किसी लोकल कैमरामैन को पकड़कर अपनी दुकान या शोरूम का एक भारी भरकम विज्ञापन शूट करवाते थे. लोकल चैनल पर विज्ञापन आता था और विज्ञापन आने के साथ ही उन दुकानदारों के पास एक फ़ोन आता था. टैक्स मांगने के लिए. इसको कहते थे गुंडा टैक्स या रंगदारी. जिसमें एक आपराधिक गैंग प्रोटेक्शन देने के नाम पर व्यवसायियों से पैसा मांगता था. जो शातिर व्यवसायी होते थे, वो भी शायद ही बच पाते थे.

और इस टैक्स वसूली में मुख़्तार और बृजेश गैंग का नाम ही ज़्यादा सुनाई पड़ता था. टैक्स मांगने वाले के तार किसी न किसी रूप में इन दो लोगों से जुड़े मिलते थे. 
तो मिलाजुलाकर मुख़्तार ने अपने लिए बड़ी राजनीतिक ज़मीन तैयार कर ली थी. लोगों की मदद, लोकल काम, ठेकेदारी और बड़ा रसूख़ सबकुछ था. लेकिन राजनीतिक ज़मीन की सिंचाई में उन पर एक ऐसा आरोप लगा, जिससे वो और उनके भाई हमेशा नकारते आए हैं. ध्रुवीकरण की राजनीति करने का. चूंकि उनसे लाभ पाने वालों में बड़ा हिस्सा मुस्लिमों का था, इसलिए मुख़्तार अंसारी मुस्लिमों के नेता कहे गए. इस बात को उन्होंने और उनके भाईयों ने कई बार काटने की कोशिश की, लेकिन कहा जाता है कि वो इसी तबके के वोटबैंक पर चुनाव जीतते हैं. ऐसे में मुख़्तार के बड़े भाई और सांसद अफ़जाल अंसारी कहते हैं कि बस कुछ फ़ीसद मुसलमानों की मदद से चुनाव नहीं जा सकता है, हमें दूसरे तबक़ों के वोट भी मिलते हैं. मुख़्तार पर खुली जीप में बैठकर साम्प्रदायिक दंगे भड़काने के भी आरोप लगे और केस भी दर्ज हुआ.

मुख़्तार पर बृजेश ने करवाया हमला

राजनीतिक ज़मीन पर जो हो रहा हो, मुख़्तार और बृजेश के बीच गैंगवार चल ही रही थी. छिटपुट घटनाओं के बाद आया साल 2002. मुख़्तार अंसारी पर बड़ा हमला हुआ. कहा जाता है कि ये हमला बृजेश सिंह ने भाजपा नेता कृष्णानंद राय के कहने पर करवाया था. इसी साल कृष्णानंद राय ने इसी सीट पर पांच बार के विधायक और मुख़्तार के बड़े भाई अफ़जाल अंसारी को हराया था. लोग बताते हैं कि बृजेश सिंह ने हमले के दौरान मुख़्तार को कम आंका था. मुख़्तार के तीन गुर्गे मारे गए थे. मुख़्तार घायल हुए थे तो बृजेश भी घायल हुए थे. इसी घटना में बृजेश के मारे जाने की भी ख़बर आयी थी. बनारस, ग़ाज़ीपुर, मऊ के इलाक़े में भूमिहार गुट बनाम मुख़्तार गुट के बीच की घटनाएं सामने आने लगीं. तीन साल बाद 2005 में कृष्णानंद राय की भी हत्या हो गयी. मुख़्तार उस समय जेल में थे. और घटना के तीन साल बाद 2008 में दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने बृजेश सिंह को ओडिशा से अरेस्ट कर लिया. तब से मुख़्तार और बृजेश दोनों ही जेल में हैं. और कहा ये भी जाता है कि दोनों जेल में अपनी मर्ज़ी से बंद हैं. मर्ज़ी से इसलिए क्योंकि बाहर आए तो दोनों को सामने वाले से ख़तरा है.

अंसारी परिवार की राजनीतिक अस्थिरता

अंसारी परिवार का राजनीतिक सफ़र भी विवादों के घेरे में रहा है. ख़ुद सीपीआई से राजनीतिक पारी की शुरुआत करने वाले मुख़्तार एंड फ़ैमिली ने साल 2007 में बसपा का हाथ थामा. मायावती से सवाल पूछे गए तो जवाब में ‘ग़रीबों का मसीहा’ और ‘कमज़ोरों की लड़ाई लड़ने वाले’ जैसे कैचफ़्रेज़ सामने रखे गए. साल 2009 आया और लोकसभा चुनाव आए. मुख़्तार ने बनारस लोकसभा से पर्चा भरा. सामने थे भाजपा के मुरली मनोहर जोशी. जोशी जीत तो गए लेकिन मुख़्तार पर महज़ 17 हज़ार वोटों के अंतर ने बीजेपी के इस बड़े नेता की जीत का रंग फीका कर दिया था.

साल 2010. कई ख़बरों में फिर से अंसारी भाईयों का नाम आया तो मायावती ने पार्टी से निकाल दिया. मुख़्तार, अफ़जाल और बड़े भाई सिबगतुल्लाह अंसारी ने सोचा कि अब अपनी पार्टी पर खेलेंगे. नयी पार्टी बनी और नाम रखा गया क़ौमी एकता दल. 2012 का विधानसभा चुनाव आया. मुख़्तार ने मऊ विधानसभा जीत ली. इसके पहले इसी सीट पर 2002 और 2007 में निर्दलीय जीत दर्ज की थी. 

फिर 2014 में मुख़्तार ने कहा कि नरेंद्र मोदी के खिलाफ़ चुनाव लड़ेंगे. बनारस से. सामने कांग्रेस के अजय राय थे, जिनके भाई अवधेश की हत्या में मुख़्तार का नाम सामने आया था. गहरी अदावत थी. कुछ ही दिनों में मुख़्तार ने ऐलान किया कि सेकूलर वोटों का बंटवारा ना हो, इसलिए वो अपना नाम वापिस ले रहे हैं.

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अफ़जाल और सिबगतुल्लाह के साथ शिवपाल.

इधर अखिलेश के चचा शिवपाल मुख़्तार को समाजवादी पार्टी में लाने का जुगाड़ बना रहे थे. साल 2016 में ख़बरें चलीं कि मुख़्तार की पार्टी क़ौमी एकता दल का विलय समाजवादी पार्टी में हो गया है. अफ़जाल और चचा शिवपाल ने मिलकर ऐलान किया था. लेकिन इसी समय सपा में एक और बड़ा शिफ़्ट आ रहा था. अखिलेश यादव सबकुछ पर अपनी पकड़ मज़बूत करना चाह रहे थे. और कुख्यात मुख़्तार की पार्टी के सपा में विलय से वो नाख़ुश थे. लिहाज़ा, मुख़्तार एंड कम्पनी ही सपा से बाहर नहीं गए, चचा शिवपाल भी चले गए. 

अब लगा कि फिर से क़ौमी एकता दल चमकेगा, लेकिन मायावती ने ‘राजनीति में कुछ भी परमानेंट नहीं होता’ वाली चलताऊ कहावत को चरितार्थ कर दिया. कहा कि अपराध साबित नहीं हुए और मुख़्तार एंड कम्पनी फिर से बसपा में आ गए. पार्टी का विलय हो गया. 2017 में मुख़्तार अंसारी ने मऊ विधानसभा हथिया ली, तो 2019 में अफ़जाल अंसारी ने कृष्णानंद राय के क़रीबी रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री, सांसद और भाजपा नेता मनोज सिन्हा को ग़ाज़ीपुर लोकसभा से हरा दिया. बसपा के ही टिकट पर.

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बसपा में वापसी.

कृष्णानंद राय की हत्या के बाद उनकी पत्नी अलका राय ने इसी सीट पर पर्चा भरा और उपचुनाव में जीत गयीं. फिर 2007 और 2012 में बड़े भाई सिबगतुल्लाह अंसारी ने अलका राय को हटा दिया. 2017 में सीट फिर से चली गयी अलका राय के पास.

2019 में पंजाब में मुख़्तार पर एक एफ़आईआर दर्ज हुई. पंजाब पुलिस को तलाश थी. लिहाजा पंजाब पुलिस बांदा जेल पहुंची और जेल अधिकारियों ने मुख्तार को पंजाब पुलिस को सौंप दिया. बाद में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अप्रैल 2021 में अंसारी को फिर यूपी की बांदा जेल में ले जाया गया.

एक कहानी और है. 9 जुलाई 2018 को मुन्ना बजरंगी की बागपत जेल में गोली मारकर हत्या कर दी गई. मुन्ना बजरंगी भी कृष्णानंद राय हत्याकांड में आरोपी था. उस समय मुन्ना बजरंगी को मुख्तार का खास शूटर माना जाता था. हालांकि बाद में दोनों के संबंध खराब हो गए थे. मुन्ना बजरंगी की हत्या के बाद अंसारी परिवार ने मुख्तार की जान को भी खतरा बताया था और सुरक्षा की मांग की थी. लखनऊ और गाजीपुर में इस तरह की बातें भी चलती हैं कि मुन्ना बजरंगी की जेल में हत्या के बाद ही मुख्तार को पंजाब शिफ्ट करने का प्लान बना.

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मुख़्तार अंसारी (Getty Images)

मुख्तार के खिलाफ कई सारे मामले हैं और कई सारे आरोप. अधिकतर मामलों में जांच में कुछ नहीं मिला, तो कुछ में गवाह मुकर गए, तो कुछ में गवाह ग़ायब हो गए. लेकिन कुछ में उन्हें दोषी करार दिया गया और सजा भी हुई. हाल में उनके भाई ने आरोप लगाया था कि मुख्तार को जेल में धीमा जहर दिया जा रहा है. अब मुख्तार की मौत हो गई है. जाहिर आने वाले दिनों में ये ‘धीमा जहर’ यूपी और वहां की सियासत में बहस का मुद्दा रहेगा.

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